आजादी के बाद भी कब तक ढोयेंगे वे लोग दूसरों का मैला
- सीवर लाइनों में अब भी दम तोड़ रहे हैं एक जाति के लोग
- अब भी सिर पर मैला ढो रहे हैं लोग
- पुराने शौचालय जहां से सफाईकर्मी उठाते हैं मैला
- कानून भी नहीं रोक पाया सदियों पुरानी अमानवीय व्यवस्था
- आजादी के 7 दशक बाद भी आदमी उठा रहा है आदमी का मल
- गांधी और अम्बेडकर मैला ढोने की प्रथा से थे बहुत आहत
–जयसिंह रावत
अगर इक्कीसवीं सदी में भी एक इंसान दूसरे का मैला सिर पर ढोये या सारे शहर के मलमूत्र से भरी सीवर लाइनों में डुबकी लगाये और कभी-कभी दम घुटने से जान गंवा दे तो, इसे हम अधूरा विकास और अधूरी मानव सभ्यता नहीं तो फिर और क्या कहेंगे? इस पर भी अगर समाज की सारी गंदगी ढोने और पोछने की जिम्मेदारी एक जाति विशेष निभाये तो इसे अधूरी आजादी और अधूरा लोकतंत्र नहीं तो और क्या कहेंगे? धरती पर स्वर्ग तो नहीं, मगर सदियों से दूसरों का मैला ढोने वालों के लिये नर्क जरूर है।
सीवर लाइनों में अब भी दम तोड़ रहे हैं एक जाति के लोग
लोक सभा में 2 फरबरी 2021 को लातूर महाराष्ट्र के सांसद सुधाकर तुकाराम के एक प्रश्न के उत्तर में तत्कालीन सामाजिक अधिकारिता मंत्री थावर चन्द गहलोत का जवाब था कि 31 दिसम्बर 2020 तक उससे पिछले 5 सालों में देशभर में सीवर लाइनें साफ करते हुये 340 सफाइकर्मियों की मौतें हुयीं। इनमें सर्वाधक 52 सफाईकर्मी उत्तर प्रदेश में मारे गये उसके बाद तमिलनाडू की गंदी नालियां जाति विशेष के कर्मियों के लिये मरघट बनीं जहां 43 लोगों ने जानें गंवाई। देश की राजधानी दिल्ली जहां से इस समाजवादी-धर्म निरपेक्ष-लोकतांत्रिक गणराज्य का संचालन होता है, में 36 सफाईकर्मियों ने नारकीय परिस्थितियों में दम तोड़ा। गुजरात जिसका शासन 15 सालों तक मोदी जी ने चलाया, वहां भी इस अवधि में 31 सफाईकर्मियों ने जानें गंवाई। इस तरह 19 राज्यों में सफाईकर्मियों की सीवर लाइनों में मौत की खबर दिल्ली स्थित देश की सर्वोच्च पंचायत तक पहुंची। जबकि ‘‘हाथ से मैला साफ करने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम 2013’’ की धारा चार के तहत सेप्टिक टैंक और सीवर लाइन की मैनुअल सफाई कराना निषिद्ध है।
अब भी सिर पर मैला ढो रहे हैं लोग
समाजिक अधिकारिता मंत्री का यह भी जवाब था कि देश में अब तक 13 राज्यों में 13,657 मैला ढोने वालों की पहचान की गई है, लेकिन 2011 की जनगणना में परिवारों के आंकड़ों से बड़ी संख्या में गंदे शौचालयों को हटाने को ध्यान में रखते हुए राज्यों से कहा गया है कि वे अपने सर्वेक्षण की दोबारा समीक्षा करें। उसी दौरान 4.97 लाख घरों में मानव मल की सफाई पशुओं द्वारा किये जाने की भी पहचान हुयी। इससे पहले 1992 से लेकर 2005 तक देश में 7.7 लाख सिर पर मैला ढोने वालों की पहचान की गयी थी। उसके बाद 2010 में 1.18 लाख मैनुअल स्कैवेंजरों की पहचान की गयी।
पुराने शौचालय जहां से सफाईकर्मी उठाते हैं मैला
सन् 2011 की जनगणना के समय देश में 26 लाख सूखे शौचालय थे जिनमें से 7,94,390 को सफाई सेवकों द्वारा साफ कर गंदगी को दूर फेंका जाता था। इनमें 73 प्रतिशत शौचालय ग्रामीण और 27 प्रतिशत नगरीय क्षेत्र में थे। इनमें ज्यादातर सूखे शौचालय आन्ध्र प्रदेश, असम, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, तमिलनाडू, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में थे। जबकि 1993 में ही सफाई कर्मचारी नियोजन और शुष्क शौचालय सन्निर्माण (प्रतिषेध) अधिनियम, 1993 आ गया था। जिसका उद्ेश्य मानव मल-मूत्र को हटाने के लिए सफाई कर्मचारियों के नियोजन को अपराध घोषित कर सफाई कार्य के हाथ से किए जाने का अन्त करने और देश में शुष्क शौचालयों की और वृद्धि पर पाबंदी लगाने के लिए संपूर्ण भारत के लिए एक समान विधान अधिनियमित करना था।
कानून भी नहीं रोक पाया सदियों पुरानी अमानवीय व्यवस्था
इस कानून में सफाई कर्मचारी के नियोजन की अमानवीय प्रथा को समाप्त करने तथा मानव पर्यावरण के संरक्षण और सुधार के लिए शुष्क शौचालयों का जल-सील शौचालयों में परिवर्तन अथवा नए सन्निर्माणों में जल-सील शौचालयों का सन्निर्माण अनिवार्य करना वांछनीय बताया गया था। उसके बाद सितम्बर 2013 में संसद द्वारा ‘‘हाथ से मैला साफ करने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम 2013’’ पास किया गया। वह अधिनियम 6 दिसम्बर 2013 से प्रभावी हुआ। इस अधिनियम में अस्वच्छ शौचालयों और मैनुअल स्केवेंजिंग संबंधी उपबंधों का पहली बार उल्लंघन करने पर 1 वर्ष की सजा या 50 हजार का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। दूसरी बार उल्लंघन करने पर 2 वर्ष की सजा और 1 लाख का जुर्माना हो सकता है। तीसरी बारः उल्लंघन करने पर 5 पांच साल की सजा या 5 लाख के जुर्माने या दोनों का प्रावधान है। इस अधिनियम की धारा 22 के अन्तर्गत पाये गये अपराध संज्ञेय एवं गैर जमानती हैं।
आजादी के 7 दशक बाद भी आदमी उठा रहा है आदमी का मल
हम विश्व में सबसे बड़े लोकतंत्र होने का दावा करते हैं। जनता के इस राज में हमारा संविधान भी हर नागरिक को समानता, स्वतंत्रता, न्याय और आपसी बंधुत्व की गारंटी देता है। अगर आजादी के 70 साल बाद भी एक जाति का नागरिक दूसरी जातियों के नागरिकों का मैला साफ करे, उसका मलमूत्र ढो कर दूर ले जाये और मलमूत्र से भरी सीवर लाइनों की मैनुअल सफाई करे तो संविधान में दी गयी गारंटियां तो अधूरी मानी ही जायेंगी साथ ही मानवीय गरिमा का भी मखौल उड़ेगा। मानवीय गरिमा पर आघात यह कि भारत में किसी भी तरह की स्कैवेंजिंग का काम एक जाति विशेष के लोग करते हैं। गांधी जी के सावरमती आश्रम या उनके किसी चलते फिरते शिविरों के अलावा शायद ही कभी और कहीं किसी उच्च जाति के नागरिक ने स्कैवंेजिंग का काम किया हो। देश के नगर निकायों में ही नहीं बल्कि सरकारी दफ्तरों में भी सफाई कर्म के लिये केवल एक जाति विशेष के लोगों को नियोजित किया जाता है। तब ‘‘हाथ से मैला साफ करने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम 2013’’ कानून कहीं नजर नहीं आता।
भंगी शब्द तक सरकारी शब्दकोश से नहीं हटा
हमारे दश में यह दौर परोक्ष धार्मिक क्रांति का है। धर्म विशेष पर खतरे का इशारा कर राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध किये जा रहे हैं। देश में प्रसिद्ध स्थलों और नगरों का नाम बदलने की होड़ लगी हुयी है। मगर समाज और राजकीय शब्दकोश से ‘‘भंगी’’ ’’चूड़ा’’या ‘‘मेहतर’’ शब्दों का उन्मूलन नहीं हो रहा है। जबकि हरिजन और दलित जैसे शब्दों के प्रयोग पर प्रतिबंघ लग चुका है। ‘‘भंगी’’ ऐसा शब्द है जिसका उपयोग ऊंची जातियों में ‘‘गाली’’ के लिये होता है। हैरानी का विषय यह है कि आज भी लगभग 36 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में से गुजरात, दिल्ली, मध्यप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, जम्मू-कश्मीर, और चण्डीगढ़ की अनुसूचित जातियों की सूची में भंगी, मेहतर या चूरा जातियों का उल्लेख किया गया है। अगर इस जाति के लोगों को आरक्षण या कोई सरकारी लाभ चाहिये तो उसे इन राज्यों में भंगी, मेहतर या चूरा होने का सरकारी प्रमाणपत्र देना होगा।
गांधी और अम्बेडकर मैला ढोने की प्रथा से थे बहुत आहत
महात्मा गाँधी और डॉ. अम्बेडकर दोनों ने ही हाथ से मैला ढोने की प्रथा का पुरजोर विरोध किया था। यह प्रथा संविधान के अनुच्छेद 15, 21, 38 और 42 के प्रावधानों के भी खिलाफ है। आजादी के 7 दशकों बाद भी इस प्रथा का जारी रहना देश के लिये शर्मनाक है और शीघ्रातिशीघ्र इसका अंत होना चाहिये।
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