केदारनाथ उपचुनाव : विपक्ष में भाजपा से ज्यादा भरोसा जताया मतदाताओं ने
-दिनेश शास्त्री-
केदारनाथ विधानसभा क्षेत्र का उपचुनाव की प्रक्रिया शनिवार को सम्पन्न हो गई लेकिन बाजारों, गांव चौपालों पर चर्चा थमी नहीं है। चुनाव से पूर्व जो लोग चुप्पी साधे थे, वे भी अब मुखर होकर अपना विश्लेषण जाहिर करने लगे हैं। हर चुनाव में ऐसा होता है लेकिन केदारनाथ सीट का मामला कुछ हट कर है। यहां कांग्रेस को बहुत ज्यादा उम्मीदें थी, उसे लग रहा था कि बदरीनाथ और मंगलौर की तरह यहां भी जीत आसानी से मिल जाएगी। केदारनाथ यात्रा डायवर्ट करने, स्थानीय व्यवसायियों के संवेदनों को भुनाने, केदारनाथ की प्रतिष्ठा की दुहाई और सरकार के प्रति लोगों में कथित जनाक्रोश की हवा बनाने की कोशिश धरी रह गई।
इस निर्वाचन क्षेत्र में 90 हजार से थोड़ा ज्यादा कुल मतदाताओं में से 53513 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। इनमें पोस्टल बैलेट भी शामिल हैं। इनमें से सत्तारूढ़ भाजपा को 23130 मत प्राप्त हुए तो कुल मतदान का यह 43.22 प्रतिशत है।
चुनाव में कुल छह प्रत्याशी भाग्य आजमा रहे थे और सातवां नोटा को गिना जाए तो बाकी 56.78 फीसद वोट भाजपा के विरुद्ध गया है। इस लिहाज से विपक्ष भारी माना जा सकता है लेकिन यह सिर्फ एक गणना मात्र है। जीत का सेहरा जिसके सिर बंधना था, वह बंध चुका है और अगले एकाध दिन में शपथ ग्रहण भी हो जायेगा लेकिन गणना की दृष्टि से या कहें भविष्य की रणनीति के लिहाज से चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, दोनों को 51 फीसद वोट हासिल करने का टारगेट तो बनाना ही होगा।
इस सीट पर भाजपा के विरुद्ध जो 56.78 प्रतिशत मतदान हुआ है, उसमें 33. 69 प्रतिशत वोट कांग्रेस की झोली में गए और 17.32 प्रतिशत निर्दलीय त्रिभुवन चौहान ले गए। त्रिभुवन चौहान की यह उपलब्धि बहुत बड़ी है। कांग्रेस और निर्दलीय त्रिभुवन के वोट जोड़ दें तो यह आंकड़ा 51.01 बनता है। यानी इन दोनों प्रत्याशियों ने भाजपा से 7.79 प्रतिशत अधिक वोट हासिल किए। हालांकि चुनावी राजनीति में इस तरह का जोड़ घटाना नहीं चलता है। इसमें तो जो जीता वही सिकंदर होता है लेकिन ये आंकड़े भविष्य के लिए आधारभूमि जरूर बनाते हैं। वैसे बीजेपी से इतर 56.78 फीसद वोटों में यूकेडी, अन्य तथा 1.54 फीसद नोटा भी है। यूकेडी 2.43 फीसद वोट हासिल कर पाई, यह उसके भविष्य का संकेतक है लेकिन खासकर विपक्षी कांग्रेस के लिए यह बात गांठ बांध लेने की है कि सत्ता विरोधी रुझान को वह कैसे भविष्य में अपने अनुकूल कर पाएगी। अकेले 51 प्रतिशत वोट हासिल करना 2027 में उसके लिए बड़ी चुनौती रहेगी।
इस चुनाव में एक बात तो सिद्ध हो गई कि निर्दलीय त्रिभुवन चौहान भाजपा के लिए सेफ्टी वॉल्व की तरह रहे हैं। कोई भी राजनीतिक विश्लेषक इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि त्रिभुवन को जो भी वोट मिले वह सत्तापक्ष के प्रति नाराजगी के वोट थे। 17.32 प्रतिशत का आंकड़ा कम नहीं होता है।
कल्पना करें, यदि त्रिभुवन मैदान में नहीं होते तो यह वोट किधर जाता? जाहिर है यह विपक्ष की पूंजी होते और तब चुनावी नतीजा अलग हो सकता था। बदरीनाथ में यह हम देख चुके हैं। वहां तीसरे प्रत्याशी नवल खाली मात्र 3.34 प्रतिशत वोट बटोर पाए थे तो नतीजा कांग्रेस के पक्ष में गया, बेशक वहां कुछ और भी कारण थे लेकिन सीधे मुकाबले की वजह से कांग्रेस की राह वहां आसान बन गई थी जबकि केदारनाथ में कांग्रेस निर्दलीय त्रिभुवन का वजन नहीं तोल पाई।
एक लिहाज से देखें तो केदारनाथ में भाजपा की जीत के एक बड़े फैक्टर त्रिभुवन भी रहे हैं। युवाओं की नाराजगी को एकतरफा ले जाकर त्रिभुवन ने भाजपा का मार्ग निष्कंटक कर दिया, यही इस चुनाव का निष्कर्ष है। बहुत संभव है त्रिभुवन की दमदार उपस्थिति के अभाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच उन मतों का बंटवारा होता लेकिन उसका अनुपात क्या रहता?
हालांकि अब इन बातों का बहुत ज्यादा महत्व नहीं है कि ऐसा होता तो वैसा होता लेकिन भविष्य के लिए चुनाव प्रबंधन के लिहाज से एक लकीर तो खिंच ही गई है। चुनावी रणनीतिकारों को अब इन पहलुओं पर भी पैनी नजर रखनी होगी और भाजपा के सामने भी अपना मत प्रतिशत कम से कम 51 प्रतिशत तक बढ़ाने की चुनौती होगी ताकि वह अपनी प्रतिष्ठा बनाए रख सके। यही बात कांग्रेस पर भी लागू होती है अथवा किसी निर्दलीय पर भी। यानी जो भी विजयश्री का वरण करे, 51 प्रतिशत वोट का लक्ष्य ही स्पष्ट विजय का पैमाना होगा।
(नोट : लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं उत्तराखंड हिमालय पोर्टल के सम्मानित मानद सम्पादक मंडल के सदस्य एवं सलाहकार हैं –एडमिन)