अन्याय, उत्पीड़न और शोषण के खिलाफ संघर्ष को श्रीदेव सुमन की शहादत प्रेरित करती रहेगी
-अनंत आकाश
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा था की टिहरी रियासत से श्रीदेव सुमन की शहादत न केवल टिहरी मे राजशही के खिलाफ चले आंदोलन को मंजिल तक पहुंचाएगा बल्कि भारत की आजादी के लिए चल रहे स्वाधीनता आंदोलन को भी बल देगा। अमर शहीद
श्रीदेव सुमन ने आज से 79बर्ष पूर्व टिहरी राजशाही के क्रूरतम जुल्म के खिलाफ अपना बलिदान दिया । श्रीदेव सुमन राजद्रोह के आरोप के चलते टिहरी राजशाही की कैद में अपनी मृत्यु तक 208 दिन रहे , जहाँ राजशाही का क्रूरतम अत्याचार भी उनको विचलित नहीं कर पाया ,रेत मिली रोटी तथा घटिया किस्म का खाना हाथ पांव में बैड़ी,कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार के चलते तथा राजशाही से जनता की न्यायोचित मांगों के लिये सुमन अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठे जहाँ उन्होंने 84वें दिन दुनिया को सदा सदा के लिये अलविदा कह दिया ।राजशाही ने जनविद्रोह की डर से उनके शव को बोरे में बन्द कर रातों रात भिलंगना नदी में फेंका दिया, जो स्वयं में गम्भीर अपराध था ।
टिहरी की जनता सदियों से राजशाही के जुल्मो के तले पिसती चली आ रही थी, बर्ष 1930 में जब रंवाई काण्ड हुआ उसने जलियांवाला बाग की याद ताज की जहाँ निरही जनता को संभलने का भी मौका नहीं मिला तथा राजशाही ने तिलाड़ी के मैदान में तीनों तरफ से अपने हक हकूकों की रक्षा के लिये इकट्ठा हुऐ किसानों पर गोलियों की बौछारें की जिनमें बड़ी संख्या में लोग शहीद हुऐ, इनमें कई तो नदी में कूदकर बह गये । राजशाही यहीं नहीं रूकी बल्कि उसने सम्पूर्ण क्षेत्र में दमनचक्र तेज किया, बावजूद इसके श्रीदेव सुमन, नागेंद्र सकलानी, मोलू भरदारी आदि उसी राजशाही के खिलाफ पैदा होते रहे ।
जौल गांव में 25 मई 1916 में जन्मे श्री देव शिक्षा ग्रहण करने के बाद गांधीजी द्वारा आजादी के लिये चलाऐ जा रहे आन्दोलन से प्रभावित होकर टिहरी में राजशाही के जुल्मों के खिलाफ प्रजामण्डल आन्दोलन के मुख्य कर्ताधर्ताओं में से एक थे, श्रीदेव सुमन ने गांधी जी के नमक सत्याग्रह आन्दोलन में भी हिस्सेदारी की, उनके नेतृत्व में उनकी मृत्यु तक टिहरी राजशाही के जुल्मों के खिलाफ अनवरत संघर्ष हुऐ । 25 जुलाई 1944 श्रीदेव सुमन के बलिदान के बाद टिहरी राजशाही के दमनचक्र के खिलाफ रियासत से बाहर रहकर भी अनेक कोशिशें जारी रहीं । इस बीच 15अगस्त 1947 को अंग्रेजों की गुलामी से देश आजाद हुआ, किन्तु टिहरी की जनता राजशाही के जुऐ के तहत निरन्तर पिसती रही । बर्ष 1948 में यह प्रयास फलीभूत हुआ जब कीर्तिनगर में कामरेड नागेंद्र सकलानी के नेतृत्व में टिहरी राजशाही के खात्मे के लिये आन्दोलन शुरू हुआ ,घबरायी राजशाही पुलिस ने आन्दोलरत जनता पर गोलियां चला दी ,जिसमें कामरेड नागेंद्र सकलानी ,मोलू भरदारी शहीद हुऐ ।घबराकर राजशाही पुलिस पीछे हटकर भाग खड़ी हुई । जनता को हौसला अफजाई करते हुऐ पेशावर विद्रोह के महानायक कामरेड चन्द्रसिंह गढवाली व उनके साथी तथा आजाद हिन्द फौज के जवानों व उनके साथियों द्वारा टिहरी कूच का आह्वान किया तत्पश्चात बडी़ संख्या में जनता दोनों के शव लेकर टिहरी के लिए चल पडी़, इस घटना की सूचना चारों तरफ आग की तरह फैल गई ,चारों तरफ मुक्तिकामी जनता टिहरी के लिए निकल पडी़ , जहाँ राजमहल घेरा गया अन्ततः राजा ने घुटने टेके सत्ता को जनता के हवाले किया । कुछ माह तक शासन जनता के हाथ पर रहा दादा दौलतराम अन्तरिम सरकार के प्रधानमन्त्री बने तथा बाद में टिहरी रियासत का विलय भारत में हुआ । इस प्रकार श्रीदेव सुमन सहित उन शहीदों का बलिदान व्यर्थ नहीं गया ,जिन्होंने अपनी जनता के दुखों के खातिर अपना सर्वस्व न्यौच्छावर कर दिया ।
आज भी साम्प्रदायिक तथा जाति विभेद तथा सत्ता के दमन व शोषण के खिलाफ लडा़ई जारी है । यह लडा़ई तब तक जारी रहेगी जब तक आदमी द्वारा आदमी के शोषण का अन्त न हो जाऐ !
सुमन ने 79 बर्ष पूर्व अपने प्राणों की आहुति दी थी ,वह आज भी हमारे दिलोदिमाग में हैं ।उनके योगदान को सदैव याद किया जाऐगा।
(लेखक सीपीआई (एम) देहरादून, महानगर के सचिव हैँ )