तू चल मैं आता हूँ …….सोनिया आनन्द के बाद अब कांग्रेस को हरक सिंह रावत की प्रतीक्षा

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   –जयसिंह रावत

उत्तराखण्ड की प्रख्यात लोक गायिका श्रीमती सोनिया आनन्द रावत ने दिल्ली जा कर कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली। अब चर्चा कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत की है। सोनिया आनन्द का ऐन मौके पर अपने फेसबुक अकाउंट पर हरक के साथ अपनी फोटो को पोस्ट करना शीघ्र होने वाले राजनीतिक धमाके का संकेत माना जा रहा है।  हरक सिंह रावत भलीभांति जानते हैं कि जिस तरह वह समय≤ पर भाजपा नेतृत्व को धमकाते रहे हैं और बार-बार पार्टी को असहज करते रहे हैं, उसका प्रतिफल उन्हें चुनाव के बाद अवष्य मिलेगा। जबकि बढ़ती उम्र के कारण कांग्रेस में हरीश रावत की मुख्यमंत्री के तौर पर पारी ज्यादा लम्बी नहीं रहेगी। इसलिये हरक सिंह को अपना राजनीतिक भविष्य भाजपा से अधिक कांग्रेस में सुरक्षित नजर आता है।हरक सिंह रावत के साथ साये की तरह दो दशक से अधिक समय तक रहे उनके एक पूर्व सहयोगी का कहना है कि वह एक अचूक राजनीतिक मौसम विज्ञानी हैं। भले ही मौसम विभाग का पूर्वानुमान चूक जाय, मगर हरक सिंह का पूर्वानुमान गलत नहीं होता। इसलिये वह उसी दल में रहेंगे जिसकी सरकार बनने की ज्यादा संभावना हो। राजनीतिक पंडित भी हरकसिंह के भावी कदम पर टकटकी लगाये हुये हैं। हरक के साथ कुछ अन्य भाजपाई कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं।

धमाकेबाजी तो शगल है हरक सिंह का

उत्तराखण्ड की राजनीति में वैसे भी हरकसिंह रावत धमाकों के मास्टर माने जाते हैं। धमाकेबाजी उन्होंने श्रीनगर में छात्र संघ चुनावों के साथ ही शुरू कर दी थी। राजनीति की शुरुआत अन्होंने भाजपा के साथ की और पौड़ी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीतने के साथ ही वह कल्याणसिंह मंत्रिमण्डल में सबसे युवा मंत्री बने। लेकिन नब्बे के दशक में उत्तराखण्ड आन्दोलन ने उनके अन्दर के धमाकेबाज को जगा दिया और उन्होंने ठीक 1996 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा छोड़ कर गढ़वाल की राजनीति में धमाका कर दिया। नतीजतन गढ़वाल से भाजपा के अजेय माने जाने वाले मेजर जनरल भुवन चन्द्र खण्डूड़ी चुनाव हार गये और तिवारी कांग्रेस के सतपाल महाराज जीत गये। उसके बाद हरक सिंह बसपा में चले गये। उत्तर प्रदेश में मायावती के शासनकाल में उन्होंने रुद्रपयाग नया जिला बनवाया। उनका दावा है कि बागेश्वर, चम्पावत और उधमसिंहनगर जिलों के गठन में भी उनका योगदान रहा। उत्तराखण्ड में बसपा की चुनावी संभावनाओं को क्षीण जानकर उन्होंने अपना राजनीतिक भविष्य कांग्रेस में ज्यादा सुरक्षित समझा और वह कांग्रेसी हो गये।

जेनी सेक्स स्कैंडल भी एक बड़ धमाका ही था

सन् 2002 में उत्तराखण्ड विधानसभा के पहले चुनाव में वह लैंसडाउन क्षेत्र से जीत गये और उन्हें तिवारी मंत्रिमण्डल में राजस्व और आपदा प्रबंधन मंत्री बनाया गया। लेकिन उसी दौरान जेनी सेक्स काण्ड का धमाका हुआ और हरक को त्यागपत्र देना पड़ा। भले ही बाद में सीबीआइ जांच में उन्हें क्लीन चिट मिल गयी, मगर नारायण दत्त तिवारी ने उन्हें वापस मंत्रिमण्डल में नहीं लिया। नतीजतन वह हरीश रावत गुट से मिल कर तिवारी की नाक में दम करते रहे। 2007 के चुनाव में भी वह लैंसडौन सीट से चुनाव जीते मगर सरकार भाजपा की बनीं और हरक सिंह रावत प्रतिपक्ष के नेता बन गये। उस कार्यकाल में वह भाजपा का डट कर मुकाबला करते रहे।

मुख्यमंत्री बनने से निराश थे हरक सिंह

विधानसभा के 2012 में हुये तीसरे चुनाव में वह रुद्रप्रयाग से चुनाव लड़े और अपने साडू मातबर सिंह कण्डारी को हरा कर पुनः विधानसभा में पहुंच गये। इस बार उनको उम्मीद थी कि उन्हें कांग्रेस मुख्यमंत्री बना लेगी। स्वयं हरकसिंह ने एक साक्षत्कार में खुलासा किया था कि 2012 में उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथग्रहण की तैयारी करने के लिये कह दिया गया था। वह मंत्री के तौर पर राज्य के नेताओं में वरिष्ठतम थे। पिछली विधानसभा में प्रतिपक्ष का नेता होने के कारण मुख्यमंत्री पद के लिये उनका दावा मजबूत था लेकिन बाजी विजय बहुगुणा के हाथ लग गयी। सत्ता हाथ न आ पाने के कारण हरक सिंह काफी निराश हुये। मुख्यमंत्री के रूप में विजय बहुगुणा ने जब मंत्रिमण्डल का गठन किया तो हरक सिंह ने विरोध स्वरूप शपथ नहीं ली। लेकिन विजय बहुगुणा अन्ततः हरक को मनाने में सफल हो गये और महीनों बाद उनके लिये अलग से शपथ ग्रहण समारोह आयोजित करना पड़ा।

विजय बहुगुणा ने किया हरक का इस्तेमाल

हरक के करीबियों का मानना है कि किसी एक संकट के वक्त विजय बहुगुणा ने हरक की मदद की थी इसलिये वह कांग्रेस के हरीश रावत और सतपाल महाराज गुटों के बजाय विजय बहुगुणा के ज्यादा करीब रहे। लोकसभा के 2004 में हुये चुनाव में गढ़वाल लोकसभा सीट से जनरल तेजपाल सिंह रावत कांग्रेस के प्रत्याशी थे। इसी लोकसभा क्षेत्र में हरक का चुनाव क्षेत्र लैंसडौन पड़ता है मगर वह जनरल रावत के बजाय टिहरी क्षेत्र में कांग्रेस प्रत्याशी विजय बहुगुणा का प्रचार करने चले गये। लेकिन विजय बहुगुणा की सरकार ज्यादा नहीं चली और 31 जनवरी 2014 को कांग्रेस ने स्वयं ही विजय बहुगुणा का तख्ता पलट दिया और हरीश रावत ने 1 फरबरी 2014 को कमान संभाल ली।

विजय बहुगुणा के कारण हरीश की हरक से कभी नहीं निभी

चूंकि हरक सिंह विजय बहुगुणा के करीबी माने जाते थे इसलिये हरक सिंह कभी भी हरीश रावत का विश्वास नहीं जीत सके। इसलिये दोनों की कैमिस्ट्री जम नहीं पायी। हरक सिंह का काम करने का अपना अंदाज है और राजनीति में भी उनकी दबंगयी छिपी नहीं है। इसलिये वह कुर्सी छिन जाने से नाराज विजय बहुगुणा के साथ मिल कर हरीश रावत सरकार के खिलाफ तानेबाने बुनते रहे।

हरीश रावत की ताजपोशी से न केवल विजय बहुगुण बल्कि सतपाल महाराज गुट भी नाराज था। अतः विजय बहुगुणा, हरक सिंह और सतपाल महाराज ने मिल कर जोर लगाने के बाद भी हरीश रावत की सत्ता न उखाड़ सके तो उन्होंने कांग्रेस में विद्रोह की पटकथा लिखनी शुरू कर दी और उस विद्रोह की कमान हरक सिंह को सौंप दी। हरक उस समय हरीश मंत्रिमण्डल में कृषि मंत्री थी। आखिरकार 18 मार्च 2016 को प्रदेश के बजट को पारित करते समय वह घड़ी आ ही गयी। हालांकि इस विद्रोह में तीनों गुटों के कुल 15 विधायकों के शामिल होने का अनुमान था, लेकिन सतपाल महाराज के करीबी ठिठक गये और आखिरकार 9 विधायक ही इसमें शामिल हो पाये। विधासभा अध्यक्ष हरीश गुट के थे और अदालत से भी फैसला हरीश सरकार के पक्ष में आ गया। मगर हरक सिंह ने हरीश रावत का पीछा नहीं छोड़ा। उसी दौरान एक स्टिंग आपरेशन भी आया जिसे आज भी हरीश रावत कानूनी तौर पर भुगत रहे हैं। उस स्टिंग के पीछे भी हरक सिंह का ही हाथ माना जाता है।

त्रिवेन्द्र और हरक सिंह में तनातनी बनी रही

2017 के चुनाव में हरक सिंह रावत भाजपा के टिकट पर कोटद्वार सीट से चुनाव जीते और त्रिवेन्द्र सिंह रावत के नेतृत्व में बनी भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री बन गये। लेकिन यहां भी मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र और हरक सिंह की कभी नहीं निभीं। इन दानों रावतों का मनमुटाव श्रीनगर में छात्र जीवन से ही रहा। उस समय हरक सिंह एक दबंग छात्र नेता थे जबकि त्रिवेन्द्र आरएसएस कार्यालय की रोटियों पर पलने वाले साधारण छात्र थे। मुख्यमंत्री बनने पर त्रिवेन्द्र ने हरकसिंह को नीचा दिखाने के लिये कभी कोई कसर नहीं छोड़ी। इधर हरक सिंह रावत भी खुलकर अपने ही मुख्यमंत्री की कार्यशैली पर टिप्पणियां कर प्रेस को चटपटे मसाले देते रहे। माना जाता है कि कांग्रेस में हरीश रावत का वर्चस्व नहीं होता तो हरक सिंह कभी के कांग्रेस में जा चुके होते। त्रिवेन्द्र के बाद तीरथ सिंह मुख्यमंत्री बने मगर हरक के चेहरे की रौनक नहीं लौटी। तीरथ के बाद धामी मुख्यमंत्री बने तो भी हरक को एक नोसिखिये के अधीन काम करना अपमानजनक लगा। इसलिये वह भाजपा छोड़ने के बहाने तलाशते रहे जबकि मुख्यमंत्री से लेकर अमित शाह तक हरक को मनाने का प्रयास करते रहे। प्रधानमंत्री मोदी भी उत्तराखण्ड के दौरों के दौरान हरक सिंह रावत के कन्धे पर हाथ रखना नहीं भूले। फिर भी हरक सिंह की भाजपा में उकताहट नहीं गयी।

हरक और काऊ के खिलाफ भाजपा में भी मोर्चेबंदी

हरक सिंह रावत के खिलाफ लैंसडौन के विधायक दलीप सिंह रावत काफी पहले से सक्रिय रहे हैं। लेकिन जब हरक सिंह द्वारा अपनी पुत्रबधू अनुकृति गुसांई को लैंसडौन से भाजपा टिकट के लिये जोर लगाने की चर्चाएं गर्म हुयीं तो दलीप सिंह ने भी भाजपा टिकट कटने के डर से हरक पर हमले तेज कर दिये। इन दोनों रावतों की भी कभी नहीं बनीं। सन् 2002 के चुनाव में हरक सिंह रावत वर्तमान भाजपा विधायक दलीप सिंह के पिता भारत सिंह रावत को हरा चुके थे। इसी प्रकार हरक के करीबी साथी और देहरादून की रायपुर सीट के भाजपा विधायक उमेश शर्मा काऊ के खिलाफ भी वहां के मूल भाजपाइयों ने मोर्चा खोला हुआ है। काऊ भी पूर्व में विद्रोही तेवर दिखा कर भाजपा आला कमान को डरा चुके हैं।

हरीश रावत से टक्कर के लिये कांग्रेस में हरक सिंह की दरकार

इधर सन्यास की धमकी के बाद कांग्रेस हरीश रावत का वर्चस्व स्थापित हो चुका है। पार्टी मान चुकी है कि हरीश के नेतृत्व में ही कांग्रेस प्रदेश की सत्ता में आयेगी। चुनाव पूर्व पार्टी की सत्ता के लिये संघर्ष में हरीश रावत जीत तो गये मगर पार्टी प्रभारी समेत हरीश विरोधी गुट के हरक सिंह रावत जैसे पूर्व कांग्रेसी बागियों को वापस पार्टी में लाने के प्रयास जारी हैं। ताकि हरीश रावत से मुकाबला करने के लिये हरक सिंह जैसा दमदार साथी मिल जाय और हरीश रावत की मुख्यमंत्री बनने की उम्मीदो ंपर पानी फेरा जा सके। इसीलिये माना जा रहा है कि हरीश रावत को बाइपास करने के लिये हरक सिंह देहरादून के बजाय दिल्ली में इन दिनों अधिक सक्रिय हैं। सोनिया आनन्द रावत का कांग्रेस में प्रवेश हरकसिंह रावत की ही रणनीति का एक हिस्सा माना जा सकता है। हरक सिंह रावत अगर सचमुच भाजपा छोड़ते हें तो यह भाजपा के लिये बहुत बड़ा झटका होगा। इससे सत्ता विरोधी हवा चक्रवात का रूप ले सकती है।

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