राष्ट्रीयसुरक्षा

भारतीय वायु सेना की निगरानी, पहचान और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध क्षमताओं को बढ़ाने के लिए परियोजनाएं

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नयी दिल्ली, 24  मार्च । रक्षा मंत्रालय ने गत दिवस  भारतीय वायु सेना की परिचालन क्षमताओं में बढ़ोतरी के लिए भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) के साथ 3,700 करोड़ रुपये से अधिक के दो अलग-अलग अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए। इनमें पहला अनुबंध 2,800 करोड़ रुपये से अधिक का है, जो भारतीय वायु सेना के लिए मध्यम शक्ति रडार (एमपीआर) ‘अरूधरा’ की आपूर्ति से संबंधित है। वहीं, दूसरा अनुबंध लगभग 950 करोड़ रुपये का है, जो 129 डीआर-118 रडार चेतावनी प्राप्तकर्ता (आरडब्ल्यूआर) से संबंधित है। ये दोनों परियोजनाएं खरीदें {भारतीय – आईडीएमएम (स्वदेशी रूप से डिजाइन विकसित व निर्मित)} श्रेणी के तहत हैं। ये अनिवार्य रूप से ‘आत्मनिर्भर भारत’ की भावना के प्रतीक हैं और देश को रक्षा निर्माण में आत्मनिर्भरता की सोच को साकार करने में सहायता करेंगे।

एमपीआर (अरुधरा)

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ने इस रडार को स्वदेशी रूप से डिजाइन व विकसित किया है और इसका निर्माण बीईएल करेगी। पहले ही इसका सफल परीक्षण भारतीय वायु सेना कर चुकी है। यह हवाई लक्ष्यों की निगरानी और पता लगाने के लिए दिगंश व उन्नयन, दोनों में इलेक्ट्रॉनिक स्टीयरिंग के साथ एक 4डी मल्टी-फंक्शन चरणबद्ध एरे रडार है। इस प्रणाली में एक साथ स्थित चिन्हित मित्र या शत्रु प्रणाली से पूछताछ के आधार पर लक्ष्य की पहचान होगी।

यह परियोजना औद्योगिक वातावरण में विनिर्माण क्षमता के विकास के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करेगी।

डीआर-118 आरडब्ल्यूआर

डीआर-118 रडार वार्निंग रिसीवर एसयू-30 एमकेआई विमान की इलेक्ट्रॉनिक युद्ध (ईडब्ल्यू) क्षमताओं में काफी बढ़ोतरी करेगा। इसके अधिकांश उप-संयोजन और पुर्जे स्वदेशी निर्माताओं से प्राप्त किए जाएंगे। यह परियोजना एमएसएमई सहित भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स और संबद्ध उद्योगों की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देने के साथ उसे प्रोत्साहित करेगी। इसके अलावा यह साढ़े तीन साल की अवधि में लगभग दो लाख मानव-दिवस का रोजगार सृजित करेगी।

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