Front Page

पूरे पचास साल बाद बाहर निकले सांकरी गांव में पाण्डवों के अस्त्र-शस्त्र

 

-सेम-सांकरी (चमोली) से उषा रावत-
गढ़वाल में अपने विशाल समतल सेरे के लिये विख्यात सांकरी गांव में पूरे 50 साल बाद इन दिनों पाण्डव नृत्य चल रहा है। पाण्डव नृत्य के साथ ही पांच दशकों बाद क्षेत्र के प्राचीन बामनाथ मंदिर में एक पिटारे में रखे गये पाण्डवों के अस्त्र-शस्त्र भी बाहर निकाले गये जिन्हें देखने के लिये जिज्ञासु लोग दूर-दूर गावों से आ रहे हैं। इनमें कुछ पाषाण अस्त्र भी हैं जो कि इनकी प्राचीनता के प्रमाण है।

पाण्डव नृत्य समिति के अध्यक्ष जगदीश प्रसाद चमोला के अनुसार गांव में इससे पहले सन् 1972 में पाण्डव नृत्य का आयोजन हुआ था। यह आयोजन गांव की समृद्धि और सुख-शांति के लिये आयोजित किया जाता है। इसमें आसपास के गांवों के लोग भी शामिल हो रहे हैं। चमोला के अनुसार यह धार्मिक आयोजन 24 नवम्बर को बामेश्वर मंदिर से पाण्डवों के अस्त्र-शस्त्र गांव में लाने के साथ ही शुरू हुआ और यह आगामी 2 दिसम्बर तक चलेगा। इस आयोजन में आज 28 नवम्बर को गैंडा बध हो रहा है। छटे दिन जल यात्रा होगी और 1 दिसम्बर को पाण्डवों के हथियार वापस बामेश्वर मंदिर में रखे जायेंगे और 2 दिसम्बर को अनुष्ठान के साथ पाण्डव नृत्य का समापन हो जायेगा।

 

         पौराणिक बामेश्वर मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग के पीछे नज़र आ रहा रिंगाल का पिटारा जिसमें पांडवों के अस्त्र- शस्त्र रहते हैं.

गांव के वयोवृद्ध नागरिक शिवसिंह रावत के अनुसार पाण्डवों के ये अस्त्र-शस्त्र इतने प्राचीन हैं जितने प्राचीन सेम-सांकरी गांव हैं। उन्होंने अपने जीवनकाल में 1972 से पहले केवल एक बार अपने बाल्यकाल में गांव में पाण्डव नृत्य देखा था। चूंकि सेम और सांकरी सहोदर गावों के लोग लगभग एक ही कुनबे (वंशवृक्ष) के हैं इसलिये उस समय दोनों गांवों का साझा आयोजन होता था। उस समय भी मंदिर से ही हथियार गांव में लाये गये थे और फिर वापस रिंगाल के पिटारे में भर कर मंदिर में रखे गये थे। इस बार इन हथियारों के दर्शन करने दूर-दूर गावों से लोग आ रहे हैं।

                                                                                 चमोली जिले का सेम – सांकरी गांव जहां पांडव नृत्य चल रहा है.

गांव के ही एक अन्य बुजुर्ग डाक्टर शिवसिंह रावत के अनुसार पाण्डवों के ये प्राचीन हथियार धार्मिक महत्व के साथ ही पुरातात्विक महत्व के भी हैं। इनकी पवित्रता को ध्यान में रखते हुये इन्हें बामनाथ मंदिर में आराध्य शिवलिंग के पार्श्व में रखा जाता है ताकि भगवान बामेश्वर के साथ ही इनकी पूजा भी नियमित होती रहे। डा0 रावत के अनुसार बामनाथ पूरी निंगोल घाटी का मंदिर है लोग अब तक मंदिर में शिवलिंग के साथ उसके पाश्व में लटके रिंगाल के विशाल पिटारे के ही दर्शन करते थे और श्रद्धालुओं ने केवल पिटारे के अन्दर पाण्डवों के बांण होने की बात सुनी थी। लेकिन पिटारा खुलने के बाद जिज्ञासु लोग उन प्राचीन हथियारों के साक्षात् दर्शन कर रहे हैं। आगाम 1 दिसम्बर को वे हथियार फिर बंद हो जायेंगे जिन्हें फिर आने वाली पीढ़ी देख सकेगी।

पाण्डव नृत्य कमेटी के उपाध्यक्ष लक्ष्मण सिंह भण्डारी के अनुसार इस धार्मिक नृत्य में अभिषेक रावत पर युद्धिष्ठिर, नन्दन सिंह भण्डारी पर भीम, बृजमोहन चमोला पर अर्जन, भगवती प्रसाद पर नकुल, मयंक डिमरी पर सहदेव और कुंवर सिंह पर द्रोपदी अवतरित हो रही है। कृष्ण के पश्वा पुरुषोत्तम थपलियाल हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!