हे भगवान बद्रीनाथ ! उनको भी माफ करना जो नहीं जानते कि तुम्हारे लिये जो कुछ करना है वो कैसे करना है ?
—वीरेन्द्र कुमार पैन्यूली
पर्यावरण वैज्ञानिक व सामाजिक कार्यकर्ता
बात जनवरी 2023 की ही है । जोशीमठ का गंभीर होता असमान्य भू ध्ंासाव तब राष्ट्रीय , अंतरराष्ट्रीय व स्थानीय मीडिया में सुर्खियाँ लिये हुआ था । निष्कर्ष यही आ रहे थे कि इसके बाद उत्तराखंड के संवेदनशील पहाड़ों में विनाशकारी शहरीकरण नहीं किया जाना चाहिये । सरकारों को सही रायों की अनदेखी भी नहीं करना चाहिये अन्यथा उसके प्रतिघाती परिणाम देर सबेर आ ही जाते है। लगभग तभी ही डेढ साल से चलते बद्रीनाथ ड्रीम प्रोजेक्ट से बुरे सपनों के आगाजों की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी । चूंकि उन दिनों शीत काल में धाम के कपाट बंद थे वहां की दुर्दशा उजागर नहीं हो रही थी इसलिये उस पर ज्यादा ध्यान नहीं जा रहा था । किन्तु वहां के अनिष्ट की आंशंका से चिंतित चमोली जिला निवासी नब्बे वर्षीय सौम्य मृदु भाषी सुविख्यात चिपको आन्दोलन के प्रेरक व प्रहरी तथा देश विदेश में अपनी सामाजिक पर्यावरणीय प्रतिबध्दता के लिये ख्यात व अलंकृत पद्मभूषण श्री चण्डी प्रसाद भट्ट अपने को रोक न पाये व उन्होने प्रधानमंत्री व राज्य के मुख्यमंत्री को 7 जनवरी 2023 पत्र लिखकर बद्रीनाथ धाम से सबंधित अपनी चिंताओं को बताया था । किन्तु इसका जबाब उनके पास एस एम एस से 05 मई 2023 को आया । उन्हे इसमें ये सूचना दी गई थी कि उनकी शिकायत का निराकरण कर दिया गया ।श्री भट्ट का कहना है कि जानकारी लेने पर जब उन्हे पता चला कि उनका पत्र जिला पर्यटन अधिकारी चमोली को कार्यवाही के लिये भेजा गया था तो उन्हे आश्चर्य हुआ । यथार्थ में यह दर्शाता है कि केन्द्र सरकार चण्डी प्रसाद जैसे व्यक्ति के लिये क्या प्रोटोकौल अपनाती है ।
श्री चण्डी प्रसाद भट्ट जी की बद्रीनाथ से संदर्भित उल्लेखित चिंता यह थी कि बद्रीनाथ में चल रहे पुनर्निमाण एवं सौन्दर्यीकरण के कारण पंच धाराओं में से दो कुर्म धारा एवं प्रह्लाद धारा को क्षति पहुंची है । बुल्डोजरों से मंदिर के नीचे के भाग की खुदाई हो रही है । व बद्रीधाम क्षेत्र की अप्रतिम नैसर्गिक , प्राकृतिक ,सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक धरोहर से जैसे विगत कुछ समय से अंधाधुध छेड़छाड़ हो रही है वह उनके लिये अतीव कष्टप्रद रही है ।
जगदगुरू श्ंकराचार्य ज्योतीरमठ स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानंद जी महाराज ने भी 22 , 23 जून 2023 को सार्वजनिक रूप से यह बताया था कि श्री बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने के अवसर पर मैं स्वयं वहां मौजूद था ।तब वहां चाबी ले कर कतिपई पण्डा पुरोहित पहुंचे तो देखा वहां उनके घर व दुकानें वहां नहीं थी। उन्होने कहा कि बद्रीनाथ धाम महायोजना के कामों में धाम की धार्मिक विशिष्टताओं की उपेक्षा की जा रही है ।कुर्म धारा व प्रहलाद धारा को जिनमे रावल जी के स्नान की महत्ता है को भी क्षतिग्रस्त किया गया है ।
इसके पूर्व इसी साल कपाट खुलने पर तत्काल ही पूर्व सूचना आयुक्त व वरिष्ठ ऐडोवोकेट राजेंद्र कोटियाल ने अपने तथ्यात्मक सर्वेक्षण मे जब यह पाया कि बदरीनाथ मास्टर प्लान के मनमानी कार्यान्वन से पवित्र धाराओं को क्षति हुई है , पुरोहित ,पण्डाओं व अन्य की सम्पतियों को बिना कानूनी प्रविधानों के तोड़ा गया , कब्जे में लिया गया , पवित्र धाराओं को भी नुकसान हुआ तो उन्होने इन कृत्यों को मानवाधिकार हनन कह उ़त्तराखंड मानव अधिकार आयोग से इसकी भी शिकायत की । जिसके पंजीकरण के बाद राज्य मानवाधिकार आयेग ने सचिव पर्यटन और डी एम चमोली को अपना पक्ष रखने को कहा है ।
राज्य के करिष्ठ पत्रकार श्री जयसिंह रावत ने भी लगभग तभी अपनी रिपोर्ट में गंगा की प्रमुख सहायक धारा अलकनंदा में बदरीनाथ के जल मल गंदगी के सीधे पहुंचने का भी उल्लेख किया था ।
चिंता व क्षोभजनक तो यह भी है कि जहां जगदगुरू श्ंकराचार्य ज्योतिर्मठ स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानंद जी महाराज को जो कुछ दिख रहा था वह अन्य कुछ स्वनाम धन्य टी वी चैनलों में अक्सर गंगा से नाम कमाते व पर्यावरण संरक्षण , घार्मिक आस्थाओं के बात करते न अघाते उन संत स्वामी महंत गणों को न दिख रहा था जो इस बीच बदरीनाथ पुरी भी गये व मन्दिर समिति से सत्कार पा इतने गदगद थे उन्हे कहीं गंदगी के नाले सीधे अलकनंदा में जाते व पवित्र धाराओं की हंई दुर्दशा कहीं नहीं दिखी । निस्सदेह इनमें से कुछ से बहुत आपेक्षा भी नहीं की जा सकती थी ।
वे वही थे जो अंतरराष्ट्रीय लुक आऊट पाये भगोड़े व्यवसायी गुप्ता बंंधुओ के लालों की शादी में औली भी पहुंचे थे व वहां की पारिस्थितिकी के कुचलने के गवाह भी थे ।इस शादी के बाद सैकड़ों टन कूड़ा औली में समेटने के लिये छोड़ दिया गया था। यहां मजदूरों का खुले में शैाच करने का भी ब्यौरा है ।
वास्तव में केदारनाथ में प्रकृति , स्थानीय भूविज्ञान व उसकी अलौकिकता की उपेक्षा कर मुख्यतः केवल बाहर से आने वाले लाखों यात्रियों की सुख सुविधा के केदारनाथ के शहरीकरण को जो राजनैतिक कारणों से मीडिया मैनेजमेंट कर मीडिया हाइप दिया गया व राज्य सरकार जिस तरह स्थानीय पारिस्थितिकी व स्थानीय आम निवासी के आस्था के हित में खड़ी होने से चूकी उससे ही दिल्ली दरबार को लगा कि जब तक राज्य में उनके दल की केक वाक देने वाली सरकार बनी हुई है तब तक वे अन्यत्र भी धामों व पौराणिक परिसरों में बेझिझक आधुनिकी करण के नाम पर अपने सपनों को थोप सकते हैं । बस केवल इतना कहा जाता रहे कि इससे स्थानीय लोगों की आमदनी बढ़ेगी और जो विरोध कर रहें हैं वे राज्य के विकास के हितैषी नहीं हैं व कुछ मामलों में माओ दर्घन से प्रेरित भी । इसी पृष्ठभूमि में पवित्र बद्रीनाथ धाम की ओर महायोजना के नाम पर रूख हुआ है। वहां फिलहाल उजाड़ने व उधाड़ने का ही मंजर दिख रहा है ।यहां भी यदि स्थानीय जन अपनी चिंताओं केा लेकर नहीं मुखर होगा तो ऐस अभियान अन्य पौराणिक व ऐतहासिक मंदिर समूहों की तरफ भी अश्वमेघी अश्व दौड़ा देगंगे । पर सोचंे कैसे लगेगा जब कोई अनाम गुजरात महाराष्ट्र या अन्य राज्य का अनामी धनपति किसी दिन इसकी स्वीकृति ले लेगा कि वह आदि बद्री धाम या जागेश्वर धाम के परिसर के मंदिरों मूर्तियों दैव प्रतिमाओं को पीतल पर मढ़ी सोने की बर्क चढ़ाना चाहता है । आम गढ़वाली कुमांऊनी उत्तराखंडी को केैसा लगेगा ? खेद जनक तो यह है कि पुरातत्व संरक्षण वाले विभाग इसे पुरातत्व से छेड़छाड़ मान कर नोटिस या आपत्ति जारी नहीं करते हैं । न भूलें कि केदारनाथ मंदिर के विवादस्पद सोने परत लगाऊ काण्ड में मीडिया में एक सक्षम पदाधिकारी ने भी कहा था कि यह सब भारतीय पुरातत्व की स्वीकृति व सहमति से हुआ । निस्संदेह यह सत्य भी हो सकता है । ऐसे में जिसने इस तरह के अनुमति पाने के निये आवेदन दिया उसका नाम ,वह आवेदन व वह अनापत्ति अनुमति सार्वजनिक होनी चाहिये । केदारनाथ के निर्माणों की आत्मघाती दौड़ 2013 आपदा बाद के पुननिर्माण से जोड़ी भी जा सकती है किन्तु श्री बदरीनाथ धाम में ऐसी महत्ती जरूरत नहीं थी । क्या जरूरत थी स्थानीय पण्डा पुरोहितों को वह दिन दिखाने की जब वो कपाट खुलने के अवसर पर श्री बदरीनाथपुरी पहुंचें तो उनको अपनी घर व दुकानें न दिखे ।
सत्तारूढ़ दल के एक राज्य स्तरीय नेता ने दो माह पहले एक बयान दिया था कि केन्द्रीय परिवहन मंत्री नीतिन गडकरी खुद कार से चार धाम की सड़कों की स्थिति जानने के लिये कार से आयेंगे वो अभीतक तो आये नहीं । हां इस बीच वाहनों पर बोल्डर भी गिरें हैं । लोग मार्गाों पर चोटिल व जा जोखिमों के साथ ही यात्रा कर रहें हैं । औल वेदर रोड के नाम से शुरू हूई सड़क साफ दिख रहा है ढपोलशंखी औल वेदर का तगमा लगाये हुई हैं । हालांकि उनकी जन्म गाथा हजारों पेड़ों को मौत के घाट सुलाने से भी जुड़ी हुई है ।
इसी परिपेक्ष में भाजपा की पूर्व केन्द्रीय मंत्री व म प्र की पूर्व मुख्य मंत्री उमा भारती जी का जनवरी 2023 दूसरे सप्ताह में जोशीमठ भूधंसाव देखने पहुंचने के बाद मीडिया मे प्रकाशित व प्रसारित हुआ यह बयान यथार्थ के बहुत बहुत निकट है कि दिल्ली के योजनाकार उत्तराखंड को खा जायेंगे । परोक्ष रूप से यह उत्तराखंड वासियों को अपने हितों के स्वयं संरक्षण करने के लिये आहवाहन भी करना था । परन्तु यह नैतिक जिम्मेदारी उन राज्य सरकारों की भी तो जो हर बात को मान लेती हैं ।
अभी तक प्रधान मंत्री जी का औपचारिक निमंत्रणों को स्वीकार कर श्री केदारनाथ धाम व श्री बदरीनाथ धाम जो आना होता है वह नहीं हुआ । पर लगता यही है कि अब यदि आयेंगे भी तो बिना डैमेज कंट्रौल और मीडिया मैनेजमेंट के शायद ही आयें ।अन्यथा अभी तक तो धामों मेंव अन्यत्र ड्रीम प्रोजेक्टों की धार्मिक , सामाजिक , पारिस्थितिकी मार , केदारनाथ गर्भगृह स्वर्ण मंडन बदनामी व छः माह के बाद भी जोशीमठ भूधंसाव वैज्ञानिक सर्वेक्षण रिपोर्टों का न आना व जोशीमठ वासियेंा की अन्यायी उपेक्षा , श्री बद्रीनाथ की बदहाली ही नित की खबरों के शीर्ष में है ।ये बिना बुलाईं बदनामीयां जो देहलीज पर आ गई हैं वो तोअसर छोडेंगी ही । कुछ को शायद अपने सिर ठीकरा भी लेना पड़े । निस्संदेह कपाट बंद होने के आसपास तो आना ही चाहेंगे जब प्रमुख राज्यों के विधान सभाई चुनाव सन्निकट होंगे या हो रहे होंगे वे देवभूमि धामों में आना ही चाहेंगे और जब लोक सभा चुनाव होंगे उस समय संभावना यही है कि चार धामों के कपाट शीत कालीन बंदी में होंगे । भगवान बदरीनाथ की पूजा आराधना स्थली जोशीमठ की तब तक की स्थिति क्या होगी । यह तो समय ही बतायेगा । वहां के संघर्षशीलों को एक बार माओवादी तक करार दिया गया है । किन्तु ये तथ्य तो है ही कि चार धामों से चुनावी राज्यों में संदेश भेजना आसान होता है । खासकर जब कहीं कहीं विधान सभाई क्षेत्रों में चुनाव प्रचार रोक दिया गया हो। इसके पहले भी कई उदाहरण रहें हैं । हिमाचल विधान सभा चुनाव के समय भी ऐसा ही हुआ था ।
मंदिर आस्थाओं के केन्द्र होते हैं । आती जाती सरकारों को किसी के सपने पूरे करने लिये या अपनी समझ से भव्यता देने के लिये उसके बाहरी व भीतरी परिवेश में परिवर्तनों से बचना चाहिये । इसी संदर्भ में मैं समझता हूं कि आस्थवान परम शक्ति से राज्य व देश हित में यही अनुनय विनय होगी कि भगवान हम नहीं जानते कि उन श्री धामों को जिनके मंदिरों की पुर्नस्थापना के मूल में जगदगुरू आदि श्री शंकराचार्य जी का लगभग एकाकी सामर्थ्य व प्रयास ही था उनमें जो कुछ भव्यता दिव्यता लाने के सरकारी प्रयास हो रहें हैं उसको आप कैसे स्वीकार करोगे । सरकारों की त्रुटियों के लिये भी हम आपसे क्षमा चाहते हैं । हम आपके पवित्र पूज्य धामों में श्री सम्पन्नता चाहते हैं और कुछ नहीं । भगवान उनको भी माफ करना जो नहीं जानते कि तुम्हारे लिये जो कुछ करना है वो कैसे करना है ।
केदारनाथ ड्रीम प्रोजेक्ट आगे केदारनाथ की पारिस्थितिकी के लिये खतरा होगा कि नहीं यह तो समय ही बतायेगा ।परन्तु यह हमारी साख के लिये खतरा बन चुका है इसमें दो राय नहीं है । बद्रीनाथ ड्रीम प्रोजेक्ट से पारिस्थितिकीय क्षतियां अभी से जग जाहिर हो रहीं हैं । मैंने स्वयं बदरीनाथ के मंदिर के आस पास के पहाड़ी क्षेत्र से लेकर माणा गांव से कुछ आगे तक पैदल सड़क सड़क 1970 के दशक में रूड़की विश्वविघालय में रहते हुये अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त भूभैतिकविद प्रांे विनोद गौड़ के साथ यहां के जलस्त्रोतों के संदर्भ में एक अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत ग्रैविटी व इलैक्ट्रिल सर्वेक्षण किया था ।तबकी स्थितियां भी यहीं थी कि यहां के भूमिगत व सतही जल स्त्रोत बहुमूल्य हैं व नाजुक भूगर्भीय स्थितियों में हैं ।
आज प्रसंगवश मैं यह भी उल्लेख करना चाहूंगा कि सहत्तर के दशक में ही जब धनपति बिड़ला परिवार की पेशकश बदरीनाथ में निर्माण व भव्यता देने आदि की थी उसी समय तत्कालिन प्रमुख ब्ल्ट्जि साप्ताहिक में मेरी एक रिपोर्ट बद्रीनाथ को बिड़लानाथ बनाये जाने की साजिश जैसे किसी शीर्षक से छपी थी । इसके पहले भी मेरी एक रिपोर्ट ब्ल्ट्जि साप्ताहिक में तब निकली थी जब धाम में साठ या सहत्तर के दशक में पूरी तरह से याद नहीं है तप्त कुण्ड से अतिप्रमुख वीआईपी के लिये पानी स्नान आदि के लिये पहुंचाने के प्रयास हुये थे व स्थानीय आस्थावानों में इसे लेकर असंतोष भी पनपा था ।
राज्य में राजनैतिक फैसले तो कर्नाटक की तरह पलटे जा सकते हैं व समाज तोड़ू नियमों अधिनियमों को जमींदोज किया जा सकता है किन्तु पारिस्थितिकिय हानियों को पुर्नस्थापित करना आसान न होगा ।
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वीरेन्द्र कुमार पैन्यूली
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