पर्यावरण के विश्वगुरू भारत का प्रदर्शन विश्व में सबसे खराब: लेकिन भारत ने कहा ऐसा तो नहीं !
-जयसिंह रावत
भारत को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि बचाने के लिये कुछ महीनों से निरन्तर जद्दोजहद करनी पड़ रही है। अप्रैल के महीने में विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर भारत को विरोध दर्ज करना पड़ा। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि भारत में कोविड-19 महामारी में कम से कम 47 लाख लोग मारे गये। जबकि भारत का दावा था कि महामारी में केवल 4.8 लाख लोगों की जानें गयी हैं। कोरोना के बाद नुपुर शर्मा और नवीन कुमार जिन्दल आदि की हेट स्पीच को लेकर विदेश मंत्रालय को मशक्कत करनी पड़ी और अब पर्यावरण सूचकांक को लेकर भारत सरकार ने उस रिपोर्ट को अवैज्ञानिक, काल्पनिक और निराधर मान्यताओं पर आधारित बताया है जिसमें कहा गया था कि पर्यावरण संरक्षण में भारत का प्रदर्शन सबसे निचले याने कि सबसे नीचे 180वें स्थान पर है। जबकि चण्डी प्रसाद भट्ट, सुन्दर लाल बहुगुणा और मेघा पोटेकर जैसी हस्तियों के कारण चिपको जैसे पर्यावरण जागरूकता आन्दोलन के जन्मदाता भारत को पर्यावरण का विश्व गुरू माना जाता है।
ताजा विवाद अमेरिका के कोलम्बिया विश्वविद्यालय के पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2022 को लेकर खड़ा हुआ है। यह रिपोर्ट येल तथा कोलिबिया अर्थ इंस्टीट्यूट ने संयुक्त रूप से तैयार की है। जिस तरह स्वास्थ्य संबंाी मामलों में विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट को सबसे प्रमाणिक माना जाता है उसी तरह विरूव में पर्यावरण संबंधी सभी रिपोर्टों में इसकी रिपोर्ट को सबसे विश्वसनय माना जाता है। इस रिपोर्ट पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने नाराजगी जताते हुए बुधवार को पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक- 2022 को खारिज कर दिया। इस सम्बंध में कोलम्बिया विश्व विद्यालय की रिपोर्ट के अंश तथा भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के खण्डन को दोनों को दिया जा रहा है।
पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में कहा गया है कि 2022 में भारत 18.9 के कुल स्कोर के साथ 180वें स्थान पर है और पिछले एक दशक में उसके प्रदर्शन में 0.6 अंकों की गिरावट आई है। रिपोर्ट के अनुसार भारत के पड़ोसी देशों ने बेहतर प्रदर्शन किया है जिसमें पाकिस्तान 176वें और बांग्लादेश 177वें स्थान पर है। पर्यावरण जोखिम का खतरा, हवा की शुद्धता, जल स्रोतों के स्वास्थ्यवर्धक प्रबंधन, वायु प्रदूषण, पानी एवं सफाई के निर्धारकों, जैव विविधता, पेयजल की गुणवत्ता, कूड़े के निष्पदान, ग्रीन एनर्जी में निवेश समेत सभी निर्धारकों में भारत का प्रदर्शन सबसे नीचे रहा है। रैंकिंग में डेनमार्क को सबसे शीर्ष पर रखा गया है। रिपोर्ट में माना गया है कि खराब प्रदर्शन का सबसे बड़ा कारण भारत सरकार द्वारा मौजूदा पर्यावरण कानूनों को मजबूत करने एवं नए कानून बनाने के बजाय उन्हें शिथिल करना है।
जबकि भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय का कहना है कि हाल में जारी किए गए पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2022 के अनेक संकेत निराधार मान्यताओं पर आधारित हैं। प्रदर्शन मूल्यांकन के लिए इस्तेमाल किए गए इनमें से कुछ संकेतक काल्पनिक हैं तथा अटकलों और अवैज्ञानिक पद्धितियों पर आधारित हैं।
पर्यावरण मंत्रालय इसके विश्लेषण और निष्कर्षों को निम्न कारणों से स्वीकार नहीं करता है :-
- जलवायु नीति के उद्देश्य में एक नया संकेतक 2050 में जीएचजी उत्सर्जन स्तर है। इसकी गणना मॉडलिंग के बदले पिछले 10 वर्षों के उत्सर्जन में परिवर्तन के औसत दर के आधार पर की जाती है जिसमें लम्बी अवधि, नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता और उपयोग की सीमा और संबंधित देशों के उपयोग, अतिरिक्त कार्बन सिंक, ऊर्जा दक्षता को ध्यान में रखा जाता है।
- देश के वन और आर्द्रभूमि महत्वपूर्ण कार्बन सिंक हैं जिन्हें ईपीआई-2022 द्वारा दिए गए 2050 तक अनुमानित जीएचजी उत्सर्जन प्रक्षेप पथ की गणना करते समय शामिल नहीं किया गया है।
- निम्नतम उत्सर्जन प्रक्षेप पथ पर एतिहासिक डेटा की उपरोक्त गणना में अनदेखी की गई है।
- जिन संकेतकों में देश अच्छा प्रदर्शन कर रहा था उनका भार कम कर दिया गया है और भार के नियत कार्य में परिवर्तन के कारणों की व्याख्या रिपोर्ट में नहीं की गई है।
- प्रति व्यक्ति जीएचजी उत्सर्जन और जीएचजी उत्सर्जन तीव्रता प्रवृत्ति जैसे संकेतकों के रूप में इक्विटी के सिद्धांत को बहुत कम महत्व दिया जाता है। सूचकांक की संरचना में मुश्किल से सीबीडीआर-आरसी सिद्धांत परिलक्षित होता है।
- भारत ने गैर-जीवाष्म ईंधन आधारित स्रोतों से स्थापित बिजली क्षमता का 40 प्रतिशत लक्ष्य पहले ही प्राप्त कर लिया है।
- कोपरनिकस वायु प्रदूषक सांद्रण डेटा, जिसके आधार पर डीएएलवाई के अनुमान लगाए गए हैं, कम व्यापक निगरानी नेटवर्क तथा उत्सर्जन इंवेन्ट्री वाले क्षेत्रों में उच्च अनिश्चितता है। यह सीमा वायु गुणवत्ता के सटीक आकलन की संभावना को कम कर देती है।
- जल गुणवत्ता, जल उपयोग दक्षता, प्रति व्यक्ति अपशिष्ट उत्पादन पर संकेत जो सतत उपभोग और उत्पादन से निकट रूप से जुड़े हुए हैं सूचकांक में शामिल नहीं किए गए हैं।
- सूचकांक उनके द्वारा वहन की जाने वाली सुरक्षा की गुणवत्ता की जगह संरक्षित क्षेत्रों की सीमा पर बल देता है। जैव विविधता सूचकांकों की गणना में प्रबंधन प्रभावशीलता संरक्षित क्षेत्रों और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों का मूल्यांकन शामिल नहीं है।
- सूचकांक इकोसिस्टम की सीमा की गणना करता है, उनकी स्थिति या उत्पादकता की नहीं। ऐसे मेट्रिक्स को शामिल करने की कोशिश करनी चाहिए जो वास्तव में इकोसिस्टम की उत्पादकता को ग्रहण करते हैं जैसे कि नियामक, प्रावधान तथा विभिन्न इकोसिस्टम जैसे वन, आर्द्रभूमि, फसल भूमि द्वारा प्रदान की जाने वाली सांस्कृति सेवाओं का मूल्यांकन किया जाता है और प्रदर्शन में परिलक्षित होता है।
- जैवविविधता, मृदा स्वास्थ्य, खाद्य हानि तथा अपशिष्ट जैसे संकेतक शामिल नहीं हैं यद्यपि वे बड़ी कृषि आबादी वाले विकासशील देशों के लिए महत्वूपर्ण हैं।
विसंगतियों का विस्तृत विश्लेषण नीचे किया गया है
- जलवायु परिवर्तन विषय श्रेणी:
जलवायु नीति को एक नई नीति के रूप में 2022 में प्रस्तुत किया गया। पहले यह इकोसिस्टम, जीवन शक्ति उद्देश्य का हिस्सा था और पिछले सूचकांक में इसका भारांक 24 प्रतिशत था। नीति उद्देश्य का भारांक 38 प्रतिशत है। इस उद्देश्य में भारत को 165 वां स्थान दिया गया है जबकि पहले यह 106 था। ऐसा इसलिए क्योंकि नीति के उद्देश्य में कुछ नए मानदंड शामिल किए गए हैं और भार को संशोधित किया गया है।
- नए जोड़े गए संकेत के लिए “2050 में अनुमानित उत्सर्जन स्तर जो विषय श्रेणी जलवायु परिवर्तन का 36 प्रतिशत है, उपयोग की जाने वाली पद्धति है “10 वर्षों (2010-2019) में उत्सर्जन में वृद्धि या कमी की औसत दर की गणना की जाती है और फिर उसी वर्ष उत्सर्जन के स्तर का अनुमान लगाते हुए प्रवृत्ति को 2050 तक बढ़ा दिया गया है।” विकासशील देश और दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश होने के नाते भारत में जीएचजी उत्सर्जन की प्रवृत्ति अधिक होगी। सही तरीका यह होगा कि प्रति व्यक्ति जीएचजी उत्सर्जन की गणना की जाए और इसके लिए भविष्य के वर्षों के लिए मूल्यों के अनुमान के लिए नवीकरणीय ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनिक वाहनों, कार्बन सिंक के निर्माण जैसे उत्सर्जन को कम करने की नीतियों के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए गुणांक के साथ एक मॉडल हो। सीसीपीआई 2022 संकेत का एक उदाहरण का संदर्भ दिया जा सकता है जहां प्रति व्यक्ति जीएचजी उत्सर्जन पर संकेतकों पर विचार किया गया है और भारत का उच्च स्कोर 31.42 है और सूचकांक में उच्चतम स्कोर 33.39 है।
- वैश्विक कार्बन बजट 2021 पर आधारित ईपीआई 2022 रिपोर्ट के फिगर-1 से पता चलता है कि भारत में अन्य देशों के साथ-साथ शेष विश्व में सबसे कम उत्सर्जन प्रक्षेप पथ हैं। इसलिए इस पहलू को ध्यान में लिए बिना पक्षपाती मेट्रिक्स और पक्षपाती महत्व के उपयोग के परिणामस्वरूप निम्न रैंक मिली है। इससे यह भी ज्ञात होता है कि पिछले 10 वर्षों के आंकड़ों पर आधारित संकेतक विकसित देशों की ऐतिहासिक जिम्मेदारी को ध्यान में नहीं रखता है।
- जिन संकेतकों में भारत ने अच्छा प्रदर्शन किया है उनके भार को 2020 में पहले से कम कर दिया गया है। उदाहरण के लिए ब्लैक कार्बन विकास दर संकेतक के लिए भारत का प्रदर्शन सुधर कर 2022 में 100 हो गया है जबकि 2020 में 32 था जबकि कुल भार 2022 में घटाकर 0.0038 कर दिया गया है जो 2020 में 0.018 था। इसके अतिरिक्त भार चयन करने के लिए कोई विशिष्ट तर्क नहीं दिया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि भार का चयन पूरी तरह से प्रकाशन एजेंसी की पसंद पर आधारित है जो वैश्विक सूचकांक के लिए उपर्युक्त नहीं है।
- रिपोर्ट स्वीकार करती है कि ‘औद्योगिक देशों को स्थायी रूप से विकसित करने और अपनी आबादी के जीवन के गुणवत्ता में सुधार का अधिकार है।’ इसके लिए कम से कम विकसित देशों से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में प्रारंभिक वृद्धि की आवश्यकता हो सकती है। यद्यपि यह देश तकनीकी रूप से छलांग लगाने के अवसर को ग्रहण कर सकते हैं और जीवाष्म ईंधन आधारित बुनियादी ढांचे पर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को प्राथमिकता से अपना सकते हैं। यद्यपि इस कारक को जीएचजी तीव्रता प्रवृत्ति और जीएचजी प्रति व्यक्ति संकेतकों में लाकर केवल मामूली रूप से शामिल किया गया है जिसमें देश के रैंक में वास्तव में सुधार हुआ है लेकिन ऐसे संकेतकों को बहुत भार दिया गया है।
- जलवायु परिवर्तन संकेतक राष्ट्रीय परिस्थितियों और नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग के अनुसार जलवायु परिवर्तन विषय श्रेणी में प्रदर्शन संकेत तैयार करते समय सामान्य लेकिन विभेदक जिम्मेदारियों पर यूएनएफसीसीसी इक्विटी सिद्धांत को पर्याप्त रूप से शामिल नहीं करते हैं इसलिए एक ‘विकासशील’ के परिप्रेक्ष्य की कमी हो जाती है। प्रकाशन एजेंसी को सीमा के बारे में सूचना दी गई थी और प्रकाशन एजेंसी के प्रतिनिधियों द्वारा यह कहा गया था कि भारत और अन्य विकासशील देशों के साथ जुड़ाव किया जाएगा ताकि विषय श्रेणी में इस विषमता को ठीक किया जा सके। यद्यपि ऐसा कोई प्रयास नहीं देखा गया है।
- 2022 ईपीआई के समायोजित उत्सर्जन वृद्धि दर संकेतक वर्तमान जीएचजी इन्वेंट्री से प्राप्त होते हैं जिनकी गणना कई मान्यताओं का उपयोग करके की जाती है।
- कोई भी संकेतक नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता तथा प्रक्रिया अनुकूलन के बारे में बात नहीं करता। संकेतकों का चयन पक्षपाती और अधूरा है।
- प्रति व्यक्ति जीएचजी उत्सर्जन सूचकांक में कुल मिलाकर 2.6 प्रतिशत भार का योगदान देता है।
- भारत, पेरिस समझौते का पक्षधर है और उसने 2070 तक नेट जीरो का लक्ष्य दिया है इसलिए 2050 में अनुमानित 2050 उत्सर्जन वाले देशों से इसकी तुलना शून्य के बराबर या शून्य से कम प्राप्त करना सीबीडीआर-आरसी में दिए गए इक्विटी के सिद्धांत के विरुद्ध है।
- अपनी स्वीकृति द्वारा संकेतक कई महत्वपूर्ण धारणाओं पर आधारित हैं। पहली बात यह है कि पायलट संकेतक अभी तक कार्बन डायऑक्साइड समाप्त करने के लिए जिम्मेदार नहीं है। वर्तमान अनुमान केवल कम हो रहे उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। यद्यपि वातावरण से कार्बन डायऑक्साइड हटाने की कम दर वर्तमान में इस धारणा की अनुमति देती है, ईपीआई दर यह मानता है कि आने वाले वर्षों में कार्बन कैप्चर तथा सिक्वेस्ट्रेशन प्रयास राष्ट्रीय जलवायु नीति विभागों की एक महत्वपूर्ण विशेषता बन जाएंगे। कार्बन ड्रॉडाउन के लिए आशाजनक रणनीतियों में प्रकृति आधारित समाधान और इंजीनियर प्रौद्योगिकियां (एनएएसईएम, 2021, रॉयल सोसाइटी, 2017) दोनों शामिल हैं। कार्बन सिक्वेस्ट्रेशन एडवांस पर अनुसंधान और डेटासेट के रूप में ईपीआई के अनुमानित उत्सर्जन संकेतक के बाद की प्रवृत्तियों में 2050 अनुमानों (हैरिस 8 और, 2021) में नकारात्मक उत्सर्जन अनुमान शामिल होंगे।
इस प्रकार भारत के लिए पेड़ कवर नुकसान और आर्द्रभूमि नुकसान श्रेणी में सुधार देश द्वारा दिए गए अतिरिक्त कार्बन सिंक के एनडीसी (राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगतान) के उलट अनुमानित उत्सर्जन प्रक्षेप पथ से जुड़ा नहीं है। वन और आर्द्रभूमि दोनों ही महत्वपूर्ण कार्बन सिंक है जो अनुमानित उत्सर्जन में परिलक्षित नहीं होते हैं।
- उत्सर्जन का अनुमान संबंधित उत्सर्जन कारकों द्वारा गतिविधि को गुणा करके लगाया जाता है। रिपोर्ट में स्वीकार करते हुए कहा गया है कि ‘ये उत्सर्जन कारक विभिन्न स्थलों, कारखानों और संचालन में भिन्नता के लिए उत्तरदायी नहीं हैं। उदाहरण के लिए कृषि उत्सर्जन कारक वर्तमान राष्ट्रीय उत्सर्जन इंवेन्ट्री में व्यापक रूप से प्रतिनिधित्व करने के लिए बहुत सूक्ष्म तरीके से भिन्न होते हैं। (वॉलिंग और वेनीखॉट, 2020)। गैर सीओ-2 ग्रीन हाउस गैस के लिए अनिश्चितताएं अधिक हैं। कृषि जैसे कुछ क्षेत्रों से उत्सर्जन की मात्रा निर्धारित करना कठिन हो सकता है जिसका अर्थ है कि अनुमान क्षेत्रीय डेटा से प्राप्त होते हैं, जो अनिश्चितताएं प्रस्तुत कर सकते हैं।’ भारत मुख्य रूप से एक विकासशील है। कई मामलों में जीएचजी उत्सर्जन इंवेंट्री डिफॉल्ट उत्सर्जन कारकों का उपयोग करती हैं जो देश के लिए विशिष्ट नहीं हैं क्योंकि इंवेंट्री गणना का सुधार एक क्रमिक और संसाधन सघन प्रक्रिया है।
II पर्यावरणीय स्वास्थ्य संकेतकों के लिए-
- कम व्यापक निगरानी नेटवर्क और उत्सर्जन इंवेंट्री वाले क्षेत्रों में कोपरनिकस वायु प्रदूषक सांद्रता डेटा में काफी अधिक अनिश्चितता है। यह सीमा सटीक डेटा प्राप्त करने की संभावना को कम कर देती है। सटीक डेटा की कमी के साथ संकेतक का मूल्य संदिग्ध हो जाता है और उस पर स्कोर आधार मान्य नहीं हो सकता।
- सूचकांक में ऐसा कोई संकेतक नहीं है जो स्वस्थ्य पानी के मानदंडों के आधार पर वास्तविक पानी की गुणवत्ता को माप सके। भारत में पानी की गुणवत्ता और निगरानी स्टेशनों के लिए भी मानक हैं। भारत सतत विकास लक्ष्यों के लिए अच्छी परिवेशी जल गुणवत्ता पर डेटा भी प्रस्तुत कर सकता है, यह डीएएलवाई से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सभी जीवन रूपों के लिए परवेशी जल गुणवत्ता को मापता है।
III कुल ईपीआई में इकोसिस्टम वाइटलिटी पॉलिसी ऑब्जेक्टिव का भार 60 प्रतिशत से कम हो कर 42 प्रतिशत हो गया है।
जैव विविधता और टी: पर्यावास
- ईपीआई ने अपनी 2022 की रिपोर्ट में स्वीकार किया है कि संकेतक – टेरेस्ट्रियल बायोम प्रोटेक्शन, नेशनल (टीबीएन) और ग्लोबल (टीबीजी) वास्तविक बायोम सुरक्षा के लिए अपूर्ण प्रॉक्सी हैं क्योंकि वे प्रबंधन प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने में सक्षम नहीं हैं। इसके अतिरिक्त ये संकेतक संरक्षित बायोम के प्रतिशत का आकलन करने के लिए बायोम के अंतर्राष्ट्रीय वर्गीकरण पर निर्भर करते हैं। चूंकि राष्ट्रीय/कानूनी रूप से परिभाषित संरक्षित क्षेत्रों को हमेशा संबंधित बायोम की भौगोलिक सीमाओं के साथ जोड़ा नहीं जा सकता है, इसलिए अंतरराष्ट्रीय वर्गीकरण पर पूरी तरह से विश्वास करना विवेकपूर्ण नहीं हो सकता है और इसलिए अन्य प्रोक्सी विकसित करने के प्रयास किए जाने चाहिए जो संरक्षण प्रयासों को ग्रहण करते हैं देश चाहे विशिष्ट बायोम के भीतर हो या बाहर।
- टीबीएन, टीबीजी या संरक्षित क्षेत्र प्रतिनिधित्व सूचकांक (पीआरआई) जैसे संकेतक संरक्षित क्षेत्रों के हवाई कवरेज पर निर्भर करते हैं, यद्यपियह गारंटी नहीं देता है कि सभी प्रजातियों को प्राथमिकता दी जाती है या क्षेत्र प्रबंधन योजनाओं द्वारा भी माना जाता है, या सुरक्षा प्रभावी और लागू होती है। व्यापक क्षेत्र सत्यापन के बाद भी, कई प्रजातियों की पूर्ण उपयुक्त पर्यावास श्रृंखला अज्ञात रहती है।
- इसके अलावाप्रजाति पर्यावास सूचकांक (एसएचआई), प्रजाति संरक्षण सूचकांक (एसपीआई) और जैव विविधता पर्यावास सूचकांक (बीएचआई) जैसे संकेतकों द्वारा रिपोर्ट किए गए पर्यावास के नुकसान से प्रजातियों के लिए खतरों का आकलन करने के लिए रिमोट सेंसिंग डेटा पर निर्भरता अक्सर पारिस्थितिक डेटा एकत्र करने में चुनौतियों का कारण बनती है। विशेष रूप से प्रजातियों के स्तर पर। ईपीआई 2022 रिपोर्ट के अनुसार, संकेतक भी अंतर्निहित डेटासेट के स्थानिक संकल्प से प्रभावित/सीमित होते हैं। इन पहलुओं से संकेत मिलता है कि डेटा गहन मानक भी जैव विविधता और पर्यावास संरक्षण की दिशा में किसी देश के प्रदर्शन को ग्रहण करने में उपयुक्त या प्रभावी नहीं हो सकते हैं।
- समुद्री संरक्षित क्षेत्रों के संकेतक के लिएयह ध्यान दिया जा सकता है कि पूरे ईईजेड को इस मेट्रिक की गणना के लिए विभाजक के रूप में लिया जाता है, जो भारत के लिए उपयुक्त नहीं है क्योंकि इसके सभी तटीय और एमपीए प्रादेशिक सागर के भीतर हैं और ईईजेड के एक विशाल क्षेत्र को भाजक के रूप में लेना स्वीकार्य नहीं है।
- मार्च 2022 में येल विश्वविद्यालय के साथ बैठक के दौरानयह उल्लेख किया गया था कि प्रकाशन एजेंसी एमओएल, जीबीआईएफ और सीएसआईआरओके साथ संपर्क स्थापित करने में मदद करेगी ताकि भारत को कार्यप्रणाली को समझने / दोहराने और उन सुधारों का सुझाव देने में मदद मिल सके जो भारतीय संदर्भ में अधिक उपयुक्त होंगे। यद्यपि, ऐसा कोई समर्थन नहीं दिया गया है।
- इसके अलावा, चूंकि भारत के रिकॉर्डदर्ज वन क्षेत्रों (आरएफए) पर डेटा अद्यतन करने के लिए संरक्षित क्षेत्रों के लिए विश्व डेटाबेस पर डेटा जमा करने की प्रक्रिया चल रही है, इसलिए प्रकाशन एजेंसी से भारतीय वन राज्य रिपोर्ट (आईएसएफआर 2021) को इस रूप में संदर्भित करने का अनुरोध किया गया था। जैव विविधता परिवर्तनीय का हिस्सा है, लेकिन इसे ध्यान में नहीं रखा गया है। इस प्रकार पुराने डेटा का उपयोग करके तैयार किया गया एक संकेतक सही तस्वीर को प्रतिबिंबित नहीं करता है।
- अंत मेंजैसा कि जेआरसी 2020 रिपोर्ट में बताया गया है, टेरेस्ट्रियल बायोम प्रोटेक्शन – नेशनल (टीबीएन) और टेरेस्ट्रियल बायोम प्रोटेक्शन – ग्लोबल (टीबीजी) जैसे दृढ़ता से सह-संबंधित संकेतकों को शामिल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि वे एक ही घटना की रिपोर्ट करते हैं और इसलिए कोई अर्थ नहीं रखते हैं। इसके बावजूददोनों संकेतकों को 2022 की रिपोर्ट में शामिल किया गया है, जो एक साथ जैव विविधता और पर्यावास विषय श्रेणी का लगभग 45 प्रतिशत है।
- इसके अलावाजैसा जेआरसी 2020 रिपोर्ट में बताया गया है, संकेतक जिनका संबंधित विशेष श्रेणी या ईपीआई से कोई महत्वपूर्ण संबंध नहीं है, को भी जैव विविधता पर्यावास सूचकांक (बीएचवी) और प्रजाति पर्यावास सूचकांक (एसएचआई) जैसे बनाए रखा गया है, जिसे अधिक उपयुक्त संकेतकों से बदला जा सकता था।
बी. इकोसिस्टम सेवाएं:
- चूंकि विषय श्रेणी का नाम इकोसिस्टम सर्विसेज है, इसलिए ऐसे मेट्रिक्स को शामिल करने का प्रयास किया जाना चाहिए जो वास्तव में नियामक, प्रावधान के साथ-साथ वनों, आर्द्रभूमि, फसल भूमि आदि जैसे विभिन्न इकोसिस्टम द्वारा प्रदान की जाने वाली सांस्कृतिक सेवाओं को ग्रहण करते हैं। प्रकाशन एजेंसी के साथ बैठक के दौरानयह बिंदु उठाया गया था और यह सूचित किया गया था कि इकोसिस्टम उत्पादकता और इकोसिस्टम सेवाएं जैव विविधता संकेतकों में परिलक्षित नहीं होती हैं, इसलिए जैव विविधता के नुकसान को समग्र रूप से कैप्चर नहीं किया जाता है। इसलिए यह बिंदु दोनों विषयों की श्रेणियों को कवर करता है।