खाद्यान्न उत्पादन में भारत की आत्मनिर्भरता की कहानी पांच दशक से शुरू हुयी
India’s foodgrain self-reliance journey began in the 1950s when the country was facing acute food shortages. At that time, India was heavily dependent on food imports to feed its population. In response to this challenge, the Indian government launched the Green Revolution in the 1960s, which involved the introduction of high-yielding varieties of seeds, modern agricultural practices, and the use of fertilizers and irrigation to boost crop yields.
–उषा रावत —
भारत की खाद्यान्न आत्मनिर्भरता यात्रा 1950 के दशक में शुरू हुई जब देश भोजन की भारी कमी का सामना कर रहा था। उस समय, भारत अपनी आबादी को खिलाने के लिए खाद्य आयात पर बहुत अधिक निर्भर था। इस चुनौती के जवाब में, भारत सरकार ने 1960 के दशक में हरित क्रांति की शुरुआत की, जिसमें फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए बीजों की उच्च उपज वाली किस्मों, आधुनिक कृषि पद्धतियों और उर्वरकों और सिंचाई के उपयोग की शुरुआत शामिल थी।
इन प्रयासों के परिणामस्वरूप, भारत के खाद्यान्न उत्पादन में काफी वृद्धि हुई और देश ने 1970 के दशक के मध्य में खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता हासिल की। यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था, क्योंकि इसने अन्य देशों से खाद्य सहायता पर देश की निर्भरता को समाप्त कर दिया।वर्षों से, भारत ने अपनी जनसंख्या की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अपने खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ाने पर ध्यान देना जारी रखा है। सरकार ने किसानों को समर्थन देने और कृषि उत्पादकता को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना जैसी विभिन्न नीतियों और कार्यक्रमों की शुरुआत की है।

आज, चावल, गेहूं, मक्का और दालों सहित प्रमुख फसलों के साथ, भारत खाद्यान्न के दुनिया के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है। जलवायु परिवर्तन, मिट्टी के क्षरण और पानी की कमी से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद, भारत अपनी खाद्यान्न आत्मनिर्भरता बनाए रखने में सक्षम रहा है और अपनी बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपनी कृषि उत्पादकता को और बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है।
वर्ष 2022-23 के दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार, देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन रिकॉर्ड 3235.54 लाख टन होने का अनुमान है, जो पिछले वर्ष 2021-22 की तुलना में 79.38 एलएमटी अधिक है। एफएओ के अनुसार आज भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खाद्य उत्पादक देश है। भारत दूध और दालों का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है जबकि चावल, गेहूं, गन्ना, मूंगफली, सब्जियां, फल और मछली उत्पादन के मामले में नंबर दो पर है। देश में खाद्यान्न का उत्पादन रिकॉर्ड 31.451 करोड़ टन होने का अनुमान है जो 2020-21 की अवधि के खाद्यान्न उत्पादन की तुलना में 37.7 लाख टन अधिक है। 2021-22 के दौरान उत्पादन उससे पिछले पांच वर्षों (2016-17 से 2020-21) के औसत खाद्यान्न उत्पादन की तुलना में 2.38 करोड़ टन अधिक है।
2021-22 के लिए तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार, देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन रिकॉर्ड 31.451 करोड़ टन होने का अनुमान है जो 2020-21 के दौरान खाद्यान्न उत्पादन की तुलना में 37.7 लाख टन अधिक है। इसके अलावा, 2021-22 के दौरान उत्पादन पिछले पांच वर्षों (2016-17 से 2020-21) के औसत खाद्यान्न उत्पादन की तुलना में 2.380 करोड़ टन अधिक है। 2021-22 के दौरान चावल का कुल उत्पादन रिकॉर्ड 12.966 करोड़ टन होने का अनुमान है। यह पिछले पांच वर्षों के 11.643 करोड़ टन के औसत उत्पादन से 1.323 करोड़ टन अधिक है।
हालांकि, खाद्यान्न के मामले में भारत के आत्मनिर्भर होने की कहानी करीब पांच दशक पहले शुरू होती है। 1950-51 में, भारत सूखे और अकाल के साथ भोजन की कमी से पीड़ित और खाद्यान्न आयात करने को मजबूर था। तेजी से बढ़ती जनसंख्या, कृषि पर दबाव बढ़ा रही थी और देश खाद्यान्न उत्पादन और उत्पादकता गति बनाए रखने में असमर्थ था। उस समय भी, कृषि क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद में 50 प्रतिशत योगदान दे रहा था। इससे पता चलता है कि हमारी अर्थव्यवस्था किस प्रकार कृषि पर निर्भर थी।
1960 के दशक में शुरू हुई हरित क्रांति ने देश के घरेलू खाद्यान्न उत्पादन में काफी तेजी लाई तथा कृषि और सम्बद्ध क्षेत्रों की प्रगति में काफी योगदान दिया। हरित क्रांति अभियान के मुख्य फोकस क्षेत्र थे (1) खेत की उत्पादकता बढ़ाने के लिए मवेशियों के उपयोग को कम करके आधुनिक ट्रैक्टरों और अन्य मशीनरी के साथ कृषि कार्य का मशीनीकरण, (2) बेहतर उपज के लिए संकर किस्मों के बीजों का उपयोग, और (3) स्वतंत्रता के बाद बनाए गए नए बांधों का सिंचाई के लिए बेहतर उपयोग । इसने भारत को एक खाद्यान्न कमी वाले देश से एक खाद्यान्न बहुलता वाले देश में बदल दिया।
भारत ने पिछले कई दशकों में खाद्यान्न के उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल की है जो हमारे कृषि क्षेत्र के साथ-साथ समग्र अर्थव्यवस्था के लिए एक विशाल उपलब्धि है।
आज भारत विश्व का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक देश है और चावल उत्पादन में चीन के बाद उसका दूसरा स्थान है। भारत गेहूं उत्पादन का भी दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है जिसकी 2020 में दुनिया के कुल उत्पादन में लगभग 14.14 प्रतिशत की हिस्सेदारी थी। भारत दलहन उत्पादन में भी धीरे-धीरे आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। कृषि उत्पादन के चौथे अग्रिम अनुमानों के अनुसार, देश में खाद्यान्न का उत्पादन 315.72 मिलियन टन होने का अनुमान है जो 2020-21 में हुए खाद्यान्न के उत्पादन से 4.98 मिलियन टन अधिक है।
यह गौरतलब है कि हमारे किसानों ने सदी की सबसे घातक महामारी के दौरान रिकॉर्ड खाद्यान्न पैदा किया, जबकि पूरी दुनिया कोविड-19 के प्रभाव में लड़खड़ा रही थी। लॉकडाउन के दौरान किसानों की सुविधा के लिए 2,067 से अधिक कृषि बाजारों को क्रियाशील बनाया गया। किसानों और व्यापारियों की सुविधा के लिए अप्रैल 2020 में किसान रथ एप्लिकेशन लॉन्च किया गया था ताकि और कृषि/बागवानी उत्पादों के परिवहन सुचारु रूप से चल सकें। किसानों के विश्वास को बनाये रखने के लिए, भारत सरकार ने खरीफ और रबी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य बुवाई से पहले ही घोषित करती दी थी जिससे लाभकारी मूल्य सुनिश्चित किये जा सकें।
कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की नब्ज बनी हुई है और वह देश के सामाजिक-आर्थिक विकास की जड़ है। वह सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 19 प्रतिशत हिस्सा है और लगभग दो-तिहाई आबादी इस क्षेत्र पर निर्भर है। अन्य क्षेत्रों की वृद्धि और समग्र अर्थव्यवस्था काफी हद तक कृषि के प्रदर्शन पर निर्भर करती है। यह न केवल बड़ी आबादी के लिए आजीविका और खाद्य सुरक्षा का एक स्रोत है साथ ही कम आय वाले, गरीब और कमजोर वर्गों के लिए भी इसका विशेष महत्व है।
भारतीय कृषि को भविष्य के लिए तैयार करने के लिए सतत कृषि के लिए राष्ट्रीय मिशन जैसी पहलों को बढ़ावा देने, वैज्ञानिक भंडारण और ड्रोन प्रौद्योगिकियों को अपनाने का काम किया गया है। सरकार ने कृषि क्षेत्र में निवेश बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं जैसे एग्री-टेक इंफ्रास्ट्रक्चर फंड की स्थापना, परम्परागत कृषि विकास योजना के माध्यम से जैविक खेती को बढ़ावा देना, और एक दीर्घकालिक सिंचाई कोष तथा सूक्ष्म सिंचाई कोष बनाना शामिल है। इनके अलावा, कृषि आधारभूत संरचना कोष से किसानों, स्टार्ट-अप, सरकारी संस्थाओं और स्थानीय निकायों को बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की स्थापना में मदद मिलती है। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत राज्य सरकारों को उनके यहां स्वीकृत परियोजनाओं के आधार पर अनुदान दिया जाता है।
आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते देश की यात्रा में किसानों और कृषि क्षेत्र की अहं भूमिका है। केंद्र सरकार किसानों के उत्थान, सशक्तिकरण और स्थिरता के लिए समग्र रूप से महत्वपूर्ण कदम उठा रही है और वह समय दूर नहीं जब सरकार की लगातार पहल और निवेश से कृषि क्षेत्र का चेहरा और चमकेगा।