अस्मिता न छीजे इसके लिये लड़ाई अस्मिता की जरूरी है -संदर्भ उत्तराखंड का (भाग-दो)
–वीरेन्द्र कुमार पैन्यूली
सामाजिक कार्यकर्ता पर्यावरण वैज्ञानिक व लेखक
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आदर्श राज्य एक लाख करोड़ के करीब पहुंचते कर्जे से तो बिल्कुल ही नहीं बनेगा। कर्जा लेकर भी तीस प्रतिशत जनता के लिये नहीं लग रहा है। आदर्श राज्य के लिये कम से कम 50 प्रतिशत जनता पर लगायें। जो कुछ किया गया है उसकी तो बानगी जून 15 2022 में उत्तराखंड हिमालय के न्यूज पोर्टल के प्रसारित समाचार से मिल जाती है । छपा था कि पिंडर घाटी के एक सुदूर राजकीय इंटर कालेज सुमार घेस में 2016 में खुल चुका था, किन्तु स्थापना से लेकर अब तक एक भी प्रवक्ता पद नहीं भरा जा सका है। साल के खर्चे के लिये लगभग पौना पैसा राज्य के बाहर से न मिले तो एक इंच भी नये कामों की दिशा में आगे न बढ़ना हो। सोचें क्या आम जन की यह चिंता गलत है कि प्रशासन ने भूकानून को कड़े करने की मांग करने वालों की आंख में धूल झोंक कर उनको सुभाष कुमार कमेटी में आपत्ति व सुझाव देने में उलझा कर पूंजीपतियों के लिये किसी काम के लिये ली गई जमीन को किसी और जगह लगाने खरीद बेचने की राह को पहले से भी ज्यादा ढीला कर दिया है। उत्तराखण्डियों की भूमियों के मालिकाना हक बदलने की बात सांस्कृतिक पहचान बदलने की भी बात होगी। पर इस पर चुप्पी रहे यह तो इंजनों के ड्राइवर कल भी चाहते थे आज भी चाह रहें हैं व कल भी चाहेंगे ।
टिहरी बांध उत्तराखण्ड का है, उसे लीजिये
फिर हम अपने हितों को उ0 प्र0 को सौंप दें ये तो ठीक नहीं है। 25 मई 2022 को टिहरी जलविद्युत्त परियोजना के संदर्भ में टिहरी आये मंत्री आर0के0सिंह ने भी याद दिलाया था कि पुनर्गठन के समय जो सम्पति जिस राज्य में वह उसी की है। इसलिये टिहरी जल विद्युत्त परियोजना में अपनी हकदारी उतराखंड को एक प्रार्थी के रूप में नहीं मांगनी चाहिये। टिहरी बांध के जलाशय में टिहरी जनक्रांति के प्रतीकों व घाटियों के गांव खेतों की बलि चढ़ी है। उ प्र के पैसा लगाने का तर्क इसके सामने बौना है ।
क्या हमने परिसम्पत्तियों के मामले में घुटने टेक दिये ?
18 नवम्बर 2021 में मुख्यमंत्री पुष्कर धामी के लखनऊ जाने और उप्र के मुख्यमंत्री के बीच बातचीत के बाद 21 साल के बाद सहमति बनी के समाचार चलाये जा रहें हैं तो क्या इसके पहले के समाचार जो आते थे वे जनता में भ्रम पैदा करने के लिये होते थे। याद करें तब उत्तराखंड व उप्र दोनों जगह विधान सभा चुनाव होने वाले थे । उत्तराखंड में चंपावत विधान सभा उपचुनाव के ऐन पहले उ प्र द्वारा मात्र अलकनंदा होटल को उत्तराखंड को दिये जाने को पुनः एक बार खबरों को हाइलाइट कर दिया गया था । किसी ने इसे उप्र की धींगा मुश्ती के सामने घुटना टंेकु कार्यवाही नहीं बताई थी। धींगा मुश्ति में उत्तराखंड को न सौंपे गये अलकनंदा होटल से करोड़ों रूपये भी उ प्र ने बीते इक्कीस सालों में कमाया है। होटल बनाने के लिये उत्तराखंड की करोड़ों रूपयों की जमीन को लगभग मुफ्त में दे दिया है। जिसे मामला निपटाना कहा गया था, वह लगभग पूरे हकों में कटौती स्वीकार करना व घुटने टेकने के बराबर है। क्योंकि हद तो यह है कि उत्तराखंड के भीतर भी उ प्र जबरन गैर कानूनी तरीकों से राज्य के भीतर के ही जलसंसाधनों पर जल संसाधन या अचल सम्पतियों पर कुण्डली मारे बैठने के बाद तथाकथित मामलों को सुलझाने की प्रक्रियाओं में यह भी फरमान सुना चुका है कि में वह बांटी जाने वाली सम्पतियों संसाधनों के मामले में समीक्षा करेगा व जो उसकी जरूरतों के नहीं होंगे या जरूरत के बाद बच जायेगा वह उत्तराखंड को उपयोग के लिये दे देगा । उत्तराखंड उप्र से अपनी परिसम्पतियों को लेने के विवादों को यदि न्यायालयों में हो तो वापस लेगा।
अगर नाइसाफी हुयी तो फिर लोकतांत्रिक संघर्ष छिडेगा
उ प्र इस गलतफहमी के चक्कर में न रहे कि डबल ट्रिपल इंजनों के मान रखने के लिये यदि सरकारी स्तर पर उप्र की धींगामुश्ती पर चुनौती नहीं मिलेगी। भगवान ने अभी 1970 के दशक के उत्तराखंड के कई सामाजिक उन आन्दोलनकारियों को अभी भी जिंदा रखा हुआ है जिन्होने तबके उप्र में सामाजिक राजनैतिक व जन हकहकूकी आन्दोलन किये थे। हालांकि तब की डबल इंजन सरकारें कांग्रेस की थीं। एक बार फिर ऐसे लोग कभी भी मिल बैठ सकते हैं। इसकी पहल देर सबेर तो होगी ही भले ही उन पर आन्दोलनजीवि का चप्पा लग जाये । मुझे याद है 70 के दशक में विश्विविद्यालय आन्दोलन व स्वर्गीय सुन्दरलाल बहुगुणा व ऐडवोकेट स्व वीरेन्द्रदत्त सकलानी जी के नेतृत्व में लड़ा गया टिहरी बांध का आन्दोलन व शराब बंदी आन्दोलन जिसमें महिलाओं व छात्र छात्राओं ने पंमुख भूमिका निभाई थी को भी सी आई ए व्दारा पोषित आन्दोलन कहा गया था । चूंकि उन आन्दोलनों में मैं भी शामिल था व परोक्ष रूप से ऋषिकेश का संदर्भ देकर इशारा मुझ पर भी था तब मेरा एक लेख कतिपई अखबारों में भी छपा था कि सी आई ए के आरोप लगाने वाले तथ्यों के साथ सामने आयें। आरोप एक विधायक जी ने लगाया था जो बाद में मंत्री भी बने थे
कहां बना उत्तराखण्ड अंतरराष्ट्रीय वेडिंग डिस्टिनेशन ?
जब दक्षिण अफ्रीका के विवादित रहे व्यवसायी गुप्ता बंधुओं जिनके लिये 1 मार्च 2022 के समाचारों के अनुसार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लुक आऊट नोटिस अफ्रीका सरकार ने करवाया है, के लाड़लों की औली में होने वाली शादियों के बारे में राज्य के तत्कालीन मुख्य मंत्री जी का कहना था कि ये शादियां तो मुम्बई में इसके पूर्व में इन्वेस्टर समिट में व्यवासियों से की गई उनकी इस अपील का प्रतिफल है कि वे लोग शादियों के लिए स्विटजरलैंड न जायें। वहां क्यों जाते हैं हमारे उत्तराखंड में आईये वहां क्या नहीं है। उन्होंने उनके यहां उत्तराखंड औली में अपने बेटों की शादी के लिये धन्यवाद किया था कि इससे औली को अंतरराष्ट्रीय वेडिंग डिस्टिनेशन की ख्याति मिलेगी । जबकि व्यवसायी गुप्ता बंधुओं के लाड़लों की औली में होने वाली शादियों से संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरणीय खतरों की संभावनाओं के पक्ष को सुनकर नैनीताल उच्च न्यायलय इतनी गंभीर टिप्पणी कर चुका था कि यदि ये मामला हमारे सामने कुछ दिन पहले लाया जाता तो शायद हम इन शादियों पर रोक लगाने की भी सोच सकते थे। तब जिले के जिलाधिकारी को भी ये निर्देश दिये गये थे कि वे इस शादी पर वे निगाह रखें ।
राज्य हित में नावों के छेद बताने जरूरी अन्यथा राज्य को लगे दीमक खा जायेंगे ।
–वीरेन्द्र कुमार पैन्यूली
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