उत्तराखंड को नये भूमि सुधार कानून की सख्त आवश्यकता
उत्तराखंड की प्रगति और गरीबों की ज़मीनें ज़मीनखोरों से बचाने के लिए सुझाव।
1 – उत्तराखण्ड में तत्काल नया भूमि बंदोबस्त हो।
2 – उत्तराखण्ड में कृषि भूमि के संरक्षण के लिए एक नए भूमि सुधार कानून की मांग होनी चाहिए। जिसमें वर्तमान कृषि क्षेत्र का विस्तार, बेनाप-बंजर भूमि के प्रबन्ध व कृषि पर निर्भर गांव के दलितों, भूमिहीनों, गरीब किसानों में उसके वितरण का अधिकार ग्राम पंचायतों को देने की व्यवस्था हो।
3 – कृषि भूमि के गैर कृषि उपयोग पर प्रतिबंध का कानून बने। खेती पर निर्भर परिवारों को कम से कम 50 नाली भूमि मिले।
4 – बेनाप बंजर भूमि भूमि को रक्षित वन भूमि घोषित करने वाले 1893 के शासनादेश को रद्द कर उस भूमि को ग्राम पंचायतों के नाम दर्ज किया जाना चाहिए। इससे 18 प्रतिशत यानी लगभग 10 लाख हेक्टेयर भूमि कृषि क्षेत्र के लिए उपलब्ध हो जाएगी।
5 – बृक्ष संरक्षण कानून 1976 में संशोधन कर पहाड़ के किसानों को अपने खेतों में बृक्षों के व्यवसायिक उत्पादन का अधिकार मिलना चाहिए।
6 – हल बैल पर आधारित पहाड़ की खेती और पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए गो रक्षा कानून हटे और वनों में किसानों के परम्परागत अधिकारों की बहाली के लिए वन कानून व वन पंचायत नियमावली में बदलाव किए जांय।
7 – राज्य में अनिवार्य चकबंदी कानून बने।
8 – पर्वतीय कृषि उत्पादों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित हो।
9 – जैविक उत्पादों को जैविक बाजार मूल्य दिलाने की सरकार गारंटी करे।
10 – तहसील स्तर पर लघु कृषि उपज मंडियों की स्थापना हो।
ये प्रमुख सवाल हमारे सामने हैं। खेती और पशुपालन को रोजगार बनाए बिना जमीन से मोहभंग को नहीं रोक जा सकता है। इस लिए उपरोक्त सवालों का हल किये बिना न पहाड़ से पलायन रुकेगा और न ही हमारी जमीनें बचेंगी।
पुरुषोत्तम शर्मा
अखिल भारतीय किसान महासभा
मो. 9410305930