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आपदा प्रबन्धन : संता-बंता उवाच और मोदी जी के मंत्र

-by Piyoosh Rautela Dec 17, 2022

संता – भाई ये प्रधानमंत्री के 10-Point Agenda का क्या चक्कर हैं? आपदा प्रबन्धन से जुड़ा हर कोई Sendai Framework की बात करे या न करे, 10-Point Agenda का राग अलापने से नहीं चूकता है।

बंता – वैसे तो मोदी जी 26 जनवरी 2001 के भुज भूकम्प के बाद अक्टूबर 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे, पर भूकम्प के बाद का सारा का सारा पुनर्निर्माण व पुनर्स्थापना कार्य उन्ही के नेतृत्व में हुवा था। सो उन्हें आपदा के कारण उत्पन्न स्थितियों व उनका सामना करने के साथ ही उनसे उबरने के लिये किये जाने वाले कार्यो का अच्छा खासा व्यक्तिगत अनुभव हैं।

संता – तो यह 10-Point Agenda मोदी जी के आपदा के अनुभवों का निचोड़ हैं?

बंता – अब ऐसा भी कह सकते हो तुम।

संता – तब तो 10-Point Agenda के बारे में आपदा प्रबन्धन से जुड़े हर किसी को पता होना चाहिये।

बंता – होना तो कुछ ऐसा ही चाहिये, पर हमारे यहाँ वही सब तो नहीं होता हैं जो होना चाहिये।

संता – क्या होना चाहिये और क्या नहीं, उसे छोड़ो। मुझे तो 10-Point Agenda के बारे में बता ही दो।

बंता – ये जो 10-Point Agenda का मंत्र हैं, वह मोदी जी ने वर्ष 2016 में 3 से 5 नवम्बर के बीच नई दिल्ली में सम्पन्न आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर एशियाई मंत्रियो के सम्मलेन में दिया था।

संता – पर आखिर ये हैं क्या?

बंता – 10 सरल मंत्र हैं ये, जिन पर काम कर के आपदाओं के जोखिम को कम किया जा सकता हैं।

संता – पहला मंत्र?

बंता – पहला मंत्र हैं विकास से जुड़े सभी कामों में आपदा जोखिम प्रबन्धन का समावेश

संता – यानी कि ध्यान रखा जाये कि कहीं विकास, विनाश का कारण ना बन जाये।

बंता – एकदम ठीक. अगर हम विकास के सभी कामों में आपदा सुरक्षित तकनीकों का समावेश सुनिश्चित करे, तो समय बीतने के साथ हमारा आपदा का जोखिम अपने आप ही कम हो जायेगा।

संता – ये तो बड़े पते की बात बतायी हैं मोदी जी ने।

तो फिर आगे दूसरा मंत्र क्या हैं?

बंता – दूसरा मंत्र सभी को आपदा बीमा का लाभ देने से जुड़ा हैं।

संता – पर इस पर तो बहुत खर्च करना होगा?

बंता – लोगो को पता नहीं क्यों, पर ऐसा लगता हैं।

पर सच में ऐसा हैं नहीं।

बीमा की दर मात्र रू. 0.315 प्रति रू. 1000 प्रति वर्ष हैं।

मतलब साफ़ है कि केवल रू. 3150 का निवेश कर के कोई भी साल भर के लिये रू. 1.0 करोड़ का बीमा करवा सकता है और वो भी 12 प्रतिकूल स्थितियों के लिये  जैसे कि (i) आग, (ii) बज्रपात, (iii) अचानक ध्वस्त होना या implosion, (iv) विस्फोट या explosion, (v) भूकम्प, (vi) आंधी, (vii) तूफ़ान, (viii) बाढ़, (ix) जल भराव, (x) प्रक्षेपास्त्र परीक्षण या missile test operations, (xi) जंगल की आग तथा (xii) छत पर पानी की टंकी का फटना।

संता – फिर बीमा से तो आपदा के बाद सरकार के द्वारा दी जाने वाली फौरी राहत की जगह प्रभावितो की परिसम्पत्तियों की   आपदा से हुयी क्षति की प्रतिपूर्ति भी हो पायेगी।

बंता – वहीं तो।

इससे जहाँ एक ओर आपदा के कारण सरकारी खजाने पर पड़ने वाला बोझ कम होगा, वहीं दूसरी ओर इसकी वजह से प्रभावित समुदाय  आपदा के  प्रभावों से जल्दी उबर पायेगा और अर्थव्यवस्था तेजी से पटरी पर वापस लौटेगी।

संता – इतने काम की बात हैं यह तो। ऐसे में तो आपदा बीमा को जरूर ही प्रोत्साहित किया जाना चाहिये और इसके लिये हम वाहन बीमा की तर्ज पर अवसंरचनाओं व परिसम्पत्तियों का बीमा अनिवार्य भी तो कर सकते हैं?

बंता – करने को तो बहुत कुछ कर सकते हैं, पर वो कहा था ना मैंने कि हम वहीं नहीं करते हैं जो हमें सच में करना चाहिये।

संता – तो आगे तीसरा मंत्र क्या हैं अपने प्रधानमंत्री जी का?

बंता – तीसरा मंत्र हैं सभी योजनाओ में महिलाओ की हिस्सेदारी सुनिश्चित करना और उन्हें नेतृत्व के अवसर देना

संता – यह तो हमारा संविधान भी कहता हैं, पर आपदा के बाद के समय में कई बार हम महिलाओ के बारे में अलग से सोचने की जरूरत ही नहीं समझते हैं।

बंता – तभी तो मोदी जी ने महिलाओं की हिस्सेदारी की बात की हैं। महिलाये होंगी, तो महिलाओ के बारे में सोचेंगी भी।

संता – एकदम से सटीक विधि बतायी हैं मोदी जी ने आपदाओं से पार पाने की।

बंता – अभी तो शुरुवात हुयी हैं संता भाई।

मोदी जी का चौथा मंत्र जोखिम को जानने-समझने के लिये जोखिम मानचित्रीकरण पर निवेश करने की बात करता हैं

संता –  सच कहो तो यह सबसे जरूरी हैं।

यदि जोखिम का पता हो तो सुरक्षा के बारे में भी हर कोई सोचेगा ही, और सुरक्षा पर निवेश भी करेगा।

बंता – वही तो।

अब हर चीज का हल तो डंडे से होने से रहा।

जोखिम का पता होगा तो आपदा सुरक्षित तकनीकों व विधियों का स्वैच्छिक अनुपालन भी होगा।

और एक बार माँग के आधार पर इन सबका बाजार तैयार हो जाये, तो समय बीतने के साथ इन सब तकनीकों व विधियों की कीमत भी आम आदमी की पहुँच में आ ही जायेगी।

संता – तब तो जोखिम से जुड़ी जानकारियों का उपयोग लोगों को आपदा से जुड़े पक्षों पर जागरूक करने, तथा आपदा  सुरक्षित तकनीकों व विधियों के प्रचार-प्रसार के लिये भी किया जाना चाहिये।

बंता – उसकी बात भी की है मोदी जी ने आगे, पर अभी एक-एक कर के आगे बढ़ते हैं।

सो मोदी जी का पाँचवा मंत्र प्रभावी आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये तकनीक के उपयोग को प्रोत्साहित करने से जुड़ा हैं

संता – वो तो हम कर ही रहे हैं और उसी के कारण तो चक्रवात से पहले ही लोगो को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचा कर हम मानव क्षति को काफी सीमित भी कर चुके हैं। फिर हमने सूनामी की चेतावनी की भी तो व्यवस्था कर ही ली हैं।

बंता – और उत्तराखण्ड में भूकम्प पूर्वचेतवानी की भी व्यवस्था की गयी हैं, और यह प्रणाली यहाँ दिल्ली और आस-पास के इलाको के लिये काफी प्रभावी साबित हो सकती हैं।

संता – भूकम्प पूर्वचेतवानी?

पर तुमने तो कहा था कि भूकम्प का पूर्वानुमान सम्भव नहीं हैं?

बंता – सो तो हैं, पर यह प्रणाली भूकम्प आ जाने पर ही चेतावनी देती हैं।

संता – भूकम्प आ जाने पर चेतावनी?

बंता – हाँ, भूकम्प में दो तरह की तरंगे या waves उत्पन्न होती हैं; P या प्राथमिक और S या द्वितीयक

भूकम्प में होने वाला नुकसान S waves के साथ -साथ P व S waves के मिलन से उत्पन्न होने वाली Love व Rayleigh waves के कारण होता हैं, और नुकसान करने वाली यह तीनो ही तरंगे P waves की अपेक्षा काफी धीमी गति से चलती हैं।

संता – मतलब कि P waves के आधार पर विनाशकारी SLove व Rayleigh waves के आने की चेतावनी?

बंता – एकदम ठीक समझे हो तुम।

संता – पर इस प्रकार की चेतावनी काफी पहले तो मिल नहीं सकती हैं?

बंता – हाँ, वो तो हैं – बस भूकम्प के झटके महसूस होने से कुछ सेकंड पहले।

और हाँ, इस प्रकार की चेतावनी मिलने की अवधि अभिकेन्द्र या epicentre से दूरी बढ़ने के साथ बढ़ती चली जाती हैं। यानी कि अभिकेन्द्र से दूर स्थित जगहों के लिये इस प्रकार की चेतावनी  अपेक्षाकृत काफी पहले मिल सकती हैं।

समझो तो उत्तराखण्ड हिमालय में भूकम्प आने की स्थिति में देहरादून के लिये 20 सेकंड पहले तो दिल्ली के लिये 60 सेकंड या 1 मिनट पहले चेतावनी मिल सकती हैं।

संता – तभी शायद तुम उत्तराखण्ड में स्थापित इस तंत्र को दिल्ली और आस-पास के इलाको के लिये ज्यादा प्रभावी बता रहे थे।

बंता – भाई दिल्ली के लिये इससे एक मिनट पहले चेतावनी मिल सकती है और फिर भूकम्प में नुकसान तो ज्यादा वहीं होगा जहाँ ज्यादा लोग व अवसंरचनाये हैं। फिर 1 सितम्बर 1803 को आये गढ़वाल भूकम्प में दिल्लीआगरा व अलीगढ़ तक नुकसान हुवा ही था।

संता – तब तो इस क्षेत्र में रहने वाले हर किसी को उत्तराखण्ड के इस चेतावनी तंत्र का फायदा उठाना चाहिये।

बंता – वो तो करना चाहिये, और फिर इस चेतावनी के लिये मोबाइल एप भी उपलब्ध हैं ही। सबसे बड़ी बात यह कि इसके लिये कुछ खर्च भी नहीं करना हैं और भूकम्प की स्थिति में मिलने वाली यह सुरक्षा बस फोकट में हैं।

संता – इस सब का मतलब तो यही हुवा कि हमने और कुछ किया हो या ना किया हो, पर मोदी जी के इस पाँचवे मंत्र पर तो अमल कर ही लिया हैं।

बंता – भाई अभी काफी कुछ करना बाकी हैं और इस दिशा में राज्यों के द्वारा नये-नये प्रयोग किये भी जा रहे हैं।

संता – तो फिर आगे बढ़े?

बंता – मोदी जी का छठवा मंत्र आपदा सम्बन्धित कामों के लिये शिक्षण संस्थानों व विश्वविद्यालयों के समूह गठित कर उन्हें प्रोत्साहित करने से जुड़ा हैं, ताकि इस क्षेत्र में नवाचार सुनिश्चित हो सके

संता – इससे नयी तकनीकों के विकास के साथ ही इनका व्यावहारिक रूप से उपयोग भी हो पायेगा।

बंता – वो तो हैं।

और आगे सातवाँ मंत्र इंटरनेटसोशल मीडिया व मोबाइल द्वारा प्रदान किये जा रहे अवसरों का लाभ उठा कर आपदा के प्रभावों को सीमित करने से जुड़ा हैं

संता – ये बड़े काम की बात बतायी हैं मोदी जी ने।

आज हर किसी के पास और कुछ हो न हो, मोबाइल व इंटरनेट जरूर हैं।

फिर इसके द्वारा चौथें मंत्र के अन्तर्गत किये गये जोखिम मानचित्रीकरण का प्रचार-प्रसार कर लोगो को जागरूक किया जा सकता हैं, आपदा की चेतावनी पलक झपकते घर-घर तक पहुँचायी जा सकती हैं। और भी बहुत कुछ किया जा सकता हैं, जान बचाने व आपदा के प्रभावों को कम करने के लिये।

बंता – बाकी और जो हो, मोदी जी के मंत्रो ने तुम्हे समझदार जरूर बना दिया हैं।

सभी की बत्ती ऐसे ही जल जाये, तो हमारा देश जल्दी ही आपदा सुरक्षित हो ही जायेगा।

संता – और मोदी जी का आठवाँ मंत्र?

बंता – यह स्थानीय क्षमता व नवाचार या innovation को बढ़ावा देने से जुड़ा हैं

संता – मुझे यह सबसे काम की बात लगी क्योंकि आपदा के बाद कितनी भी तेजी दिखा लो, बाहर से मदद आने में समय तो लगता ही हैं और ऐसे में सच कहें तो काम वही आता हैं, जो नजदीक में हो व झट से उपलब्ध हो जाये।

बंता – तभी तो मोदी जी के कहे अनुसार राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण ने आपदा मित्र योजना बनायी हैं, ताकि मोदी जी के बताये रास्ते पर चल कर स्थानीय स्तर पर आपदा का सामना करने की क्षमता विकसित हो सके।

संता – इसके अन्तर्गत हम अपनी परम्परागत विधियों का संरक्षण, संवर्धन, अभिलेखीकरण व प्रोत्साहन भी तो कर ही सकते हैं।

बंता – मोदी जी का अभिप्राय भी वही हैं।

उन्हें पता जो हैं कि सदियों से क्षेत्र में रह रहे लोगो ने समय के साथ आपदाओं का सामना करने व उनके प्रभावों को कम करने के गुर सीख ही लिये होते हैं, और आज जरूरत हैं तो इन्हे परिष्कृत व प्रोत्साहित कर के अधिक प्रभावी व उपयोगी बनाने की।

संता – और नवाँ मंत्र?

बंता – आपदा से सीखने का मौका मत गवाओ

संता – आपदा ही क्यों, हमें सीखना तो अपने हर अनुभव से चाहिये।

बंता – पर हम ऐसा करते कहाँ हैं?

संता – शायद यही हमारे बार-बार आपदाओं से प्रभावित होने का कारण हो?

बंता – हाँ, और इसके लिये हमें आपदा उपरान्त अभिलेखीकरण, के साथ ही अनुभवों के आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करना  चाहिये।

संता – और

बंता – किये जाने वाले कामों की सूची तो काफी लम्बी हो सकती हैं, पर मोदी जी का दसवाँ और आखिरी मंत्र भी तो बचा हैं ना?

और यह आपदा उपरान्त की स्थिति में अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग व समन्वय को बेहतर बनाने से जुड़ा हैं

संता – इसके लिये आजकल देशों के मध्य कई विशिष्ट मंच भी तो बनाये गये हैं।

और अब हम दूसरे देशो के साथ मिल कर अभ्यास भी तो आयोजित करने लगे हैं, ताकि हमें एक दूसरे की क्षमताओं के साथ ही उपयोग में लायी जाने वाली विधियों के बारे में पहले से पता हो, और आपदा के समय कोई या किसी प्रकार के भी संशय की स्थिति उत्पन्न न हो।

बंता – सहयोग और समन्वय तो आपदा से पहले भी चाहिये।

संता – और यह हमारे लिये यहाँ तिब्बत व नेपाल से आरम्भ होने वाली बाढ़ के साथ ही यह हिन्द महासागर में आये भूकम्प से उत्पन्न होने वाली सूनामी के परिप्रेक्ष्य में काफी महत्वपूर्ण हो जाता हैं।

बंता – सच कहूँ तो मोदी जी के मंत्रो ने तुम्हे दूरदर्शी भी बना दिया हैं।

अब जरूरत है तो बस हर समुदाय में एक संता की, जो

 With Courtesy from – Risk Prevention Mitigation and Management Forum – Because your safety comes first

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