अपनी आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ में अमृता प्रीतम लिखती हैं
-डॉ0 सुशील उपाध्याय
अपनी आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ में अमृता प्रीतम लिखती हैं, “वो (साहिर लुधियानवी) चुपचाप मेरे कमरे में सिगरेट पिया करता. आधी पीने के बाद सिगरेट बुझा देता और नई सिगरेट सुलगा लेता. जब वो जाता तो कमरे में उसकी पी हुई सिगरेटों की महक बची रहती. मैं उन सिगरेट के बटों को संभाल कर रखतीं और अकेले में उन बटों को दोबारा सुलगाती. जब मैं उन्हें अपनी उंगलियों में पकड़ती तो मुझे लगता कि मैं साहिर के हाथों को छू रही हूँ. इस तरह मुझे सिगरेट पीने की लत लगी.”
अमृता और साहिर का रिश्ता ताउम्र चला, लेकिन किसी अंजाम तक न पहुंचा. इसी बीच अमृता की ज़िंदगी में चित्रकार इमरोज़ आए. दोनों ताउम्र साथ एक छत के नीचे रहे लेकिन समाज के कायदों के अनुसार कभी शादी नहीं की. वे अपने समय से बहुत आगे के लोग थे।
इमरोज़ अमृता से कहा करते थे- तू ही मेरा समाज है. बाकी किसी की क्या परवाह.
और ये भी अजीब रिश्ता था, जहाँ इमरोज़ भी साहिर को लेकर अमृता का एहसास जानते थे. लेकिन उन्होंने न कभी उस अहसास पर सवाल उठाए और न ही अमृता को मजबूर किया कि वो दोनों में से किसी एक को चुने। एक अमृता के मन में था और दूसरे की आत्मा में अमृता थीं।