नेता जी की जयन्ति पर राजनीति उचित नहीं है
–गोविन्द प्रसाद बहुगुणा
नेताजी की जयन्ति संयोगवशात् इस समय चुनावी वर्ष में चर्चा का विषय बन गई । यह नेता जी ही थे जिन्होने सबसे पहले महात्मा गांधी को फादर आफ नेशन कहा था और यह कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर ही थे जिन्होने उनको महात्मा की उपाधि दी थी । कस्तूरबा की मृत्यु पर नेता जी ने वर्मा से अपने रेडियो प्रसारण में देशवासियों को भेजे शोक संदेश में कहा था आज देश ने अपनी मां को खो दिया …
दुर्भाग्य से इस देश में दिवंगत विभूतियों के नाम पर राजनीति करने की एक बुरी परम्परा स्थापित हो रही है यह स्वस्थ मानसिकता नहीं कही जा सकती । एक बार मैने नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की पुत्री ७७वर्षीय अनिता बोस का इण्टरव्यू सुना था जो मुझे बहुत ईमानदार साक्षात्कार लगा । मुझे याद आया कि वर्षों पहले जब वह जर्मनी से भारत आई थी उस समय तक नेहरू जी की मृत्यु हो चुकी थी तो पत्रकारों ने उनसे कुछ असहज प्रश्न किये थे -जैसे कि आपके पिता जी ने देश के लिये इतना कुछ किया तो भारत सरकार ने उनके प्रति क्या किया ,उन्हें मरणोपरांत कोई सम्मान नहीं दिया गया ? उस समय अनिता बोस का यह बडा सधा हुआ उत्तर था कि पिता जी ने देश के लिए जो कुछ किया वह उनका मिशन था,उनका अपना संतोष और passion था । उन्होने कभी नहीं सोचा और चाहा होगा कि मेरे मरने के बाद लोग मुझे किस दृष्टि से देखेंगे। उन्होने जो कुछ किया होगा अपने देश के लिये किया कोई अहसान नहीं किया देश पर , सभी देश भक्त यही सोचते हैं। हमारे इधर जर्मनी में कोई इस तरह नहीं सोचते। इस उत्तर के बाद पत्रकारों की बोलती बन्द हो गयी । आज भी वही अंदाज था ।
मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री काल में नेता जी सुभाषचंद्र बोस की मृत्यु के कारणों पर बाकामदा एक जांच कमिशन बिठाया गया था जो बेनतीजा निकला क्योंकि उस जांच कमिशन की नियुक्ति के पीछे राजनीतिक कारण थे जो सफल नहीं हुए। मुझे नेता जी के लिखे कुछ पत्रों को पढने का सौभाग्य मिला सप्रू हाउस लाइब्रेरी में लेकिन उन पत्रों में अपने समकालीन नेताओं के प्रति किसी प्रकार की दुर्भावना की झलक नहीं मिली। नेता जी निःसंदेह बहादुर देश भक्त थे और प्रतिभावान नेता थे । भारतीय लोकमानस में उनके प्रति श्रद्धा का जो भाव है वह किसी भी प्रकार उनके समकालीन नेताओं की तुलना में कमतर नहीं है। उनके विषय में पट्टाभिसितारामैया तथा हरिविष्णु कामथ ICS के संस्मरण पठनीय हैं ।