निर्दयी जमाने में दुधारू गाय को तक अपनाने से कतरा रहे हैं लोग !
-रिखणीखाल से प्रभुपाल की रिपोर्ट –
पहले शहरों में लोग सांड जैसे अनुपयोगी पशुओं को आवारा छोड़ देते थे । कुछ निर्दयी लोग दूध न देने वाली या बीमार और घायल गायों को भी लावारिश छोड़ते थे । लेकिन पहाड़ी गावों में ऐसी निर्दयता नहीं दिखाई देती थी। दुर्भाग्य से अब निर्दयता पहाड़ों में भी घुस गयी है। पलायन के कारण पशुपालन लोगों को बोझ लगने लगा है। घास चारे की जिम्मेदारी से बचने के लिए लोग अपने दुधारू गायों को तक त्यागने लगे हैं ।पहाड़ी नगरों में जो गो सदन संचालित हो रहे हैं उन सभी में क्षमता से कहीं अधिक गायें ठूंसी गयी हैं। वहां भी गोधन की दुर्दशा ही हो रही है। देहरादून का कांजी हाउस इसका उदाहरण है।
कुछ दिन पहले रिखणीखाल के चुरानी- सिद्धखाल के पास पूर्वी नयार नदी में 11 आवारा पशु नदी के तेज बहाव के बीच फंस गये थे,जिन्हें बामुश्किल पानी का बहाव कम होने पर बाहर निकाला जा सका। लेकिन रेस्क्यू की गयी इन गायों के मालिक सामने नहीं आ रहे हैं ।
इस बीच वहीं के स्थानीय निवासी आशु जोशी ने जानकारी दी है कि उनमें से एक गाय ने 2-3 दिन पहले नदी के किनारे ही नवजात बछड़े को जन्म दे दिया।बछड़ा स्वस्थ है।लेकिन कोई भी स्थानीय निवासी उस दुधारू गाय को पालने को तैयार नहीं है।आजकल आवारा व निरीह पशुओं की हालत ऐसी ही हो रही है कि कोई पालने को साहस नहीं कर रहा है। गाय अपने दो तीन दिन के नवजात बछड़े को लेकर नदी के आसपास व जंगल में घूमती फिरती नजर आ रही है।
जानकारी में ये भी आया है कि इन आवारा पशुओं के कान में आधार कार्ड से लिंक टैग लगे है,इससे इनके मालिकों की पहचान आसानी से हो सकती है।यदि सम्बन्धित विभाग रुचि ले तो।लेकिन ऐसा होना असम्भव प्रतीत होता है।कहावत है” बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा “।
इस इलाके में कयी पशु आवारा देखे जा सकते हैं लेकिन विभाग कोई ठोस कार्रवाई करने से कतराता है।सरकार दावे तो बहुत करती है लेकिन कागजों तक सीमित है।
इस इलाके में बाघ (गुलदार) की अति सक्रियता को ध्यान में रखते हुए कुछ लोग पशुओं से मुक्ति के लिए बाघ का इंतजार करने लगे है।