स्वास्थ्य

योग: एक क्रांति का सूत्रपात

 

योग की यह हल्की किरण 1983 में ‘गंगा दर्शन’ की स्थापना तक वैश्विक विस्तार पा चुकी थी। इसी गंगा दर्शन में वह योगाश्रम स्थित है, जिसे 20वीं सदी में एक बार फिर भारत में योग क्रांति का सूत्रधार बनने का गौरव प्राप्त है। इसका आध्यात्मिक प्रकाश आज भारत सहित विश्व के 40 से अधिक देशों में फैल रहा है।

 

-डॉ. एच आर नागेन्द्र

योग ने यूं तो हमेशा से ही लोगों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है, पर पिछले वर्षों के दौरान योग को लेकर आम लोगों की जागरूकता में आमूल चूल बदलाव देखने में आया है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अपील के जवाब में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की घोषणा की तत्काल 187 देशों सराहना की गई एवं इसे प्रायोजित किया गया। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस ने योग को दुनिया भर के लाखों लोगों के लिए जीवन की एक शैली के रूप में बढ़ावा दिया है। इसके साथ ही, भारत ने एक प्राचीन अभ्यास को साझा किया है जिसे अब सांस्कृतिक, धार्मिक, राष्ट्रीय एवं भाषाई बाधाओं के भेदभाव से अलग दुनिया के लगभग सभी देशों ने अपना लिया है और इस प्रकार उन्होंने भारत के मूलभूत संदेश ‘ विविधता में एकता‘  को मजबूती प्रदान की है।

 

पश्चिम देशों में, योग को मूलभूत रूप से शारीरिक शक्ति और लचीलेपन को बेहतर बनाने के लिए एक शारीरिक क्रिया या व्यायाम माना जाता है। लेकिन, ‘योग‘ का अर्थ ही होता है ‘जोड़‘ अर्थात चेतना की उच्चतर अवस्थाओं तक पहुंचने के लिए दिमाग, शरीर और आत्मा का संयोजन।

तथाकथित ‘गॉड पार्टिकल‘ की खोज सहित प्रमात्रा भौतिक विज्ञान में हाल की प्रगति के साथ विज्ञान ने अपनी सीमाओं को महसूस करना और पारंपरिक न्यूनीकरण ढांचे से आगे देखना आरंभ कर दिया है। ज्ञान योग विज्ञान को भौतिक संरचना से आगे निकलने का निर्देश देता है जिससे कि मानवीय आयामों के पांच स्तरों की पहचान की जा सके।

भारत में वेदों के रूप में वैज्ञानिक चिंतन की एक लंबी परंपरा रही है जिसे सभी ज्ञान आधार के आरंभिक स्रोत के रूप में जाना जाता है और इसी वजह से योग के उद़भव का वेदों में होना कोई अपवाद की बात नहीं है। योग की चार धाराएं-ज्ञान, भक्ति, राज और कर्म योग बौद्धिक, भावनात्मक, इच्छा शक्ति और कर्म स्तरों पर कार्य करती हैं और व्यक्तित्व का समग्र रूप से विकास करती हैं। इसमें सभी लोगों के लिए एक संदेश है जैसाकि स्वामी कुवालयानंद ने दशकों पहले कहा था और बहुत पहले 1940 के दशक में योग में वैज्ञानिक अनुसंधान का अन्वेषण किया था। 1973 में प्रकाशित, योगी सत्यमूर्ति पर किए गए एक अध्ययन में नोट किया गया था कि वह नौ घंटों तक हद्य की विद्युतीय गतिविधि को स्वैच्छिक रूप से रोक पाने एवं उसके बाद स्वाभाविक रूप से उसे पुनरुज्जीवित कर सामान्य स्थिति में ले आने में सक्षम थे। दूसरे अध्ययन में, एक बौद्व ध्यान तकनीक के मानने वाले (बेन्सन एवं अन्य, 1982) अपने शरीर के तापमान को 15 डिग्री सेल्सियस से अधिक तक बढ़ा पाने में सक्षम थे। अनुसंधान में महर्षि महेश योगी के योगदान से दुनिया भर में टीएम (ट्रांसेडेन्टल मेडिटेशन) द्वारा विश्रांति प्रतिक्रिया का आयाम सामने आया। मधुमेह, कैंसर, दिल की बीमारियों आदि जैसी एनसीडी से निपटने के लिए आधुनिक चिकित्सा की एक अतिरिक्त पद्धति के रूप में योग के उपयोग ने आनुवांशिकी, मस्तिष्क के बदलावों, मनोविज्ञान, एवं शरीर क्रिया विज्ञान जैसे माध्यमों की समझ के जरिये इस तंत्र के साथ बेहद आशाजनक परिणाम प्रदर्शित किए हैं। बंगलुरू स्थित एस-वीवाईएएसए योग विश्वविद्यालय द्वारा ऐसे अनुसंधानों की पहल की जा रही है जोकि वर्तमान में योग अनुसंधान को समर्पित विश्व का एकमात्र पूर्ण विकसित विश्वविद्यालय है।

योग अब केवल एक दिन के समारोह तक ही सीमित नहीं रह गया है बल्कि एनसीटीई, एनसीईआरटी द्वारा योग को प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक स्तरों पर एक अनिवार्य विषय बनाए जाने के जरिये इसे अब हमारी शिक्षा प्रणाली में शामिल कर लिया गया है। यूजीसी भी पीछे नहीं रहा है और अनुसंधान के बारे में पढ़ाने तथा सभी लोगों तक इसका लाभ पहुंचाने के लिए योग्य व्यक्तियों को तैयार करने के लिए उसने योग को उच्चतर शिक्षा प्रणाली में शामिल कर लिया है।

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