मोतियों (सीप ) की खेती को बढ़ाने के लिए ट्राइफेड और पुरती के बीच समझौता
uttarakahndhimalaya.in
नयी दिल्ली, 21 सितम्बर।
केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा की उपस्तिथि में नई दिल्ली में अन्य जनजातीय उद्यमियों के बीच सीप की खेती को बढ़ावा देने के लिए ट्राइफेड और पुरती एग्रोटेक के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए। एक सीप लगभग 8 से 12 रुपए की आती है। बाजार में 1 मिमी से 20 मिमी सीप के मोती का दाम करीब 300 रूपये से लेकर 1500 रूपये होता है। अच्छी गुणवत्ता वाले प्राकृतिक मोती प्राचीन काल से ही बहुत मूल्यवान रहे हैं। इनका रत्न के रूप में या सौन्दर्य प्रसाधन के रूप में उपयोग होता रहा है।
ट्राइफेड ने सीप उगाने के लिए बनाई योजना
सीपों को उगाना और मोतियों का विकास एक स्थायी व्यवसाय है और उन जनजातीय संग्रहकर्ताओं द्वारा आसानी से अपनाया जा सकता है जिनकी आस-पास के जल निकायों अर्थात तालाबों तक आसानी से पहुंच है। ट्राइफेड ने मत्स्य पालन में संलग्न वन धन विकास केंद्र समूहों को चिन्हित कर आगे चलकर उन्हें सीप उगाने के लिए विकसित करने में उनकी सहायता करने की योजना बनाई है। भारत समेत अनेक देशों में मोतियों की माँग बढ़ती जा रही है, लेकिन दोहन और प्रदूषण से इनका उत्पादन घटता जा रहा है। अपनी घरेलू माँग को पूरा करने के लिए भारत अंतरराष्ट्रीय बाजार से हर साल मोतियों का बड़ी मात्रा में आयात करता है।
ओएस्टर घोंघा सर्वाधिक मोती बनाता है
घोंघा नाम का एक जन्तु अपने शरीर से निकलने वाले एक चिकने तरल पदार्थ द्वारा अपने घर का निर्माण करता है। घोंघे के घर को सीपी कहते हैं। इसके अन्दर वह अपने शत्रुओं से भी सुरक्षित रहता है। घोंघों की हजारों किस्में हैं और उनके शेल भी विभिन्न रंगों जैसे गुलाबी, लाल, पीले, नारंगी, भूरे तथा अन्य और भी रंगों के होते हैं तथा ये अति आकर्षक भी होते हैं। घोंघों की मोती बनाने वाली किस्म बाइवाल्वज कहलाती है इसमें से भी ओएस्टर घोंघा सर्वाधिक मोती बनाता है। मोती बनाना भी एक मजेदार प्रक्रिया है। वायु, जल व भोजन की आवश्यकता पूर्ति के लिए कभी-कभी घोंघे जब अपने शेल के द्वार खोलते हैं तो कुछ विजातीय पदार्थ जैसे रेत कण कीड़े-मकोड़े आदि उस खुले मुंह में प्रवेश कर जाते हैं। घोंघा अपनी त्वचा से निकलने वाले चिकने तरल पदार्थ द्वारा उस विजातीय पदार्थ पर परतें चढ़ाने लगता है।
सीप की खेती करने का तरीका
खेती शुरू करने के लिए किसान को पहले तालाब, नदी आदि से सीपों को इकट्ठा करना होता है या फिर इन्हे खरीदा भी जा सकता है। इसके बाद प्रत्येक सीप में छोटी-सी शल्य क्रिया के उपरान्त इसके भीतर 4 से 6 मिली मीटर व्यास वाले साधारण या डिजायनदार बीड जैसे गणेश, बुद्ध, पुष्प आकृति आदि डाले जाते है। फिर सीप को बंद किया जाता है। सीप की खेती के लिए कई संस्थानों में सरकार के द्वारा फ्री में ट्रेनिंग कराई जाती है। धूप और हवा लगने के बाद सीप का कवच और मांसपेशियां ढीली हो जाती हैं। मांशपेशियां ढीली होने के बाद सीप की सर्जरी कर सीप के अंदर सांचा डाल दें। यह सांचा जब सीप को चुभता है तो वह उस पर अपने अंदर से निकलने वाला एक पदार्थ छोड़ता है.
बुद्धन सिंह पुरती का मोती की खेती को बढ़ावा देने वाला एक अनूठा व्यवसाय
ट्राइफेड ने पुरती एग्रोटेक के बुद्धन सिंह पुरती के साथ एक समझौता ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर किए हैं। झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले की मूल निवासी “हो जनजाति” में जन्म लेने वाले बुद्धन सिंह पुरती एक जनजातीय उद्यमी हैं, जिनका सीप अर्थात मोती की खेती को बढ़ावा देने वाला एक अनूठा व्यवसाय है। इस सहयोग के तहत ट्राइफेड, पुरती एग्रोटेक को ट्राइब्स इंडिया के लिए आपूर्तिकर्ता के रूप में अपनी आपूर्तिकर्ता सूची में शामिल करेगा, और उससे सीप/मोती खरीदेगा जिसे 141 ट्राइब्स इंडिया बिक्री केन्द्रों और विभिन्न ई-कॉमर्स पोर्टलों के माध्यम से बेचा जाएगा।
टेक फॉर ट्राइबल पहल के तहत मास्टर ट्रेनर
बुद्धन सिंह पुरती को टेक फॉर ट्राइबल पहल के तहत मास्टर ट्रेनर के रूप में तैयार किया जाएगा और जनजातीय उद्यमियों को मत्स्य पालन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए अत्यधिक संख्या में जनजातीय स्वयं सहायता समूहों के साथ इस जानकारी को साझा कर प्रौद्योगिकी और तकनीकी का हस्तांतरण किया जाएगा। जहां तालाब उपलब्ध है मत्स्य पालन में लगे वहाँ के वन धन विकास केंद्र समूहों को सीप उगाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है जिसे एक अतिरिक्त व्यावसायिक गतिविधि के रूप में साथ-साथ किया जा सकता है। इसके अलावा, झारखंड में 25 वन धन विकास केंद्र समूह विकसित करने की भी योजना है जहां सीप की खेती के लिए इस तरह के मत्स्य पालन
व्यवसाय को अंजाम दिया जा सकता है।
कम लागत ज्यादा मुनाफा
एक सीप लगभग 8 से 12 रुपए की आती है। बाजार में 1 मिमी से 20 मिमी सीप के मोती का दाम करीब 300 रूपये से लेकर 1500 रूपये होता है। आजकल डिजायनर मोतियों को खासा पसन्द किया जा रहा है जिनकी बाजार में अच्छी कीमत मिलती है। भारतीय बाजार की अपेक्षा विदेशी बाजार में मोतिओ का निर्यात कर काफी अच्छा पैसा कमाया जा सकता है। तथा सीप से मोती निकाल लेने के बाद सीप को भी बाजार में बेंचा जा सकता है। सीप द्वारा कई सजावटी सामान तैयार किये जाते है। जैसे कि सिलिंग झूमर, आर्कषक झालर, गुलदस्ते आदि वही वर्तमान समय में सीपों से कन्नौज में इत्र का तेल निकालने का काम भी बड़े पैमाने पर किया जाता है। जिससे सीप को भी स्थानीय बाजार में तत्काल बेचा जा सकता है। सीपों से नदीं और तालाबों के जल का शुद्धिकरण भी होता रहता है जिससे जल प्रदूषण की समस्या से काफी हद तक निपटा जा सकता है।
uttarakahndhimalaya.in