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विरासत कर क्या है …..?

-Milind Khandekar

लोकसभा चुनाव में विरासत कर अचानक गर्म मुद्दा बन गया. इंडियन ओवरसीज़ कांग्रेस के चेयरमैन सैम पित्रोदा का बयान इस मुद्दे को गरमाने का कारण बना. पित्रोदा ने कहा कि अमेरिका की तरह भारत में विरासत कर लगाने पर विचार होना चाहिए. कांग्रेस के घोषणापत्र में इसका कोई ज़िक्र नहीं था, फिर भी बीजेपी इस मुद्दे को ले उड़ी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि कांग्रेस लोगों पर ज़िंदगी के बाद भी टैक्स लगाना चाहती है. आज हिसाब किताब में चर्चा विरासत कर के बारे में

भारत में 1985 तक विरासत कर लगता था. यह टैक्स 50 हज़ार रुपये की संपत्ति से लगना शुरू होता था और फिर बढ़ता चला जाता था. अगर कोई व्यक्ति विरासत में संपत्ति अपने परिवार के लिए छोड़ता था तो उसे 5% से लेकर 85% तक टैक्स चुकाना पड़ता था. 20 लाख रुपये या ज़्यादा की संपत्ति होने पर 85% टैक्स था. अगर 20 लाख रुपये संपत्ति थी तो सरकार 17 लाख रुपये टैक्स में वसूल कर लेती थीं. परिवार को मिलते थे 3 लाख रुपये . प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने इसके ख़त्म कर दिया क्योंकि जितना खर्च इसको इकट्ठा करने के लिए होता था उतना कलेक्शन नहीं हो पा रहा था.

विरासत कर वैसे तो समाजवादी आइडिया है. सरकार अमीरों के पैसे का हिस्सा मरने के बाद ले लेती है.  विकसित देशों जैसे जापान, अमेरिका और ब्रिटेन में आज भी यह टैक्स लागू है. सरकार निश्चित लिमिट से संपत्ति ज़्यादा होने पर टैक्स वसूलती है. जापान में 55% जबकि अमेरिका और ब्रिटेन में 40% तक टैक्स काट लेती है यानी लगभग आधी संपत्ति सरकार रख लेती है.

इसका लॉजिक है कि समाज में विषमता दूर करने में मदद मिलेगी. अगली पीढ़ी को मेहनत करनी होगी वरना जो अमीर है वो पीढ़ियों तक फ़ायदे में रहेंगे और गरीब नुक़सान में . हालाँकि यह बहस जारी है कि टैक्स लगाने से विषमता कम होती है या नहीं, लेकिन भारत के आँकड़े आपकी आँखें खोल देंगे. World inequality Labकी रिपोर्ट के अनुसार

मान लीजिए कि देश की संपत्ति 100 रुपए है और आबादी 100 है तो सिर्फ़ 1 आदमी के पास 40 रुपये संपत्ति है यानी बाक़ी 99 लोगों के पास बचे 60 रूपये.

अब अगर आप दस लोगों के हाथ की संपत्ति देखते हैं तो उनके हाथ में 65  रुपये है. बाक़ी 90 लोगों के बीच बंटे हैं 35  रुपये.

देश में 92 करोड़ वयस्क है. इनमें से 10 हज़ार लोग ऐसे हैं जिनकी औसत संपत्ति 2200 करोड़ रुपये है. यह किसी भारतीय की औसत संपत्ति से 17 हज़ार गुना अधिक है.

रिपोर्ट के अनुसार भारत में 60 साल में इतनी अधिक विषमता कभी नहीं रही है. 1991 के आर्थिक सुधार के बाद सबकी आमदनी तो बढ़ी लेकिन विषमता और बढ़ती चली गई. पूंजीवाद में थ्योरी है Trickle down. अमीरों के पास पैसा होगा तो वो खर्च करेंगे, निवेश करेंगे. यह पैसा धीरे धीरे नीचे तक पहुँचेगा . सबको फ़ायदा होगा. फ़ायदा तो हो रहा है लेकिन बहुत ही धीमे धीमे.

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