पूरे 42 दिन सन्नाटे में डूबा रहता है हिमाचल का गोशाल गांव, कोई किसी से बात नहीं करता

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–जयसिंह रावत

हिमाचल के  जिला कुल्लू में गोशाल गांव” नाम का एक ऐसा गांव है जहां धार्मिक कारणों से पूरे 42 दिन तक सन्नाटा पसरा रहता है। महिलाएं इस दौरान स्वेटर ही बुन सकती हैं, क्योंकि इससे शोर नहीं होता।

लोगों की मान्यता है कि इस गांव में उस दौरान देवता गहरी समाधि में लीन होते हैं। इसलिए वहां के लोग किसी भी तरह की आवाज को देवताओं की समाधि में खलल मानते हैं। देवताओं के रुष्ट होने के डर

गांव में जनवरी और फरवरी माह में 42 दिन तक न कोई टीवी देखता है और न ही कोई संगीत सुनता है। लोग खेतों में काम करना तक बंद कर देते हैं। शादियां भी इन दिनों में गांव में नहीं की जाती हैं।

दरअसल गोशाल गांव हिमाचल प्रदेश के मनाली के कूल्लू जिले में स्थित है। इस गांव के लोग 14 जनवरी से लेकर 25 फरवरी तक एक दूसरे से कोई बात नहीं करेंगे। गोशाल के अलावे बुरूआ, शानाग एवं कुलांग गांव में भी यह प्रथा प्रचलित है। इसके अलावा माझाच, पालचान, कोठि, रुयार गांव के लोग भी 42 दिनों तक मौन धारण में विश्वास रखते है। प्रदेश के सोलांग एवं रुयार जैसे गांव में मौन रखने के साथ ही कृषि कार्य भी लोग बंद रखते है। माघ महीने के मकर संक्रांति के दिन से यह रीत शुरू होती है।

42 दिनों तक ग्रामीणों के चुप रहने के पीछे कई मान्यताएं है। कुछ गांववालों के अनुसार इस समय ईश्वर ध्यान करने के बाद स्वर्ग जाते है, उन्हें इस दौरान कोई असुविधा नहीं हो, इसलिए यह प्रथा प्रचलित है। इसे लेकर पौराणिक मान्यता भी है। जिसके मुताबिक कभी ऋषि गौतम विपाशा नदी के पास तपस्य की थी। उनकी तपस्या भंग नहीं हो इसलिए यहां के लोग किसी तरह की आवाज नहीं करते। यहां एक प्राचीन मंदिर भी है। कमर संक्रांति के दिन पूजा अर्चना के बाद मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं। गौतम ऋषि के अलावा इस मंदिर में वेदव्यास व कांचन नाग की मूर्ति भी है।

पर्यटकों के लिए भी बंद है मंदिर: मनाली के गोशाल गांव का यह मंदिर इस समय पर्यटकों के लिए भी बंद रहता है। 25 फरवरी के बाद मंदिर का द्वार खोला जाता है। इसे लेकर भी एक मिथक प्रचलित है कि मंदिर का द्वार खोलते समय वहां यदि एक फूल गिरा हुआ पाया जाता है तो ग्रामीण इसे शुभ संकेत मानते है, और यदि कोयले का टुकड़ा पड़ा पाया जाता है तो ग्रामीण गांव में पांच दिनों के अंदर अग्निकांड जैसी दुर्घटना के अशुभ संकेत मानते हैं। (जयसिंह रावत की पुस्तक ‘‘हिमालयी राज्य संदर्भ कोश से)

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