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एक गंभीर चुनौती है शहरों में बढ़ते कचरे से पार पाना

Waste management requires facing a number of challenging issues, for instance, balancing objectives between promoting recycling and protecting consumers against harmful chemical substances in recycled materials; insufficient data collection; quality aspects related to recycling; energy recovery of waste; and waste.

—सुधीरेन्‍दर शर्मा

देश के अधिकतर बड़े और मध्यम शहरों तथा कस्बों में आमतौर पर छोटे पहाड़नुमा अशोधित शहरी कचरे के ढ़ेर नजर आते हैं। किसी भी शहर में आगंतुकों का स्‍वागत कचरे के ढ़ेर से होता हैं और घूरे पर पड़ा कचरा तेजी से बढ़ती समृद्धि को दर्शाता है। इसका परिणाम यह है कि लगभग सभी शहरों में कूड़े के ढ़ेर स्वास्थ्य के लिये गंभीर खतरा बन गए हैं, इनमें वे शहर भी शामिल हैं जो कचरे के निपटान के प्रभावी तरीके विकसित नहीं कर पाये हैं।

 

इस समस्या पर नियंत्रण के लिये भारत सरकार ने क्षेत्र-आधारित विकास और शहरी स्तर के स्मार्ट समाधान के माध्यम से जीवन में सुधार के लिए स्वच्छ भारत अभियान (एसबीए) और स्मार्ट सिटी मिशन (एससीएम) शुरू किये हैं। तीन साल की कार्य एजेंडा (2017-18 से 2019-20) तैयार करने में नीति आयोग ने नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट (एमएसडब्ल्यू) प्रबंधन की समस्‍या से निपटने के लिये व्यापक ढांचा तैयार किया है।

 

वास्तविकता में बदलाव के साथ विकास की रणनीति से ताल मेल के लिये  नीति आयोग को तीन वर्ष की अवधि के भीतर नीतिगत परिवर्तनों को प्रभावित करने के साधन और दृष्टिकोण विकसित करने का कार्य सौंपा गया है। यह अपने तीन वर्ष के एजेंडे के तार्किक निष्कर्ष के लिये सात साल की रणनीति और पंद्रह वर्ष की दूरदर्शिता के साथ कार्य करेगा। स्थिति की विशालता को देखते हुये इस एजेंडे में नगरपालिका के ठोस कचरे के प्रबंधन के लिये तेजी से कार्रवाई करने की आवश्यकता को स्वीकार किया है।

 

7,935 शहरी क्षेत्रों में रहने वाले 377 मिलियन निवासियों के कारण (जनगणना 2011) प्रति दिन 170,000 टन ठोस अपशिष्ट पैदा होता है। इस तथ्य को देखते हुए समयसीमा में कार्य पूरा करने के लिए नीति आयोग ने यह एजेंडा सही समय पर विकसित किया गया है क्योंकि 2030 तक जब शहरों में 590 मिलियन निवासी हो जाने के कारण शहरों की सीमायें समाप्त होने से प्रकृति और शहरी अपशिष्ट का प्रबंधन करना मुश्किल होगा। सामाजिक और आर्थिक वास्तविकताओं के चलते इस समस्‍या का शीघ्र तकनीकी समाधान आवश्‍यक है और नीति आयोग का एजेंडा इस समस्‍या को हल करने का प्रयास है।

इस एजेंडा में सुझाए गए समाधान दो तरह के हैं: बड़ी नगर पालिकाओं के लिए अपशिष्ट पदार्थ से ऊर्जा तैयार करना और छोटे कस्बों तथा अर्ध-शहरी क्षेत्रों के लिए अपशिष्ट का निपटान कर खाद तैयार करने की विधि। इसमें नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट साफ करने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिये संयंत्र लगाने के वास्‍ते  सार्वजनिक निजी भागीदारी हेतू भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के समान ही नया वेस्ट टू एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (डब्ल्यूईसीआई) स्थापित करने का सुझाव दिया गया है।

स्‍थापना के बाद यह प्रस्तावित निगम 2019 तक 100 स्मार्ट शहरों में तेजी से अपशिष्ट से ऊर्जा तैयार करने के संयंत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। स्वच्छ भारत अभियान पर गठित मुख्यमंत्रियों के उप-समूह ने पहले ही 2015 की अपनी रिपोर्ट में ऐसे संयंत्रों की स्थापना की सिफारिश की है। इस उच्च तकनीक समाधान को व्यापक रूप से समर्थन मिला है, क्‍योंकि कचरे की मात्रा कम कर 2018 तक 330 मेगावाट और 2019 तक 511 मेगावाट बिजली उत्पन्न होगी।

समाधान का प्रस्ताव करते हुए नीति आयोग ने थर्मल पाइरोलिसिस और प्लाज्मा गैसीकरण प्रौद्योगिकियों के लाभ-लागत अनुपात का भी मूल्यांकन किया है। ये दोनों महंगे विकल्प हैं। गौरतलब है कि नीति आयोग का प्रस्तावित एजेंडा सुझाव देने का है और राज्यों पर निर्भर करता है कि वे इन पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं। लेकिन मुख्यमंत्रियों द्वारा प्रस्तावित विकल्प पर ज्यादातर राज्यों का समर्थन मिलने की संभावना है।

हालांकि तकनीकी और पर्यावरणीय आधार पर देश में कार्यरत मौजूदा अपशिष्ट से ऊर्जा तैयार करने के संयंत्र पर मिली जुली रिपोर्ट हैं। समस्या की जड़ देश में शहरी अपशिष्ट की प्रकृति है जिसमें ऐसे पदार्थों का मिश्रण होता है जो पूरी तरह से दहन के लिए उपयुक्त नहीं होता है। चूंकि शहरी अपशिष्ट का 80 प्रतिशत पदार्थ सड़ा-गला भोजन, रद्दी-कतरन जैसे जैविक पदार्थ होते हैं इसलिए निर्धारित वायु गुणवत्ता मानक पर खरे उतरने में मौजूदा संयंत्र को कठिनाई आती है।

हालांकि मौजूदा अपशिष्ट के निपटान की विधियां बहुत अच्छी नहीं है। शहरी नगर-निगम अपशिष्ट प्रबंधन पर 500 से 1500 रुपये प्रति टन खर्च करती है। इसमें से 60 से 70 प्रतिशत कूड़ा एकत्रित करने में शेष 20 से 30 प्रतिशत एकत्रित कचड़े को घूरे तक ले जाने में खर्च होता है जिसके बाद कचड़े के प्रबंधन और निपटान पर खर्च करने के लिए कुछ भी राशि नहीं बचती है। इसके अलावा शहरी क्षेत्रों को कम कर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक कूड़े के मैदान बनाना एक बड़ी चुनौती है।

एजेंडा में अपशिष्ट से बड़े पैमाने पर कम्पोस्ट खाद और बायो गैस उत्पन्न करने के लिए जगह की कमी को भी रेखांकित किया गया है। हालांकि वास्तविकता में कूड़े के कई स्थानों पर बिना दक्षता के कम्पोस्ट तैयार करने की कोशिश की जा रही है। सरकार एक विकल्प के रूप में वनस्पति खाद बनाने की व्यवहार्यता पर दोबारा विचार कर अशिक्षित युवाओं के लिए रोजगार का वैकल्पिक स्रोत पैदा करने के लिए इसे राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन में शामिल कर सकती है।

सहमति पर पहुंचने के लिए ये शुरूआती समय है। हालांकि यह स्पष्ट है कि देश में विविध सामाजिक, आर्थिक वास्तविकताओं के लिए एक समान विकल्प नहीं हो सकता । लेकिन इस सामाजिक और पर्यावरणीय समस्या पर समय रहते चर्चा शुरू करने के लिए सरकार को श्रेय दिया जाना चाहिए। देश को स्वच्छ और हरित बनाने के लिए स्वच्छ भारत अभियान के साथ ही नीति आयोग द्वारा प्रस्तावित एजेंडा सही अपशिष्ट प्रबंधन की दिशा में एक कदम है।

 

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* लेखक जल और स्वच्छता के मुद्दे पर स्वतंत्र शोधकर्ता है।

इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के स्वयं के हैं।

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