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क्या नूपुर शर्मा के लिये अभियान चलाने वाले भी माफी मांगेंगे?

 


-जयसिंह रावत
भाजपा की निलंबित प्रवक्ता द्वारा हजरत मोहम्मद पर की गयी घोर आपत्तिजनक टिप्पणी के बाद उठे विवाद में जो लोग नूपुर शर्मा के समर्थन में सोशियल मीडिया और अन्य मंचों पर अभियान चला रहे थे, भारत के सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियों के बाद अब क्या वे समर्थक भी देश और समाज से माफ मांगेंगे? दुर्भाग्य का विषय तो यह है कि इस अभियान में केवल धर्मांध और अनपढ़ ही नहीं बल्कि तथाकथित बुद्धिजीवी और सुपर बुद्धिजीवी पत्रकार भी शामिल थे। भले ही यह अभियान एक कुत्सित राजनीतिक ऐजेंडे के तहत किया गया हो मगर इससे इस राष्ट्र की एकता को झटका लगा है। इससे किसी राजनीतिक विचारधारा को वोटों के ध्रुवीकरण में मदद जरूर मिली होगी मगर राष्ट्र को बहुत नुकसान हुआ है। हमकह सकते हैं कि राष्ट्र की आत्मा बहुत आहत हुयी है। अब तो न्याय के मंदिर ने भी कह दिया कि राजस्थान के उदयपुर में दो लोगों ने एक टेलर के साथ जो बहिशियाना हरकत की वह भी नूपुर के कारण हुयी, इसलिये नूपुर के लिये कोई खतरा हो या न हो मगर नूपुर स्वयं सुरक्षा के लिये खतरा है।


आज भारत राष्ट्र का जो स्वरूप है उसे भारत के लोगों की इच्छानुसार 1947 से लेकर संविधान के लागू होने तक तय किया गया था। उस राष्ट्र को तैयार करने के लिये स्वतंत्रता सेनानियों ने बहुत लम्बी लड़ाई लड़ी थी। कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक नये सम्प्रभुता सम्पन्न, समाजवादी, पंथ निरपेक्ष गणतांत्रिक राष्ट्र के लिये जो संविधान बना वह भी सम्पूर्ण राष्ट्र की सहमति से ही तैयार किया गया था। जो राष्ट्र के इस ढांचे से या संविधान की पंथनिरपेक्षता से सहमत नहीं रहे होंगे उनसे राष्ट्र सहमत नहीं था। अगर राष्ट्र सहमत होता तो उसी समय संविधान उनके अनुरूप बन जाता। आधुनिक भारत की नींव रखते समय जिन राजनीतिक विचारधाराओं को देशवासियों ने क्यों महत्व नहीं दिया, इस पर उन्हें स्वयं विचार करना चाहिये और संविधान की मूल भावना का आदर करना सीखना चाहिये।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का शासन चलाने के लिये दुनिया के सबसे विस्तृत लिखित संविधान की प्रस्तावना, जिसे आधारशिला या संविधान की मूल भावना कहा जा सकता है, का पहला ही शब्द ‘‘हम’’ और दूसरा शब्द ‘‘लोग’’ है। संविधान की बुनियाद के इन दो शब्दों को दिलोदिमाग में बिठा कर रखे जाने की जरूरत है। क्योंकि ‘‘हम लोग’’ का मतलब हम सब भारत में रहने वाले लोगों से है, चाहे वे किसी धर्म या जाति के हों।


ये देश धर्म ग्रन्थों से नहीं बल्कि संविधान से ही चलेगा और देश के सर्वोच्च न्यायालय ने नूपुर शर्मा के मामले में कल जो प्रत्यक्ष और परोक्ष टिप्पणियां की हैं उनका मतलब भी यही है। विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक, गणराज्य, कुल पांच शब्दों पर टिका हुआ है। इन पांच शब्दों से कोई भी शासक संविधान को नहीं भटका सकता।
वैसे भी सुप्रीम कार्ट की 13 जजों की संविधान पीठ 1973 में केशवानन्द भारती बनाम केरल सरकार के मामले में कह चुकी है कि संसद को संविधान संशोधन के व्यापक अधिकार अवश्य प्राप्त हैं, मगर असीमित अधिकार नहीं हैं। क्योंकि संविधान से ही संसद है, न कि संसद से संविधान। संविधान की पंथनिरपेक्ष और समाजवादी लोकतांत्रिक गणतंत्र की भावना को कोई नहीं बदल सकता। अगर संविधान की मूल भावना को बदलने के उदे्श्य से राजनीतिक शक्ति अर्जित करने और उस शक्ति को अपने पास अक्षुण रखने के लिये देश में धार्मिक उन्माद फैलाया जा रहा है तो वह प्रयास कभी सफल नहीं होगा, क्योंकि संविधान निर्माताओं ने न्यायपालिका के रूप में तीसरा स्वतंत्र स्तंभ भी गहराई तक स्थापित कर रखा है।

मा0सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां इस प्रकार रहीं:-

  •  पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ टिप्पणी को लेकर नूपुर शर्मा के खिलाफ दर्ज प्राथमिकियों को दिल्ली ट्रांसफर करने संबंधी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नूपुर शर्मा ने पैगंबर के खिलाफ टिप्पणी या तो सस्ता प्रचार पाने के लिए या किसी राजनीतिक एजेंडे के तहत या किसी घृणित गतिविधि के तहत की है.
  • जब नूपुर शर्मा के वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उनकी जान को खतरा है, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि उन्हें खतरा है या वह सुरक्षा के लिए खतरा बन गई हैं?
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये बयान बहुत व्यथित करने वाले हैं और इनसे अहंकार की बू आती है. इस प्रकार के बयान देने से उनका क्या मतलब है? आप अगर किसी पार्टी की प्रवक्ता हैं तो इसका मतलब आपको कुछ भी कहने का हक मिल जाता है.
  • कोर्ट ने आगे कहा कि इन बयानों के कारण देश में दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हुईं… ये लोग धार्मिक नहीं हैं. वे अन्य धर्मों का सम्मान नहीं करते. कोर्ट ने पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ टिप्पणी को लेकर नूपुर शर्मा की माफी का उल्लेख करते हुए कहा कि यह बहुत देर से मांगी गई.
  •  सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा क‍ि नूपुर शर्मा की बयानबाजी की वजह से उदयपुर जैसा दुखद मामला सामने आया है. कोर्ट ने टिप्पणी की कि हमने टीवी डिबेट को देखा है. उन्‍होंने भड़काने की कोशिश की, लेकिन उसके बाद उन्होंने जो कुछ कहा, वो शर्मनाक है. उन्हें टीवी पर पूरे देश से माफी मांगनी चाहिए.
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नूपुर शर्मा के बयान ने देश भर में लोगों की भावनाओं को भड़का दिया है. आज जो कुछ देश में हो रहा है, उसके लिए वो जिम्मेदार हैं. कोर्ट ने आगे कहा कि पुलिस ने जो कुछ किया है, उस पर हमारा मुंह मत खुलवाइए. उन्हें अब मजिस्ट्रेट के सामने पेश होना चाहिए. यह टिप्पणी उनके घमंडी रुख को दिखाती है.
  • सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि नूपुर शर्मा ने जिनके खिलाफ शिकायत की, उनको गिरफ्तार कर लिया गया, मगर कई एफआईआर होने के बावजूद नूपुर शर्मा को दिल्ली पुलिस ने अब तक छुआ तक नहीं.
  • पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ कथित टिप्पणी को लेकर नूपुर शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और यह मांग की थी कि उनके खिलाफ अलग-अलग राज्यों में जितने भी केस दर्ज हैं, उन सभी को दिल्ली ट्रांसफर किया जाए. इसी मामले पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को सुनवाई हुई. बता दें कि नूपुर शर्मा के खिलाफ दिल्ली, कोलकाता, बिहार से लेकर पुणे तक कई मामले दर्ज हैं.

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