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वाम दलों ने सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने के लिए सीधे तौर पर राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया

देहरादून, 16 जून। उत्तरकाशी के पुरोला समेट विभिन्न स्थानों पर फैलाई जा रही समोरदायिक घृणा की तीनों वामपंथी पार्टियों ने निंदा की है। शुक्रवार को देहरादून में  भाकपा, माकपा, भाकपा (माले) ने एक साझा बयान में सीधे मुख्यमंत्री पर साम्प्रदायिकता को हवा देने का आरोप लगाया है।

तीनों वाम दलों के साझा बयान मे कहा गया है कि सांप्रदायिक उन्माद पर प्रभावी तरीके से रोक लगाने के बजाय मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, उन्माद को हवा देने में लगे हुए हैं। लैंड जेहाद और लव जेहाद जैसी असंवैधानिक शब्दावली का निरंतर प्रयोग करके मुख्यमंत्री ने स्वयं सांप्रदायिक उन्माद के प्रचारक की भूमिका ग्रहण कर ली है। पुरोला में सांप्रदायिक तनाव के दौरान वे दो मौकों पर उत्तरकाशी जिले में थे। लेकिन वहाँ रहने के दौरान एक भी बार उन्होंने न तो शांति की अपील की और न ही कानून हाथ में लेने वालों की खिलाफ कार्यवाही की बात कही।

साझा बयान में कहा गया है कि 04 फरवरी 2020 में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी.किशन रेड्डी ने लोकसभा में लिखित जवाब दिया कि लव जेहाद कानूनी रूप से परिभाषित नहीं है। केंद्रीय एजेंसियों ने लव जेहाद का कोई मामला रिपोर्ट नहीं किया है। देश में 2011 से कोई जनगणना नहीं हुई है तो मुख्यमंत्री के पास कौन सा आंकड़ा है, जिसके आधार पर वे डेमोग्राफी में बदलाव जैसी असंवैधानिक शब्दावली का प्रयोग कर रहे हैं ?

वाम दलों ने कहा है कि लैंड जेहाद जैसी शब्दावली भी असंवैधानिक और गैर कानूनी है। यह उस सरकार का मुखिया प्रयोग कर रहा है जिन्होंने स्वयं प्रदेश में ज़मीनों की असीमित बिक्री का कानून बनाया।बहुसंख्यक हिंदुओं में अल्पसंख्यकों के प्रति डर और घृणा का भाव भरा जा रहा है. इसके पीछे असल मकसद धुर्वीकरण करके वोटों की फसल बटोरना है।

वामपंथी पार्टियों ने कहा कि अल्पसंख्यकों को जिस तरह घर-दुकान खाली करने के लिए आर एस एस समर्थित सांप्रदायिक समूहों द्वारा धमकाया जा रहा है. वह पूरी तरह गैर कानूनी कार्यवाही है. ऐसे समूहों और व्यक्तियों के खिलाफ कार्यवाही करने के बजाय ऐसा प्रदर्शित किया जा रहा है, जैसे कि उन्हें प्रशासनिक संरक्षण हासिल हो। किसी भी तरह के अपराध की रोकथाम और अंकुश लगाने की कार्यवाही कानूनी तरीके से होनी चाहिए. किसी भी स्वयंभू धार्मिक संगठन या व्यक्ति को उसकी आड़ में कानून और संविधान से खिलवाड़ की अनुमति कतई नहीं मिलनी चाहिए।

उच्चतम न्यायालय के आदेशों के बावजूद उत्तराखंड में पुलिस द्वारा नफरत भरे भाषण देने वालों के खिलाफ कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं की जा रही है. राज्य की पुलिस और पुलिस प्रमुख को बताना चाहिए कि उसकी क्या मजबूरी है, जो उसे उच्चतम न्यायालय की अवमानना करने के लिए विवश कर रही है। हम राज्य के तमाम नागरिकों से अपील करना चाहते हैं कि वे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के इस जेल में न फंसे. इस जाल मे लोगों को फांसने वाले तो इससे लाभ हासिल करेंगे पर आम जन के हिस्से इस से बर्बादी ही आएगी. उत्तराखंड में नौकरियों की लूट, जल-जंगल-जमीन की लूट, स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली, पलायन, जंगली जानवरों का आतंक, पर्वतीय कृषि की तबाही जैसे तमाम सवाल हैं, जो उत्तराखंड की व्यापक जनता के सवाल हैं, जिनके लिए मिल कर संघर्ष करने की आवश्यकता है. इन सवालों का हल करने में नाकाम सत्ता ही लोगों को धर्म के नाम पर बांट कर, इन सवालों पर अपनी असफलता से बच निकलना चाहती है।

सम्प्रदायिक घृणा के विरोध में वाम दलों का 18 जून को   वेबिनार होगा तथा 20 जून को सभी जिला मुख्यालयों पर वामपंथी पार्टियां प्रदर्शन करेंगे।

इससे पूर्व वामपंथी दलों की एक बैठक सीपीआई के राष्ट्रीय परिषद के सदस्य कामरेड समर भण्डारी की अध्यक्षता में सीपीएम राज्य कार्यालय में सम्पन्न हुई ।बैठक में सीपीएम राज्यसचिव कामरेड राजेंद्र सिंह नेगी ,सीपीआई राज्य सचिव कामरेड जगदीश कुलियाल ,सीपीआई (माले) राज्य सचिव कामरेड इन्देश मैखुरी ,सीपीएम के नेता इन्दुनौडियाल ,शिवप्रसाद देवली ,राजेन्द्र पुरोहित ,अनन्त आकाश ,सीपीआई नेता अशोक शर्मा ,सीपीआई (माले)के नेता कामरेड कैलाश पाण्डेय एवं के के बोरा आदि ने बिचार व्यक्त किये ।

 

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