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इफ्फी-53 में स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर को श्रद्धांजलि

जीवन छोटा और सीमित हो सकता है, लेकिन कला वक्त और स्थान के भी परे जाती है जिससे कलाकार हमारे दिलो-दिमाग में ज़िंदा रहता है। भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव का 53वां संस्करण मेलोडी क्वीन लता मंगेशकर को श्रद्धांजलि दे रहा है, जिनका इस साल फरवरी में मुंबई में निधन हो गया था। इन दिग्गज गायिका के आत्मीय गीत असंख्य हैं। उनमें से प्रत्येक की भारतीय सिनेमा और संस्कृति में एक बड़ी और प्रमुख भूमिका है। लेकिन इस महोत्सव में इन महान कलाकार को श्रद्धांजलि देने के लिए ऋषिकेश मुखर्जी की 1973 की म्यूजिकल ड्रामा ‘अभिमान’ को चुना गया है।

70 के दशक की भारतीय फिल्मों की दिल को छू लेने वाली स्मृतियों की यात्रा भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय सिनेप्रेमियों, युवा और वृद्ध दोनों के लिए आशीर्वाद सरीखा है। यहां पर प्रेम, संगीत के क्षेत्र में महत्वाकांक्षा और अहंकार के कारण होने वाले दर्दनाक नतीजे से खुद को जोड़कर या दोबारा जोड़कर देख सकेंगे, जैसा कि इस फिल्म के मुख्य पात्रों सुबीर और उमा के जीवन में होता है। इन किरदारों को अमिताभ बच्चन और जया बच्चन ने खूबसूरती से निभाया था। इतना ही नहीं फिल्म प्रेमियों को जीवन के संघर्षों के इस सबसे बुनियादी संघर्ष में खुद को डुबोने का मौका मिलेगा। वे “तेरे मेरे मिलन की ये रैना“, “तेरी बिंदिया रे” और “नदिया किनारे” जैसे अनूठे गीतों की हृदयस्पर्शी प्रस्तुतियों की दिव्य सुंदरता में सराबोर हो सकेंगे। इन गीतों को लता मंगेशकर गाया था। लता दीदी, जैसा कि उन्हें सिनेमा प्रेमियों के बीच प्यार से पुकारा जाता था, उन्होंने इस फिल्म के जिन अन्य गीतों में अपनी कालातीत आवाज और चरित्र दिया है, उनमें “अब तो है तुमसे हर खुशी अपनी” और “लुटे कोई मन का नगर” शामिल हैं।

 

भारतीय संस्कृति और सभ्यता को अपने दिल के करीब रखें: इफ्फी-33 उद्घाटन के दौरान लता मंगेशकर

इन महान गायिका को हम इस महोत्सव में जब श्रद्धांजलि देने जा रहे हैं तब उनका वो संदेश याद करना एकदम वाजिब होगा जो उन्होंने अक्टूबर 2002 में नई दिल्ली में आयोजित इफ्फी के 33वें संस्करण के दौरान फिल्मकारों और फिल्म प्रेमियों को दिया था।

इस महोत्सव का उद्घाटन करते हुए लता मंगेशकर ने फिल्मकारों से आह्वान किया था कि वे भारत की बेहद समृद्ध संस्कृति और सभ्यता को न भूलें और इसे तकनीकी प्रगति के सामने गौण होने से बचाएं। उन्होंने साथी आर्टिस्टों से कहा कि भारतीय सिनेमा के महान अग्रजों जैसे दादा साहेब फाल्के और अन्य अनगिनत कलाकारों के अथक प्रयासों को सदा जेहन में रखें, जिन्होंने भारतीय फिल्म उद्योग को इन महान ऊंचाइयों को छूने में भारी बलिदान दिया और सबसे कठिन परिस्थितियों में काम किया। उन्होंने इफ्फी-33 प्रतिनिधियों को याद दिलाया कि भारत के सभी हिस्सों के कलाकारों ने भारतीय फिल्म उद्योग के विकास में योगदान दिया है।

भारतीय फिल्मों में संगीत के महान योगदान का ज़िक्र करते हुए लता मंगेशकर ने कहा कि भारतीय जीवन और समाज के हर पहलू में संगीत अंतर्निहित है। इसने न केवल भारतीय फ़िल्मों को समृद्ध किया है बल्कि उन्हें विशिष्ट पहचान और मान्यता भी दिलाई है। अन्य देशों में भारतीय फिल्मों को लोकप्रिय करने में तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री सुषमा स्वराज के प्रयासों की प्रशंसा करते हुए संगीत प्रेमियों की कई पीढ़ियों ने ये उम्मीद की थी कि आने वाले वर्षों में ये उद्योग नई ऊंचाइयों को छूएगा।

लता मंगेशकर: संगीत को समर्पित एक जीवन

लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर, 1929 को मराठी और कोंकणी संगीतकार पंडित दीनानाथ मंगेशकर के घर हुआ था। उनका मूल नाम हेमा था। वे पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं, जिनमें अनुभवी गायिका आशा भोसले भी थीं। उनके पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर एक शास्त्रीय गायक और थिएटर अभिनेता थे।

लता मंगेशकर ने 13 की उम्र में मराठी फिल्म ‘किती हसाल‘ के लिए अपना पहला प्लेबैक गाना रिकॉर्ड किया। साल 1942 में मराठी फिल्म ‘पाहिली मंगलागौर‘ में उन्होंने अभिनय भी किया। 1946 में निर्देशक वसंत जोगलेकर की फ़िल्म ‘आप की सेवा में‘ के लिए अपना पहला हिंदी फिल्म प्लेबैक गाना रिकॉर्ड किया।

1972 में लता मंगेशकर ने फिल्म ‘परिचय‘ के लिए सर्वश्रेष्ठ महिला पार्श्व गायिका का अपना पहला राष्ट्रीय पुरस्कार जीता। बाद के वर्षों में इन अनुभवी गायिका ने कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीते जिनमें प्रतिष्ठित भारत रत्न, ऑफिसर ऑफ द फ्रेंच लीजन ऑफ ऑनर का खिताब, दादा साहब फाल्के पुरस्कार, तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, चार फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ महिला पार्श्वगायक पुरस्कार, फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार और बहुत से अन्य पुरस्कार शामिल हैं। 1984 में मध्य प्रदेश की राज्य सरकार ने लता मंगेशकर पुरस्कार की स्थापना की, वहीं महाराष्ट्र सरकार ने भी गायन प्रतिभा को बढ़ावा देने के लिए 1992 में लता मंगेशकर पुरस्कार की स्थापना की।

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