वनभूलपूरा से जोशीमठ तक हर जगह जन विरोधी सोच

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– अनन्त आकाश
हाल ही के दिनों में उत्तराखण्ड की दो प्रमुख घटनाएं राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चाओं में है ,इन घटनाओं के पीछे वही सबकुछ है ,हमारी हुकमरानों की अदूरदर्शिता एवं मुनाफे के लिए अन्धी लूट एकतरफ हल्द्वानी में रेल प्रोजेक्ट के बहाने 1905 से बसे लोगों को बेहरमी से उजाडऩे की साजिश तथा दूसरी तरफ जोशीमठ को बिजली परियोजनाओं ,आलवेदर रोड़ तथा राष्ट्र की सुरक्षा की आढ़ में उजाड़ने की साजिश शामिल है ।

खैर आज वनभूलपूरा एवं जोशीमठ की संघर्षरत जनता के कारण वहाँ की जनता की आवाज देश की आवाज बन चुकी है । जिसे नजरअंदाज करना अब हुकमरानों के लिए सम्भव नहीं है । हमारे राज्य मेंं खासकर राजधानी देहरादून में विकास का नाम देकर कारपोरेट हितों के हिसाब से लगभग सभी योजनाओं का संचालन हो रहा है तथा जनता की गाढ़ी कमाई आये दिन लुटाई जा रही है। इन योजनाओं में स्मार्ट सिटी,नये शहरों की बसावट , सीविरेज ट्रीटमैंट प्लान्ट ,कूड़ाघर ,ट्रेफिक व्यवस्था परिवर्तन इत्यादि ।

इन योजनाओं की आढ़ में स्थानीय लोगों को बेरोजगार करने की साजिश तथा बाहरी कम्पनियों को ट्रैफिक व्यवस्था सौंपकर इस परिवहन व्यवस्था में स्थानीय लोगों को कम बेतन पर काम देना शामिल है ,यानि जो गरीब परिवार आज तक इस क्षेत्र में आर्थिक रूप में आत्मनिर्भर हो चुके थे वै फिर से इन भीमकाय कम्पनियों के गुलाम हो जाऐंगे । इसी प्रकार कूड़े के आढ़ में गुजराती ,चैन्नई तथा महाराष्ट्र की कम्पनियों द्वारा हरबर्ष करोडों करोड़ रूपये हड़प लिये जा रहे हैं किन्तु जो वर्कर 12 -12 काम कर रहा है वह जलालत की जिन्दगी जीने के लिए विवश हैं ,सत्ता से जुड़े लोगों ,भ्रष्टनौकरशाहों, भूमाफियाओं तथा कारपोरेट गठबंधन की पो बारह है , आपके सामने एक उदाहरण देना चाहता हू यदि बेरोजगार गांधी पार्क से अपने रोजगार की मांग के लिए जलूस निकालता है ,तो उस पर मुकदमा लग जाता है ,हाथीबड़कला में एक माल का मालिक के आगे जाम न लगे उसके लिऐ कोर्ट ,कचहरी ,आला अधिकारी ,नेता फेता उसके लिऐक्षजी हजूरी करते फिरते हैं तथा राजनैतिक एवं सामाजिक स़गठनों को इस क्षेत्र में जनहित की आड़ जलूस ,प्रदर्शनों को रोक दिया गया है ।

देहरादून में सण्डे मार्केट का दृश्य अगर आप देखेंगे तो आपको व्यवस्था की लूटखसोट स्पष्ट नजर आऐगी । छोटा उदाहरण दे रहा हूँ । सर्वोच्च न्यायालय ने फुटपाथी व्यवसायी को भी समाज में आर्थिकी का महत्वपूर्ण श्रोत माना है तथा अपने ऐतिहासिक फैसले में रेखांकित किया है कि उसका योगदान किसी बड़े व्यवसायी से कम नहीं है । किन्तु आये दिन उनके साथ क्या होता है ।

इस मार्केट में निम्न मध्म वर्ग तथा गरीब परिवारों के लोग खरीदारी करने आते हैं ताकि वे सस्ते कपड़े तथा चीजें खरीदकर अपना गुजारा कर सकें ,इस बहाने सौ पचास रूपये बच जाऐं ,जब वे अपने छोटे बड़े वाहनों से आते हैं तो पार्किंग सुविधाओं के अभाव में ट्रैफिक पुलिस उनके वाहनों का या तो चालान करती है या फिर क्रेन से उठा ले जाता  है।इसीलिए हमें जोशीमठ एवं वनभूलपूरा तथा उन लाखों संघर्शशील जनता से सीखना चाहिए जो अपने समाज के हकहकूकों के लिए लड़ रहे हैं ।

सीमांत जनपद चमोली का सरहदी शहर जोशीमठ विश्व प्रसिद्ध हिम क्रीडा स्थल औली, आस्था का सर्वोच्च धाम बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब और फूलों की घाटी का प्रवेश द्वार है ,जहाँ हर साल देश, विदेश से लाखों-लाख तीर्थयात्री और पर्यटक यहां पहुंचते है। बर्षो पहले चिपको आंदोलन की नेत्री गौरा देवी ने जल ,जंगल ,जमीन की रक्षा के लिए पास स्थित रैणी गांव से आन्दोलन की शुरुआत किया था । एशिया का सबसे लम्बा रज्जू मार्ग इसी ही नगर के ऊपर से गुजरता है। हिन्दू का पवित्र बद्री विशाल का शीतकालीन गद्दी भी यहीं है । जोशीमठ एक नगर ही नहीं है अपितु धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र भी है । एक समय यह गढ़वाल के कत्यूरी राजवंश की राजधानी भी रही है , बावजूद इसके जोशीमठ आज पहचान के लिए छटपटाहट रहा है ।आज भू-धसाव की बजह से जोशीमठ के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग रहा है।

जोशीमठ के विभिन्न वार्डो में हो रहे भू-धसाव ने शहर की खुशियाँ छीन ली है तथा लोगों में आंतक का माहौल व्याप्त है ।मकानों में पडी दरारों ने जोशीमठ के नागरिकों का सुख चैन छीन लिया है। दुखी लोग अपने को रोक आंसुओ को रोक नहीं पा रहे हैं ।माहौल बहुत ही गमगीन है लोगों के अपने जीवनभर की मेहनत की कमाई को अपने घर बार और मकान में लगाने के बाद आज इनके घर सुरक्षित नहीं रह गये हैं। खेत खलियान से लेकर मकान सबकुछ भू-धसाव की चपेट में आ चुके हैं। भू-धसांव के कारण आज लोग खुले आसमां रहने के लिए विवश हैं ।

जोशीमठ के लोगो लंबे से समय से जोशीमठ को भू-धसाव से बचाने की मांग करते आ रहे हैं। वर्ष 1976 में तत्कालीन गढ़वाल कमिश्नर एमसी मिश्रा की अध्यक्षता वाली समिति ने भी भूस्खलन को लेकर एक रिपोर्ट तत्कालीन सरकार को दी थी, जिसमें जोशीमठ पर खतरे का जिक्र किया गया था। लेकिन कभी भी इस दिशा में तब सज अब तक ठोस व गंभीर प्रयास नहीं किये गये। जोशीमठ गलेशियर द्वारा लाई गई मिट्टी पर बसा हुआ शहर है तथा भूगर्भीय रूप से अतिसंवेदनशील जोन-5 के अंतर्गत आता है जो कि पूर्व-पश्चिम में चलने वाली रिज पर मौजूद है बावजूद इसके शहर के आसपास जलविद्युत परियोजना निर्माण को मंजूरी दी गयी। 1970 की धौली गंगा में आई बाढ नें पाताल गंगा, हेलंग से लेकर ढाक नाला तक के बडे भू-भाग क्षेत्र को हिलाकर रख दिया था, जिसके बाद 2013 की केदारनाथ आपदा और फरवरी 2021 की रैणी आपदा नें तपोवन से लेकर विष्णुप्रयाग के संगम को भारी नुकसान पहुंचाया है, नदी किनारे कटाव बढने से भी भूस्खलन को और भी अधिक बढावा मिला है,जोशीमठ शहर के नीचे से होकर एनटीपीसी की तपोवन विष्णुगाड परियोजना की सुरंग निर्माणाधीन है। जो आज हो रहे भू-धसाव के लिए सबसे बडा कारणों में से एक है। पूर्व के बरसों में हेलंग से लेकर पैनी गांव, सेलंग गांव में भू-धसाव की घटना सामने आ चुकी है। भू-धसाव से जोशीमठ शहर के गांधी नगर, मारवाड़ी, लोअर बाजार नृसिंह मंदिर, सिंहधार में, मनोहर बाग, अपर बाजार डाडों, सुनील, परसारी, रविग्राम, जेपी कॉलोनी, विष्णुप्रयाग, क्षेत्र सर्वाधिक
प्रभावित हैं ।

( लेखक माकपा के वरिष्ठ नेता हैं  और ये उनके अपने विचार हैँ। एडमिन का उनके विचारों से सहमत होना  जरूरी  नहीं  है ।)

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