जब शेक्सपियर का नाटक अभिनीत होते देखा मैंने
-गोविंद प्रसाद बहुगुणा –
BA की पढ़ाई करते समय हमारे कोर्स में शेक्सपियर का एक नाटक Merchant of Venice था हमारे एक प्रोफेसर श्री चतुर्वेदी जी हमें यह नाटक पढ़ाते थे उनका लेक्चर बड़ा जीवंत होता था -नाटक के संवाद पढ़ाते हुए वह उसी लहजे में स्वर निकल कर और अभिनय करते हुए अर्थ समझाते थे -शायद यही वजह होगी कि मुझे इस नाटक के बहुत से संवाद आज भी मुखाग्र याद हैं I कल परसों जब मैं संसद में एक बड़े नेता का भाषण सुन रहा था तो मुझे लगा जैसे मैं आज शेक्सपियर का नाटक मर्चेंट ऑफ़ VENICE तो नहीं देख रहा हूँ ? उसमें एक पात्र जिसका नाम Bassanio है किसी दूसरे
पात्र का चरित्र चित्रण इस प्रकार कर रहा है ,आप भी सुनिए वह क्या कहता है –
“Gratiano speaks an infinite deal of nothing,
more than any man in all Venice. His reasons are as
two grains of wheat hid in two bushels of chaff: you shall seek all day ere you find them, and when you
have them, they are not worth the search. ” —GPB