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मूल निवास आंदोलन : एक तस्वीर हजार शब्दों पर भारी

 


-दिनेश शास्त्री

उत्तराखंड इन दिनों मूल निवास, सशक्त भू कानून और खास तौर पर अपनी पहचान की जद्दोजहद के दौर में नजर आ रहा है। इस आंदोलन को लेकर एक तस्वीर उत्तराखंड की मौजूदा स्थिति को बयां करती हुई चर्चा के केंद्र में है और इसे विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर इसे घूमता देखा जा सकता है। तस्वीर में देखा जा सकता है कि संसाधन उत्तराखंड का है, फल बाहरी लोग खा रहे हैं। यानी पेड़ उगाया पहाड़ियों ने और मजे कोई और ले रहा है।

 

वस्तुत: प्रदेश में आजकल मूल निवास और सशक्त भू कानून समन्वय संघर्ष समिति के आंदोलन कदाचित इसी स्थिति का नतीजा भी है। हालांकि जनता के मिजाज को देखते हुए राज्य सरकार ने तात्कालिक तौर पर आंदोलन की गर्मी थामने के लिए जो उपाय किया है, वह सरकार को बेशक राहत दे, किंतु चिंगारी अंडर ग्राउंड करंट की तरह दिख रही है। इस चिंगारी को हवा दी है प्रख्यात लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने और कुछ अन्य संस्कृतिकर्मियों ने।

 

श्री नेगी ने मूल निवास भू कानून समन्वय संघर्ष समिति के आंदोलन का समर्थन कर सत्ता प्रतिष्ठान के सामने चुनौती खड़ी की है। यह चुनौती भारी पड़ती दिखी तो सरकार ने गर्म चाय को प्लेट में उंडेल कर उसे ठंडा करने की कोशिश तो की किंतु इससे उद्देश्य पूर्ण हो पाएगा, उसमें संदेह बना हुआ है। चारधाम तीर्थ पुरोहित से लेकर पूर्व सैनिक और तमाम जनसंगठन इस आंदोलन में भागीदारी देने जा रहे हैं।

इस बीच उत्तराखंड के साथ ही बने झारखंड ने मूल निवास की कट ऑफ डेट 1932 निर्धारित की है तो उत्तराखंड के आंदोलनकारियों को संबल मिला है।

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