आपदा/दुर्घटनाब्लॉग

कोल्हूखेत, जहां से धरती की बहुत लम्बी दरार गुजरती है, मगर नेता और नियोक्ता बेखबर

-प्रो0 महेन्द्र प्रताप सिंह बिष्ट

दोस्तों मुझे लगता है अगर आपने अनपढ़ या कम पढ़े लिखे लोगों को अपना जनप्रतिनिधि चुना तो याद रखो भविष्य मेँ भी ऐसे ही प्लानिंग दिखेगी जैसे आज मैंने अपने भविष्य के भू वैज्ञानिकों को दिखाया जिसकी एक हल्की सी झलक आपको भी पेश है…

ज़रा सोचिये लाखों रूपये हमारे टैक्स दाताओं के ये मूर्ख यूँ ही बहा रहे हैँ और हम हैँ कि इन्हें फ़िर से प्रदेश को लूटने के लिए ताज पहना देते हैँ। मैं किसी पार्टी का विरोधी नहीं हूँ, हर पार्टी मेँ अच्छे लोग भी हैँ और नालायक भी। ये समझ आपकी है कि आप किसे सही समझते होऔर किसे नालायक..?

कोल्हूखेत, जहाँ कभी चुंगी देने के लिए गाड़ियां रूकती थी और उस अंतराल में यात्री/पर्यटक चाय पकोड़ियों का लुत्फ़ उठाते थे।
यह स्थान बड़ा ही ऐतिहासिक है और भू गर्भिय  दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण भी…।


सन 1932 से पहले इस जगह की अपनी ही पहचान थी… हर कोई देहरादून से मसूरी जाने वाला यहाँ पर चुंगी देता था अब वो चाहे गाय – भैंस हो, घोड़ा- बकरी हो, आदमी तो बड़ी चीज है, अंग्रेजी हुकूमत के गुलाम, डांडी, कंडी, सबके रेट आज भी एक लाल रंग के बोर्ड पर अंकित हैँ नगरपालिका मसूरी के….।

जब से मसूरी की नयी सड़क बनी इस स्थान का महत्व ख़त्म सा हो गया है… ये कहना है 76 वर्षीय भंडारी जी का, जो कि आज भी नगरपालिका के उसी भवन मेँ रहते हैँ अपने नाती – पोतों के संग, कभी चुंगी लिया करते थे अपने पिताजी के साथ..।


भौमिकीय दृष्टि से यह स्थान बहुत खास है। एक तो यह स्थल दो नदियों के जलागम क्षेत्र की बाउंड्री को निर्धारित करता है.. यानी पूरव की ऒर गंगा नदी और पश्चिम मेँ यमुना नदी, और संयोग से नगरपालिका के भवन की छत भी ऐसी कि अगर ऊपर से बारिस हुयी तो आधा पानी यमुना मैं और आधा पानी गंगा मेँ… ।

दूसरा इस स्थान से दक्षिण की ऒर एक टीले शाहनशाही आश्रम की पुरानी ईमारत तो उत्तर की ऒर झड़ीपानी (मसूरी) की खड़ी चढ़ाई इस स्थान को खास आकार जिसे हम भू विज्ञान की भाषा मेँ SADDLE कहते हैँ। यानी घोड़े की काठी का आकार। ऐसा पता है क्यों..?

क्यूंकि इस स्थान से एक महत्वपूर्ण भूगर्भीय संरचना पूरव से पश्चिम की ऒर गुजरती है, जिसे हम MBT यानी Main Boundary Thrust.  अगर हिंदी मेँ कहें तो “मुख्य सीमा भ्रँस”। जिसके चलते यहाँ की भूमि सदा अस्थिर रहती है और जमीनी सतह की चट्टानें बहुत बुरी तरह से भंगुरित हैँ…और हाँ!  इस भ्रँस के उत्तर की ऒर लघु हिमालय की चट्टाने और दक्षिण की ऒर शिवालिक की चट्टाने देखी जा सकती हैँ..।


अब अगर कोई मुझसे ये पूछे कि ऐसे जगहों पर क़्या 10-10 मंजिल की ईमारत बननी चाहिए ? तो मैं क़्या कहूंगा? ये आप भी भली भांति जानते हैँ। परन्तु जब माननीय उच्चन्यायालय ने MDDA से पूछा कि MBT के क्षेत्र में आंकलन किया जाय कि कितने ऐसे भवन हैँ जो इस ख़तरनाक भू गर्भिय संरचना की जद में आते है, तो मित्रों आज तक उसका जवाब नहीं दिया गया..!

क्यूंकि हमने ऐसे कमअक़ली नेताओं को चुनते हैँ, जो खुद भी इस धंधे मेँ लिप्त होते हैँ.. । अब इस मंदिर की स्थिति को देखो और खुद से आंकलन करो कि क़्या ये हमारे गाढ़े कमाई की बर्बादी नहीं तो और क़्या….  सोचिये और अपने वोट का सही इस्तेमाल करिये..  यही वक्त है सही को सही कहने का।

 

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