देहरादून में बसे नागरिकों का रुख अब अपने पैतृक गांवों की ओर
—रिखणीखाल से प्रभुपाल रावत —
देहरादून में बसे कुछ वरिष्ठ नागरिकों का रुख अब अपने पैतृक गांवों की ओर बढता दिख रहा। देहरादून में कयी सालों से बसे वरिष्ठ नागरिक अब अपने पैतृक घरों के रखरखाव व मरम्मत आदि करने में रूचि लेने लगे हैं।
वे कहते हैं कि देहरादून में हो रहे रोज रोज के धरना-प्रदर्शन,ये आन्दोलन वो आन्दोलन,चक्का जाम,रूट डायवर्ट,वन वे, चोरी, डकैती, लूट, रेप,धोखाधड़ी,धक्का मुक्की,धूल उड़ती सडकें,ये कर वो कर, भवन कर, जलकर, टोल प्लाजा टैक्स आदि से परेशान व ऊब गये हैं।
ऐसा ही एक वाक्या सामने आया है कि रिखणीखाल के सबसे ऊँचे शिखर चोटी पर बसा गाँव रजबौ मल्ला की सामने आई है।ये निर्माणाधीन मकान कयी सालों से मानव रहित व वीरान खंडहर होता जा रहा था।तथा जर्जर हालत में था,तो अब इन चारों भाइयों को याद आयी कि क्यों न हम इसे पुनर्निर्माण कर पुनर्जीवित करें।जिस पर आजकल तीव्र गति से पुनर्निर्माण कार्य चल रहा है।इससे पहले ये साहस न कर सके,क्यों कि यह गाँव सड़क मार्ग से अछूता था अब सड़क पहुँच गयी है तो भवन निर्माण सामाग्री लाने में सुविधा हो गई।ये लोग अब समय समय पर गाँव जाते रहेगें।इन पैतृक घरों में पितृ देवी देवताओं का वास भी है।उनके वास को खिसकाना उचित नहीं है।अब ये मकान पत्थर के पठालो की जगह टिन की छत के बन रहे हैं।पठालो को बन्दर, लंगूर आदि उखाड़ फेंक देते हैं।
अब काफी लोगों का रुझान अपने पैतृक घरों को सजाने संवारने में रुचि दिखाई देने लगी है।
सरकार को गांवों में मूलभूत सुविधाएं देने में कोताही नहीं बरतनी चाहिए।गाँव के विकास से ही देश का विकास सम्भव है।