जंगलों में बेमौसम के ” काफल” देखने को मिल रहे हैँ

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रिखणीखाल से प्रभूपाल रावत

रिखणीखाल के जंगलों में बेमौसम के ” काफल” देखने को मिल रहा है। जलवायु परिवर्तन के इस प्रमाण से कुछ लोग प्रकृति के कोप का संकेत भी मान  रहे हैँ। काफल का   वैज्ञानिक नाम है माइरिका एसकुलेंटा ।

आमतौर पर काफल बैशाख याने अप्रैल- मई महीने में पकते हैं।ये अकेला ही पेड़ था जिस पर ये फल लगे थे।ये बेमौसम का फल अब प्रकृति की ही अनोखी देन है।

रिखणीखाल के जंगलों में स्थित रिखणीखाल की अन्तिम सीमा व नैनीडान्डा के सरहद पर बसा गाँव हरपाल पांसीखाल नामक है,जहाँ आजकल बेमौसम के काफल नामक फल पेड़ पर देखने को मिल रहे हैं।आज ग्राम नावेतल्ली का प्रधान महिपाल सिंह रावत जब तोल्योडाडा की तरफ जा रहे थे तो उनकी नजर सड़क के किनारे काफल के पेड़ पर लगी,तो उन्होने देखा कि पेड़ पर काफल पके हैं। उन्होंने बेमौसम काफल का स्वाद चखा।

ऐसा पहली बार देखा गया है कि जनवरी के महीने में काफल पक रहे हैं।ये किसी चमत्कार से कम नहीं है।यह जंगल काफल,बान्ज,बुरास का ही है।यह गांव दो विकास खंडो के सरहद पर है।

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