शहादत दिवस पर विशेष : शहीदे आजम भगतसिंह आप हमारे हीरो हैं और रहेंगे!
-अनन्त आकाश
हिन्दुस्तान के क्रान्तिकारी आन्दोलन के महानायक शहीदे आजम भगतसिंह की 23मार्च को 93वा शहादत दिवस है । इसी दिन उनके साथ सुखदेव तथा राजगुरु को भी फांसी दी गयी थी ।
28 सितंबर 1907 लायलपुर पंजाब में सरदार किशन सिंह के घर जन्मे भगतसिंह ने बहुत ही कम उम्र में अंग्रेजों के जुल्मों सितम को करीब से देखा भी तथा महसूस भी किया । उनकी प्राथमिक शिक्षा गांव में हुई तथा उन्होंने मैट्रिक का दाखिला नेशनल स्कूल लाहौर में लिया । भगतसिंह का परिवार आजादी के आन्दोलन की मुख्यधारा से जुड़ा हुआ था तथा उनके परिवार का कुर्बानी व संघर्षों का इतिहास था। यही कारण है कि जब उन्हें फांसी की सजा हुई तो उनका परिवार आखिर बार भगतसिंह को मिलने गया तो उनकी दादी ने कहा भगत सिंह तुने हमारा सर ऊंचा कर दिया ।
भगतसिंह जब छोटे थे तो बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 अमृतसर के जलियांवाला बाग में जनरल डायर के आदेश पर गोलीबारी हुई जिसमें सैकड़ों की संख्या निहत्थे लोग मारे गये तथा हजारों की संख्या में घायल हुऐ जिनमें बड़ी संख्या में बूढ़े ,बच्चे और महिलाऐ शामिल थी । इस घटना से नन्हे भगतसिंह को भारी आघात लगा ।उन दिनों देश के युवाओं की तरह ही भगतसिंह पर महात्मा गांधी का काफी प्रभाव था वे गांधी जी को अपना आदर्श मानने लग गये थे ।
20 नवम्बर 1920 को कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गांघी जी का अहिंसा तथा असहयोग आन्दोलन का प्रस्ताव पारित हुआ । महात्मा गांधी के आह्वान पर असहयोग आन्दोलन की शुरुआत हुई जिसमें सरकार को टैक्स न देना, सरकारी नौकरियों से इस्तीफा, स्कूल कालेजों का बहिष्कार, विदेशी कपड़ों की होली जलाई गयी। गांधी जी के आह्वान पर पूरा देश अंग्रेजों के खिलाफ सड़कों पर था। हजारों की संख्या में छात्र अपनी पढा़ई छोड़कर गांधीजी के असहयोग आन्दोलन में कूद चुके थे । लोगों को लग रहा था कि अब जल्दी ही आजादी मिल जाऐगी, किन्तु चोराचोरा काण्ड के बाद गांधी जी ने अचानक असहयोग आन्दोलन वापस लिया जिस कारण लोगों में भारी निराशा हुई । कुछ युवाओं का गांधी जी से मोहमंग होने लगा वे विकल्प की तलाश में लग गये । इस बीच लाहौर, कानपुर , दिल्ली, कलकत्ता तथा देश के अन्य हिस्सों में क्रान्तिकारी गतिविधियों में तेज आयी जिनसे युवा तेजी से जुड़ने लगे। 1924 हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एशोसिएशन का गठन हुआ तथा जिसका मुख्य मकसद युवाओं को जोड़कर उन्हें आजादी के आन्दोलन की
क्रान्तिकारी धारा जोड़कर अपनी गतिविधियों में तेजी लाना था ।
शुरुआत में क्रान्तिकारियों का मकसद सरकारी तन्त्र को जगह-जगह नुकसान पंहुचाने तथा अपनी गतिविधियों को संचालित के लिए धन एकत्रित करना था । 9 अगस्त 1925 काकोरी में ट्रेन लूट के पीछे भी यही मकसद था । किन्तु धीरे धीरे अनुभव ने उन्हें आन्दोलन का वैचारिक आधार बढ़ाने पर जोर दिया और लाहौर में 1925 को नौजवान भारत सभा गठन तथा भगतसिंह और अन्य साथियों के जुड़ने से क्रान्तिकारी आन्दोलन की दिशा में महत्वपूर्ण बदलाव आया ।
9 व 10 सितंबर 1928 से एच आर ए अब एच आर एस ए के नाम से जाना जाने लगा ,उन दिनों युवाओं पर सोवियत क्रान्ति का भी काफी प्रभाव था ,इसलिए भगतसिंह के नेतृत्व में इसी दिशा की ओर अपने देश में बदलाव चाहते थे तथा वे पूर्ण स्वराज्य के पक्षधर थे। दूसरी तरफ गांधी जी के नेतृत्व में डोमिनियन स्टेट की मांग जो कि आधा स्वराज्य जिसका नियंत्रण अन्ततः अंग्रेजी हुकूमत के पास ही रहे । उस दौर में दो विचारधाराओं का टकराव चल रहा था । 8 अप्रैल 1928 पब्लिक सैफ्टी बिलों के खिलाफ भगतसिंह ,बटुकेश्वर दत्त द्वारा दिल्ली असेम्बली में बम फेंका गया । वे एसेम्बली बमकाण्ड के माध्यम से अवाम के सामने क्रान्तिकारियों के उद्देश्यों को रखना चाहते थे ।
उसके बाद दोनों ने गिरफ्तारी दी । कोर्ट में जब भी क्रान्तिकारी पेश किये जाते तो कोर्ट के माध्यम से अवाम तक अपनी बात रखते इस प्रकार अब क्रान्तिकारी आन्दोलन वैचारिक परिपक्वता से भरा हुआ था । उनका मानना था कि कौमी एकता के माध्यम से अंग्रेजों से लड़ा जा सकता है क्योंकि हमारे देश में उस समय और आज भी ऐसे ताकतें हैं जिन्हें कौमी एकता नापसंद रही । वे लोग एकता तोड़ने लिए अंग्रेजों के लिए मुखबिरी भी कर रहे थे तथा पेंशन भी ले रहे थे ।
सन् 1929 को 17 नवम्बर साईमन कमीशन के बहिष्कार का नेतृत्व कर रहे लाला लाजपतराय पर पुलिस के बर्बर हमले तथा उनकी मौत तथा सरकार की दमनात्मक कार्यवाही के बीच क्रान्तिकारियों ने लालाजी के मौत के बदला लेने की योजना बनाई जिसमें 17 दिसम्बर 1929 हत्या का जिम्मेदार स्कोट्स को मारने की योजना थी । किन्तु मारा गया जलियांवाला बाग का हत्यारा साण्डर्स ! असेंबली बमकांड के बाद अंग्रेजी हुकूमत ने एक के बाद क्रान्तिकारियों की गिरफ्तारी तथा उन पर सभी केश दर्ज किये ताकि वे जेल से बाहर ही न आ सके ।
इस बीच तमाम केसों पर सुनवाई ,जेल कैदियों के साथ हो रहे भेदभाव तथा अन्य सभी मांगों को लेकर भगतसिंह आदि क्रान्तिकारियों द्वारा लम्बी भूख हड़ताल तथा अन्त में खुशी खुशी देश के लिए शहादत देना ऐसी मिसाल है कि जो युगों युगों तक अन्याय व अत्याचार के खिलाफ लड़ते रहें, अवाम को दिशा देती रहेगी ।आज फिर से हमारे समाज में साम्प्रदायिक सौहार्दपूर्ण माहौल बनाने के संघर्ष को तेज करने की आवश्यकता तभी हम साझी शहादत ,साझी बिरासत की परम्परा की रक्षा कर सकते हैं ।यही शहीदों को हमारी सच्ची श्रद्धान्जलि होगी ।