राजनीति

साम्प्रदायिकता और कुशासन के खिलाफ वामपंथी दलों की जीत जरूरी

अनन्त आकाश

गामी 14फरवरी को राज्य के मतदाताओं द्वारा नयी विधान सभा के लिए मतदान किया जाएगा। यह मतदान राज्य एवं देश के भविष्य के लिए निश्चित तौर पर एक नई दिशा देगा। इस चुनाव में वामपंथी दलों का विजयी होना भी अतिआवश्यक हो गया है क्योंकि वामपंथी प्रतिनिधि ही सही मायनों में जनता की आवाज बन सकते हैं ।
आज भाजपा के केन्द्र एवं राज्य के कुशासन से जनता छटपटा रही है। अब एकमात्र विकल्प है कि भाजपा गठबन्धन को सत्ता से बाहर किया जाय । सुखद भविष्य के लिए हमें साम्प्रदायिक, जातिवाद और क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर मतदान में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी । राज्य एवं केन्द्र की भाजपा सरकार ने देश को दुर्गति के कगार पर खड़ा कर दिया है। भाजपा की करारी हार देखकर बौखलाहट में उसके केन्द्रीय गृहमंत्री तथा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बौखलाकर अनापशनाप बयान देने में लग गये । संघ परिवार के लोग फिर से अन्दर ही अन्दर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की नापाक कोशिश करने में लगे हुए हैं। धमकी दी जा रही है कि 10मार्च के बाद देख लेंगे। जनता को इन साजिशों के खिलाफ सतर्क रहना होगा। याद रहे, ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति से भी ऐसे तत्वों को गुरैज नहीं है । क्योंकि इनको हरहाल में अपने कारपोरेट आकाओं तथा पिछले सात सालों से कमायी गई अथाह सम्पत्ति की रक्षा तथा अपने सुरक्षित भविष्य के लिए सत्ता हासिल करना जरूरी है ! सत्ता से बाहर होते ही इनके दुर्दिन जो शुरू हो जाऐंगे ।
यह भी रेखांकित किया जाना जरूरी हो गया है कि 2014 राज्य एवं केन्द्र में आसीन मोदी सरकार के सत्तासीन होने के बाद देश के सरकारी, सार्वजनिक संस्थानों ,प्राकृतिक व आर्थिक संसाधनों को अडानी-अम्बानी जैसे कारपोरेट घरानों के हाथों लुटाकर देश को गम्भीर आर्थिक संकट में डाल दिया गया है। इसी का फल है कि देश की आम जनता महंगाई व बेरोजगारी के घोर संकट में फंस गई है ।प्रधानमन्त्री मोदी के ‘अच्छे दिनों’ की हकीकत यह है कि हमारा देश इस सरकार के कार्यकाल में गरीबी और भुखमरी के ग्लोबल इंडेक्स में शर्मनाक स्तर पर पिछड़ गया है। हम पाकिस्तान ,बांग्लादेश तथा श्रीलंका से पीछे हो गये हैं ।
इतना ही नहीं इस सरकार की अगुवाई में देश की आजादी के संघर्ष के इतिहास को मिटाए जाने की निरन्तर कोशिश की जा रही है। देश के संविधान, संवैधानिक संस्थाओं व जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों को मटियामेट किया जा रहा है। सीएए (नागरिक संशोधन कानून)के बाद अब वोटर पहचान पत्र को आधार कार्ड से लिंक कर नागरिक अधिकारों के पर कतरने के प्रयास तेज किये जा रहे हैं । आजादी की लड़ाई में जिनका योगदान जीरो था,अब वे सत्ता के मद में चूर होकर देश को यह बताने की हिमाकत कर रहे हैं कि देश तो सही मायने में मोदी राज आने के बाद आजाद हुआ है ।मोदी सरकार की यह नापाक कोशिश पूरी तरह हास्यास्पद एवं शर्ननाक है। मोदीराज में देश के धार्मिक अल्पसंख्यकों ,दलितों ,महिलाओं व समाज के कमजोर हिस्सों पर हमले बढ़े हैं और इस तरह के हमलों को सत्ता का संरक्षण मिलना आम बात है। मोदी सरकार का किसानों के साथ वादा खिलाफी अब जगजाहिर हो गया है ।
उत्तराखण्ड में हाल ही में हरिद्वार में सम्पन्न धर्म संसद हो ,रुड़की में चर्च पर शर्ननाक हमला हो ,चंम्पावत में दलित द्वारा शादी के भोजन छूने के बाद पीट पीट कर हत्या का मामला हो या दलित भोजन माता का जातीय उत्पीड़न, यह सब उदाहरण इसकी पुष्टि करते हैं ।
उत्तराखण्ड राज्य बनने के 21 सालों बाद भी राज्य में रोजगार ,शिक्षा ,स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में बड़े पैमाने पर लोगों का पलायन दुखदायी है । परिणामस्वरूप पर्वतीय क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा वीरान हो रहा है जिसके लिए सीधेतौर पर राज्य की शासक पार्टियां बीजेपी तथा कांग्रेस जिम्मेदार हैं । इन दलों द्वारा जनसेवा तथा बुनियादी सवालों को हल करने के बजाय लूटखसोट की राजनीति को ही आगे बढ़ाया गया है । लेकिन रोजगार, कृषि ,पशुपालन ,ग्रामीण दस्तकारी ,शिक्षा ,स्वास्थ्य जैसे अहम सवालों पर कोई काम करने की बजाय करोड़ों रुपयों के विज्ञापनों की भेंट चढ़ाकर आमजन की आंखों में धूल झोंकी जा रही है । राज्य में सरकारी शिक्षा, सरकारी अस्पतालों की निजीकरण की मुहिम जारी है। शिक्षा ,स्वास्थ्य तथा सरकारी विभागों की भर्तियां रोकी हुई हैं तथा आउटसोर्स तथा ठेका प्रथा के माध्यम से युवाओं को कम पैसे देकर उनसे बेतहाशा काम लिया जा रहा है ।
निहित स्वार्थों तथा भाजपा की आन्तरिक गुटबाजी की कीमत राज्य की जनता चुका रही है। राज्य में सत्तापक्ष व उनके चहेतों द्वारा लूटखसोट जारी है ।भाजपा सरकार द्वारा भूमि संशोधन कानून से भू माफियाओं को भूमि लूटने की खुली छूट दे रखी है ,जबकि नदी नालों तथा बंजर जमीन में बसे गरीब लोग अपने मालिकाना हक के लिए तरस रहे हैं ।
राज्य की भौगोलिक तथा पारिस्थितिकी स्थितियों के विपरीत कारपोरेट लूट के लिए यहाँ लादी गई बड़ी -बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं, आल वैदर रोड और केदारनाथ पुनर्निर्माण योजनाओं ने हमारे पर्यावरण ,जैव विविधताओं के साथ ही लोगों के जीवन व आजीविका पर जो हमला किया है उसकी भरपाई करना असम्भव है। आज भी पहाड़ में कई लघु जल विद्युत योजनाएं बन्द पड़ी हैं जो किसी समय सीमित साधनों के बिना पर्यावरणीय क्षति पहुंचाए यहाँ की आबादी को बहुत सस्ते दामों में चौबीसों घण्टे बिजली उपलब्ध कराती रही हैं ।
2013 में केदारनाथ आपदा तथा गत वर्ष धौली गंगा में आयी बाढ़, आपदा तथा पहाड़ में अनेक स्थानों की त्रासदी के पीड़ितों के साथ सरकारों की असंवेदनशीलता के चलते आज तक भी न्याय नहीं हुआ है। 2017 के चुनाव में ‘सबका साथ,सबका विकास’ की बात करने वाली डबल इन्जन सरकार ने अपने वायदे पूरे करने की बजाय खुद को कारपोरेट जगत का दुमछल्ला ही साबित किया है।
शासक दलों की लूटखसोट के खिलाफ राज्य में वामपंथी पार्टियां ईमानदारी से जनपक्षधरता वाली नीतियों के लिए हर सम्भव प्रयास एवं आन्दोलन करती रही हैं। कोविडकाल की जटिलतम परिस्थितियों के बावजूद वामपंथ अपने कर्तव्यों से कभी पीछे नहीं रहा तथा जनता के साथ हरसम्भव खड़ा रहा ।
इस विधानसभा चुनाव में वामपंथी पार्टियां सीमित सीटों पर चुनाव मैदान में उतरी हैं ताकि विधासभा में उनके जनप्रतिनिधि पहुंचें और राज्य में वैकल्पिक राजनीति की शुरुआत हो सके ।

( लेखक सीपीएम के सक्रिय नेता हैं, लेख में व्यक्त विचार उनके अपने विचार हैं)

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