कृषि उत्पादन में आत्मनिर्भरता: 1960 के दशक में शुरू हुई हरित क्रांति देश के खाद्यान्न उत्पादन में काफी तेजी लाई

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India is likely to produce 315,72 million tonnes of foodgrains in 2021-22, 1.6% higher than in the previous year, with an expected record production of rice, maize, gram, pulses, rapeseed and mustard, oilseeds and sugarcane, the agriculture ministry said in its fourth advance estimates.

भारत में उपनिवेशवाद का सबसे गहरा दाग शायद उसके अंतिम दिनों में 1940 के दशक में द्वितीय विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि में ब्रिटिश सरकार की अनुचित नीतियों के कारण लगा जब बंगाल में भारी अकाल पड़ा।

–उत्तराखंड हिमालय  ब्यूरो  —

पीछे मुड़ कर देखें तो यह अकाल बताता है कि अपनी भोजन की आवश्यकता को पूरा करने के मामले में भी भारत दूसरों पर कितना निर्भर था। आजादी के ठीक बाद, भारत को संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य विकसित अर्थव्यवस्थाओं से बड़ी मात्रा में खाद्यान्न आयात कर करना पड़ता था। लगातार 1948, 1962 और 1965 के युद्धों के दौरान भी भारत को भोजन की भारी कमी का सामना करना पड़ा। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने इसीलिए “जय जवान, जय किसान” का नारा दिया।

अब 2022 की बात: भारत का कृषि निर्यात 50 बिलियन अमरीकी डॉलर (वित्त वर्ष 2021-22) के ऐतिहासिक उच्च स्तर को छू गया। भारत ने चावल, गेहूं, चीनी सहित अन्य खाद्यान्न और मांस का अब तक का सबसे अधिक निर्यात हासिल किया। वाणिज्यिक इंटेलिजेंस और सांख्यिकी महानिदेशालय द्वारा जारी अस्थाई आंकड़ों के अनुसार 2021-22 के दौरान 19.92% की वृद्धि के साथ कृषि निर्यात में 50.21 बिलियन डॉलर की ऊंचाई छू ली गई। यह उल्लेखनीय उपलब्धि हाल के वर्षों में खाद्यान्न के उत्पादन को बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा की गई कई प्रमुख पहलों के कारण संभव हुआ है।

हालांकि, खाद्यान्न के मामले में भारत के आत्मनिर्भर होने की कहानी करीब पांच दशक पहले शुरू होती है। 1950-51 में, भारत सूखे और अकाल के साथ भोजन की कमी से पीड़ित और खाद्यान्न आयात करने को मजबूर था। तेजी से बढ़ती जनसंख्या, कृषि पर दबाव बढ़ा रही थी और देश खाद्यान्न उत्पादन और उत्पादकता गति बनाए रखने में असमर्थ था। उस समय भी, कृषि क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद में 50 प्रतिशत योगदान दे रहा था। इससे पता चलता है कि हमारी अर्थव्यवस्था किस प्रकार कृषि पर निर्भर थी।

1960 के दशक में शुरू हुई हरित क्रांति ने देश के घरेलू खाद्यान्न उत्पादन में काफी तेजी लाई तथा कृषि और सम्बद्ध क्षेत्रों की प्रगति में काफी योगदान दिया। हरित क्रांति अभियान के मुख्य फोकस क्षेत्र थे (1) खेत की उत्पादकता बढ़ाने के लिए मवेशियों के उपयोग को कम करके आधुनिक ट्रैक्टरों और अन्य मशीनरी के साथ कृषि कार्य का मशीनीकरण(2) बेहतर उपज के लिए संकर किस्मों के बीजों का उपयोग, और (3) स्वतंत्रता के बाद बनाए गए नए बांधों का सिंचाई के लिए बेहतर उपयोग । इसने भारत को एक खाद्यान्न कमी वाले देश से एक खाद्यान्न बहुलता वाले देश में बदल दिया।

भारत ने पिछले कई दशकों में खाद्यान्न के उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल की है जो हमारे कृषि क्षेत्र के साथ-साथ समग्र अर्थव्यवस्था के लिए एक विशाल उपलब्धि है।

आज भारत विश्व का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक देश है और चावल उत्पादन में चीन के बाद उसका दूसरा स्थान है। भारत गेहूं उत्पादन का भी दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है जिसकी 2020 में दुनिया के कुल उत्पादन में लगभग 14.14 प्रतिशत की हिस्सेदारी थी। भारत दलहन उत्पादन में भी धीरे-धीरे आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। कृषि उत्पादन के चौथे अग्रिम अनुमानों के अनुसार, देश में खाद्यान्न का उत्पादन 315.72 मिलियन टन होने का अनुमान है जो 2020-21 में हुए खाद्यान्न के उत्पादन से 4.98 मिलियन टन अधिक है।

यह गौरतलब है कि हमारे किसानों ने सदी की सबसे घातक महामारी के दौरान रिकॉर्ड खाद्यान्न पैदा किया, जबकि पूरी दुनिया कोविड-19 के प्रभाव में लड़खड़ा रही थी। लॉकडाउन के दौरान किसानों की सुविधा के लिए 2,067 से अधिक कृषि बाजारों को क्रियाशील बनाया गया। किसानों और व्यापारियों की सुविधा के लिए अप्रैल 2020 में किसान रथ एप्लिकेशन लॉन्च किया गया था ताकि और कृषि/बागवानी उत्पादों के परिवहन सुचारु रूप से चल सकें। किसानों के विश्वास को बनाये रखने के लिए, भारत सरकार ने खरीफ और रबी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य बुवाई से पहले ही घोषित करती दी थी जिससे लाभकारी मूल्य सुनिश्चित किये जा सकें।

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        *2021-22 के आंकड़े खाद्यान्न उत्पादन के चौथे अनुमानों पर आधारित है

कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की नब्ज बनी हुई है और वह देश के सामाजिक-आर्थिक विकास की जड़ है। वह सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 19 प्रतिशत हिस्सा है और लगभग दो-तिहाई आबादी इस क्षेत्र पर निर्भर है। अन्य क्षेत्रों की वृद्धि और समग्र अर्थव्यवस्था काफी हद तक कृषि के प्रदर्शन पर निर्भर करती है। यह न केवल बड़ी आबादी के लिए आजीविका और खाद्य सुरक्षा का एक स्रोत है साथ ही कम आय वाले, गरीब और कमजोर वर्गों के लिए भी इसका विशेष महत्व है।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के अनुसार, प्रति कृषक परिवार की अनुमानित औसत मासिक आय 2012-13 में 6426 रुपये से बढ़ कर 2018-19 में 10,218 रुपये हो गई। ऐसा किसानों की आय बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा कृषि को केन्द्र में रखते हुए की गई तमाम पहलों के कारण संभव हुआ है। पीएम किसान योजना के माध्यम से किसानों को आय सहायता प्रदान की जाती है, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के माध्यम से फसल बीमा सुनिश्चित किया जाता है और प्रधानमंत्री कृषि के सिंचाई योजना के तहत सिंचाई सुविधाएं सुनिश्चित की जाती है। किसान क्रेडिट कार्ड और अन्य चैनलों के माध्यम से संस्थागत ऋण तक पहुंच प्रदान की जा रही है। ई-नाम पहल से देश भर के बाजार अब किसानों के लिए खुले हैं, ताकि वे अपनी उपज का अधिक लाभकारी मूल्य प्राप्त कर सकें। प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा) विभिन्न खरीफ और रबी फसलों के लिए किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करता है। साथ ही यह एक मजबूत खरीद तंत्र को भी बनाए रखता है। सरकार ने देश भर में फैले 3.25 लाख से अधिक उर्वरकों की दुकानों को प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र के रूप में बदलने की घोषणा की है। ये ऐसे केंद्र होंगे जहां किसान न केवल खाद और बीज खरीद सकते हैं बल्कि मिट्टी परीक्षण भी करवा सकते हैं और खेती के बारे में उपयोगी तकनीकी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा, संपूर्ण देश में भारत‘ ब्रांड नाम से वन नेशनवन फर्टिलाइजर की शुरुआत की गई है जो देश में उर्वरकों की उपलब्धता बढ़ाने के साथ उनकी लागत कम करेगा।

भारतीय कृषि को भविष्य के लिए तैयार करने के लिए सतत कृषि के लिए राष्ट्रीय मिशन जैसी पहलों को बढ़ावा देने, वैज्ञानिक भंडारण और ड्रोन प्रौद्योगिकियों को अपनाने का काम किया गया है। सरकार ने कृषि क्षेत्र में निवेश बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं जैसे एग्री-टेक इंफ्रास्ट्रक्चर फंड की स्थापनापरम्परागत कृषि विकास योजना के माध्यम से जैविक खेती को बढ़ावा देना, और एक दीर्घकालिक सिंचाई कोष तथा सूक्ष्म सिंचाई कोष बनाना शामिल है। इनके अलावा, कृषि आधारभूत संरचना कोष से किसानों, स्टार्ट-अप, सरकारी संस्थाओं और स्थानीय निकायों को बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की स्थापना में मदद मिलती है।  राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत राज्य सरकारों को उनके यहां स्वीकृत परियोजनाओं के आधार पर अनुदान दिया जाता है।

आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते देश की यात्रा में किसानों और कृषि क्षेत्र की अहं भूमिका है। केंद्र सरकार किसानों के उत्थान, सशक्तिकरण और स्थिरता के लिए समग्र रूप से महत्वपूर्ण कदम उठा रही है और वह समय दूर नहीं जब सरकार की लगातार पहल और निवेश से कृषि क्षेत्र का चेहरा और चमकेगा।

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