कांग्रेस धामी को क्यों दे रही वॉकओवर? 

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-दिनेश शास्त्री
कांग्रेस चम्पावत के रण में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को वॉकओवर देने का फैसला ले चुकी है? यह सवाल जिस तरह मेरे मन में उठ रहा है, शायद उसी तरह आप के मन में भी उठ रहा होगा। यह सवाल अनायास नहीं उठ रहा है लेकिन कहीं ऐसा नहीं लग रहा है कि कांग्रेस इस चुनाव को लेकर गंभीर है। अभी हाल में हेमेश खर्कवाल ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी और वे महज साढ़े चार हजार वोटो के अंतर से हारे थे, उनकी जगह कांग्रेस ने निर्मला गहतोडी को मैदान में उतारा है। कहा जा रहा है कि धामी को टक्कर देने के लिए कांग्रेस ने महिला को उतार कर भाजपा की परेशानी बढ़ा दी है। यह दावा करने वालों को भूलना नहीं चाहिए कि अभी हाल में यूपी में लड़की हूँ लड़ सकती हूँ का नारा दिया गया था, उसका अंजाम बताने की जरूरत नहीं है, आप शायद समझ गए होंगे। दूसरे तर्क दिया जा रहा है कि धामी के सामने ब्राह्मण प्रत्याशी उतार कर कांग्रेस ने बढ़त ले ली है, लेकिन इसके साथ ही यह सवाल भी पूछा जाना चाहिए कि क्या बीते चुनाव में हेमेश ब्राह्मण वर्ग से नहीं थे? खैर यह तो फिजूल की बात है।
ज़मीनी हकीकत यह है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन महरा फिलहाल गढ़वाल मंडल में अपना स्वागत कराने में व्यस्त हैं। उनका दौरा 12 दिन का तय किया गया है जबकि इधर चम्पावत  उपचुनाव का कार्यक्रम तय हो गया है। भाजपा ने अपनी तैयारियों पर अमल भी शुरू कर दिया है जबकि कांग्रेस सिर्फ कागजी घोड़े दौड़ा रही है। हेमेश खर्कवाल चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं हुए तो निर्मला को मौका दिया गया है। स्वाभविक रूप से उन्हें बहुत मजबूत बताया जा रहा है लेकिन पार्टी कहीं मैदान में नहीं दिख रही है। अलबत्ता राजीव भवन में बैठे पार्टी नेता बड़े दावे ज़रूर कर रहे हैं।
सवाल वही है, जब चम्पावत में बिगुल बज चुका है तो प्रदेश अध्यक्ष गढ़वाल दौरा छोड़ कर भी आ सकते थे और उस दौरे को बाद में पूरा किया जा सकता था। वैसे भी 2024 के लोकसभा चुनाव तक प्रदेश अध्यक्ष को दौरे ही तो करने हैं।
निसंदेह उपचुनाव अगर मुख्यमंत्री का हो तो उसमें जीत लगभग पक्की ही होती है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि हमारे लोकतंत्र में कई बार सत्तासीन दल को पराजय का सामना भी करना पड़ा है। लेकिन यह तभी संभव है जब पार्टी पूरी मुस्तैदी से चुनाव मैदान में डटे, जबकि चम्पावत में ऐसा कुछ दिख नहीं रहा है। हालत बता रहे हैं कि “घर की सल्तनत घर में रहे” के फार्मूले पर कांग्रेस चल रही है। वरना जब करन महरा की ताजपोशी हुई थी और साथ ही नेता प्रतिपक्ष और उपनेता प्रतिपक्ष तीनों कुमाऊं से नियुक्त किए गए तो यही संदेश दिया गया था कि धामी को घेरने के लिए ही यह फील्डिंग सजाई गई है। कुमाऊं से कांग्रेस को ज्यादा सीटें मिली, उसे यह पुरस्कार मिलना ही था। गढ़वाल से तो उसे निराशा ही मिली लेकिन क्षेत्रीय संतुलन के नाम पर यह अपेक्षा राजनीतिक क्षेत्रों में की ही जाती है।
बहरहाल अगर आपको भी लग रहा है कि अगले तीन सप्ताह के चुनाव अभियान के दौरान कांग्रेस कोई चमत्कार कर दिखाएगी तो यह आसमान से तारे तोड़ कर लाने जैसा ही है और तारे तोड़ कर कभी लाए नहीं जाते। हाँ कांग्रेस अपने सम्मान को बचा सकती है, हार जीत का अंतर घटा कर। भाजपा की जीत का अंतर हेमेश की तुलना में कम कर दे तो यह भी उसकी जीत ही मानी जाएगी लेकिन यह ठीक उस तरह है कि न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी। चम्पावत के लोगों को मुख्यमंत्री का चुनाव करना है, विधायक का नहीं और भला सीएम को कौन हराना चाहेगा?
मौजूदा हालत में यही निष्कर्ष निकलता है कि कांग्रेस इस चुनाव के प्रति गंभीर फिलहाल तो नहीं दिख रही है। यदि आपको दिख रही हो तो मुझे भी बताएं। अभी तक के मिजाज से तो यही लग रहा है कि चम्पावत के लोग एकतरफा जाएँगे। यह इस बात से भी लगता है कि जिस तरह कांग्रेस के लोग भाजपा में शामिल हो रहे हैं, उससे कांग्रेस सेना विहीन होती दिख रही है। दूसरे गढ़वाल मंडल दौरे में भी महरा के सामने कोई नेता कांग्रेस में शामिल नहीं हुआ, उल्टे हरदा के खास कहे जाने वाले जोत सिंह बिष्ट ने कांग्रेस को बाय बाय कह कर आप की टोपी पहन ली। अभी और कितने जाएँगे, कहा नहीं जा सकता। उस हालत में 2024 के रण की बात तो दूर रही, अगले साल होने वाले निकाय चुनाव और उसके बाद पन्चायत चुनाव में कांग्रेस कहां होगी, आप अभी से अनुमान लगा सकते हैं, जबकि महरा के सामने चम्पावत की चुनौती एक मौका है। अभी भी फूल मालाओ का मोह त्याग कर वे 30 मई तक चम्पावत में कैम्प करते हैं और अपने कौशल का लोहा मनवाते हैं तो उनका कद बढ़ सकता है और उनके नेतृत्व की उपयोगिता भी सिद्ध हो सकती है, वरना कांग्रेस जिस गति से चल रही है, उस गति से कोई भी चला सकता है और आज तक भी तो चल ही रही थी। सवाल यह भी है कि जब इसी तरह चलना था तो गोदियाल पर कौन से कांटे लगे थे। वो तो पार्टी को 11 से 19 तक पहुन्चाने में सफल रहे ही हैं। खैर 3 जून को चुनाव परिणाम आने तक आप भी नजर बनाये रखें। इस दौरान बहुत कुछ देखने को मिलेगा।

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