वैज्ञानिकों ने खोजी आग से भी न जलने और दोहरे खिलने वाली डिक्लिप्टेरा की दुर्लभ नई प्रजाति
Dicliptera polymorpha is a distinctive species, notable for its fire-resilient, pyrophytic habit and its unusual dual-blooming pattern. In addition to its typical post-monsoon flowering, the species exhibits a second, vigorous burst of flowering triggered by the grassland fires commonly set by locals in the region. This species is taxonomically unique, with inflorescence units (cymules) that develop into spicate inflorescences. It is the only known Indian species with this spicate inflorescence structure, with its closest ally being found in Africa. The discovery of Dicliptera polymorpha holds important conservation implications. The species’ unique adaptation to fire and its limited habitat range in the Western Ghats highlight the need for careful management of grassland ecosystems. Frequent human-induced fires, while part of the species’ life cycle, must be balanced to prevent habitat degradation that could threaten its survival. Protecting the grasslands from overuse and ensuring that fire management practices support biodiversity are crucial steps in conserving this newly discovered species.
-by-Usha Rawat
भारत के पश्चिमी घाट में एक नई अग्निरोधी दोहरे खिलने वाली प्रजाति की खोज की गई है। यह एक ऐसी पुष्प संरचना है जो भारतीय प्रजातियों में दुर्लभ है। यह प्रजाति पश्चिमी घाट में पाई जाती है, जहां कई ऐसी प्रजातियां पाई जाती हैं जिनकी खोज अभी तक नहीं की गई है।
भारत के चार वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट में से एक पश्चिमी घाट, लंबे समय से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के तहत एक स्वायत्त संस्थान, पुणे के अघारकर अनुसंधान संस्थान (एआरआई) द्वारा अन्वेषण का केंद्र रहा है। पिछले कुछ दशकों से, एआरआई के वैज्ञानिक इस क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता का गहन अध्ययन कर रहे हैं।
डॉ. मंदार दातार के नेतृत्व में एक टीम द्वारा हाल ही में की गई खोज, जिसमें तलेगांव-दभाड़े के वनस्पतिशास्त्री आदित्य धरप और पीएचडी छात्र भूषण शिगवान शामिल हैं, ने डिक्लिप्टेरा जीनस में एक नई प्रजाति को जोड़ा है, जिसका नाम उन्होंने डिक्लिप्टेरा पॉलीमोर्फा रखा है। यह प्रजाति तलेगांव-दभाड़े से एकत्र की गई थी, जो अपने घास के मैदानों और चारा बाजारों के लिए जाना जाता है।
डिक्लिप्टेरा पॉलीमोर्फा एक विशिष्ट प्रजाति है, जो अपनी अग्निरोधी, पायरोफाइटिक प्रकृति और अपने असामान्य दोहरे खिलने के लिए उल्लेखनीय है। यह प्रजाति वर्गीकरण की दृष्टि से अद्वितीय है, जिसमें पुष्पक्रम इकाइयां (सिम्यूल्स) होती हैं जो स्पाइकेट पुष्पक्रम में विकसित होती हैं। यह स्पाइकेट पुष्पक्रम संरचना वाली एकमात्र ज्ञात भारतीय प्रजाति है, जिसका सबसे करीबी सहयोगी अफ्रीका में पाया जाता है।
इस प्रजाति का नाम इसके विविध रूपात्मक लक्षणों को दर्शाने के लिए डिक्लिप्टेरा पॉलीमोर्फा रखा गया था। पहले नमूने 2020 के मानसून के दौरान एकत्र किए गए थे। इसकी विशेषताओं की स्थिरता की पुष्टि करने के लिए अगले कुछ वर्षों तक आदित्य धरप द्वारा निगरानी की गई थी। लंदन के केव बोटेनिक गार्डन के अग्रणी वैश्विक विशेषज्ञ डॉ. आई. डार्बीशायर ने इस प्रजाति की नवीनता की पुष्टि की। इस प्रजाति के बारे में विस्तृत जानकारी देने वाला एक शोध पत्र हाल ही में प्रतिष्ठित पत्रिका केव बुलेटिन में प्रकाशित हुआ था।
डिक्लिपटेरा पॉलीमोर्फा उत्तरी पश्चिमी घाट के खुले घास के मैदानों में ढलानों पर पनपता है, यह क्षेत्र गर्मियों में सूखे और अक्सर मानव-प्रेरित आग जैसी चरम जलवायु स्थितियों के संपर्क में आता है। इन कठोर परिस्थितियों के बावजूद यह प्रजाति अस्तित्व में रहने और साल में दो बार खिलने के लिए खुद को अनुकूलित किया है। पहला पुष्प चरण मानसून के बाद (नवंबर की शुरुआत) से मार्च या अप्रैल तक होता है, जबकि मई और जून में दूसरा पुष्प चरण आग से शुरू होता है। इस दूसरे चरण के दौरान, वुडी रूटस्टॉक्स छोटे पुष्पों की टहनियां पैदा करते हैं, जो अधिक प्रचुर मात्रा में लेकिन कम अवधि की होती है।
डिक्लिपटेरा पॉलीमोर्फा की खोज संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है। आग के प्रति इस प्रजाति का अनूठा अनुकूलन और पश्चिमी घाट में इसके सीमित उत्पत्ति स्थान घास के मैदानों के पारिस्थितिकी तंत्र के सावधानीपूर्वक प्रबंधन की आवश्यकता को उजागर करते हैं। बार-बार होने वाली मानव-प्रेरित आग, जो इस प्रजाति के जीवन चक्र का हिस्सा है, आवास क्षरण को रोकने के लिए संतुलित किया जाना चाहिए। घास के मैदानों को अत्यधिक उपयोग से बचाना और यह सुनिश्चित करना कि आग प्रबंधन प्रथाएं जैव विविधता का समर्थन करती हैं, इस नई खोजी गई प्रजाति के संरक्षण में महत्वपूर्ण कदम है।
यह खोज पश्चिमी घाटों के संकटपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्रों को संरक्षित करने के महत्व को प्रदर्शित करती है। इसमें अद्वितीय अनुकूलन वाली अभी कई और प्रजातियां खोजी जानी है।