भारत की तरक्की में अग्रणी रहा पारसी समुदाय आज स्वयं अस्तित्व के संकट में
–जयसिंह रावत
आज पारसी समुदाय का नव वर्ष है। राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने अपने संदेश में पारसी समुदाय के भारत राष्ट्र निर्माण में इस अल्प समुदाय के योगदान का उल्लेख किया है। पारसी समुदाय नववर्ष को वर्ष में 2 बार मनाते हैं। उनका साल में पहला नव वर्ष 21 मार्च को और दूसरा 16 अगस्त को होता है। पहले नव वर्ष की शुरुआत शाह जमशेदजी ने की थी, जिसे फासली पंथ माना जाता है। इसे नवरोज कहा जाता है। जबकि दूसरा नया साल 16 अगस्त को मनाया जाता है जिसे नववर्ष शहंशाही कहते हैं। पारसी लोग दोनों ही दिन हार्षोल्लास से मिलकर नववर्ष मनाते हैं।
पारसी पंथ अथवा जोरोएस्ट्रिनिइजम फारस का राजपंथ हुआ करता था। यह जन्द अवेस्ता नाम के ग्रन्थ पर आधारित है। इसके संस्थापक जरथुष्ट्र थे। इसलिये इसे जरथुष्ट्री पंथ भी कहते हैं। जोरोएस्ट्रिनिइजम दुनिया के सबसे पुराने एकेश्वरवादी धर्मों में से एक है। माना जाता है कि छटी या सातवीं शताब्दी में इस्लामिक विस्तारवाद से अपनी संस्कृति को बचाने के लिये यह सुदाय फारस से पलायन कर भारत आया था। ये लोग भारत के अलावा ईरान और उत्तरी अमेरिका में भी है।कुछ लोग भारत को एक संप्रदाय विशेष का देश साबित कर धर्म के आधार पर राजनीतिक वर्चस्व कायम करना चाहते हैं। ऐसे लोगों की ऑंखें खोलने के लिए पारसी समुदाय एक उदाहरण है।
लेकिन अन्य धार्मिक समुदायों की तरह इनकी वंशवृद्धि होने के बजाय इनकी आबादी सिमटती गयी। कई पारसी आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण और अग्रणी व्यवसायी हैं। वे मुख्य रूप से मुंबई, गुजरात, नई दिल्ली और कोलकाता में स्थित हैं। पारसी शरणार्थियों की पहली बस्ती को राजा जदी राणा ने शरण दी थी और तब से जैसे-जैसे साल बीतते गए, पारसियों ने स्थानीय भाषा (गुजराती) और ड्रेस कोड को अपनाया।
भारत के राष्ट्र निर्माण में, उसके विकास और सुरक्षा में जिस धार्मिक समुदाय का असाधारण योगदान रहा, उसकी आबादी आज चिन्ताजनक स्तर तक गिर गयी है। जबकि कुछ आदिम जातियों के अलावा अन्य समुदायों की जनसंख्या निरन्तर बढ़ रही है। ये वही पारसी समुदाय है जिसने भारत को जमशेदजी टाटा, होमी भाभा, जनरल मानेक शॉ और साइरस पूनावाला जैसी महान हस्तियां दी हैं। स्वाधीनता सेनानी फीरोज गांधी भी पारसी ही थे। केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के पति जुबिन ईरानी भी पारसी ही हैं। आज यही श्रेष्ठ मानव नश्ल अस्तित्व के खतरे में हैं।
भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 57,264 पारसी हैं। जबकि यूनेस्को पारसी परियोजना (पारजोर) के अनुसार, पारसी की संख्या 60 वर्षों में 40 प्रतिशत गिरकर 2001 में 69,001 हो गई है, जो 1941 में 1,14,890 थी। भारत में पारसी समुदाय। भारत में सामान्य जनसंख्या में 21 प्रतिशत की वृद्धि हुई। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अनुसार, समुदाय की आबादी में इस लगातार गिरावट के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण संतानहीनता और प्रवासन है।
भारतीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की एक सितंबर 2013 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में उनकी जनसंख्या गिरावट रोकने के प्रयास किये जा रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार पारसियों की जनसंख्या में कमी का एक कारण अधिक उम्र में विवाह करना भी है। उनमें सामान्यतः महिलाओं के लिए विवाह की उम्र 27 वर्ष, पुरुषों के लिए 31 है। पारसी महिलाओं की प्रजनन दर प्रति महिला 0.8 बच्चे है। इसके अलावा, 30 प्रतिशत पारसी अविवाहित रहते हैं और 31 प्रतिशत 60 वर्ष से अधिक आयु के हैं। उदाहरण के लिये भारत के सफलतम् और आदर्श व्यवासायी रतन टाटा हैं।
भारत का पारसी समुदाय विश्व स्तर पर सबसे सफल अल्पसंख्यक और प्रवासी समूहों में से एक है। भारत में पूरे देश की जनसंख्या की तुलना में पारिसियों की जनसंख्या 0.0005 प्रतिशत है लेकिन उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था, अग्रणी व्यापार और उद्योग में एक प्रमुख रचनात्मक भूमिका निभाई है। कुछ प्रमुख पारसियों जिन पर राष्ट्र को नात है, के नाम निम्न लिखित है। :-
होमी जहांगीर भाभा
वह एक धनी और प्रमुख औद्योगिक पारसी परिवार में जन्मे। होमी भाभा एक भारतीय परमाणु भौतिक विज्ञानी थे और उन्हें ‘‘भारतीय परमाणु कार्यक्रम के जनक’’ के रूप में जाना जाता है। वह भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के संस्थापक निदेशक थे। 1954 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ
फील्ड मार्शल सैम होर्मसजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ को विश्व में कौन नहीं जानता। उनको भारतवासी स्नेह और गर्व से सैम मानेकशॉ और सैम बहादुर के नाम से जानते हैं। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के हीरो थे। उस दौरान वह थल सेनाध्यक्ष थे, और फील्ड मार्शल के रूप में पदोन्नत होने वाले पहले भारतीय सेना अधिकारी थे। उनके ही कार्यकाल में 90 हजार से अधिक पाकिस्तानी सेनिकों ने भारतीय सेना के आगे आत्मसमर्पण किया था। हथियार डालने वाले पाकिस्तानी सैनिकों में पूर्वी पाकिस्तान के कमाण्डर इन चीफ जनरल नियाजी भी थे। उन्हें पद्म विभूषण और पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया।
रतन नवल टाटा
प्रसिद्ध भारतीय उद्योगपति, निवेशक, परोपकारी और टाटा संस के पूर्व अध्यक्ष, रतन टाटा प्रमुख टाटा परिवार के सदस्य हैं। उन्हें भारत के सबसे शक्तिशाली सीईओ के रूप में भी स्थान दिया गया है। वह भारत के विशिष्ट नागरिक पुरस्कारों – पद्म विभूषण (2008) और पद्म भूषण (2000) के प्राप्तकर्ता हैं। उद्यमिता, शिक्षा, महिला सशक्तिकरण और ग्रामीण विकास के प्रबल समर्थक। वह अविवाहित ही रहे।
अर्देशिर गोदरेजी
1897 में गोदरेज ग्रुप ऑफ कंपनीज के संस्थापक थे। वह उपभोक्ता वस्तुओं से लेकर रसायनों तक के निर्माता हैं। वह एक परोपकारी रहे जिन्होंने सिद्धांतों के साथ व्यापार और समाज को वापस देने के दर्शन को आगे बढ़ाया – गोदरेज उद्योग समूह एसएचजी, वनीकरण और विकास कार्यों के अलावा सामाजिक विकास कार्य, साक्षरता में संलग्न रहा है।
डॉ. साइरस पूनावाला
उद्योगपति, फार्माकोलॉजिस्ट और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के संस्थापक। पद्मश्री से सम्मानित, वह सीरम संस्थान का संचालन करते हैं जो दुनिया में सबसे बड़ा टीका उत्पादक है। एक अग्रणी जिसने टीकाकरण अभियान का समर्थन करते हुए महामारी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।