शायर जिन्हें मैने करीब से देखा और सुना …
–गोविंद प्रसाद बहुगुणा–
मुझे शेरो -शायरी ज्यादा समझ नहीं आती लेकिन कभी कोई दिलचस्प आदमी सुना दे तो सुनना अच्छा लगता है।जनाब अनीस अंसारी साहब उत्तर प्रदेश में वरिष्ठ IAS अधिकारी रहे हैं । सेवाकाल में कभी वे हमारे लेबर कमिश्नर और फिर प्रमुख सचिव श्रम भी रहे, इसलिए उन्हें करीब से देखने का मौका मिलता था I उर्दू साहित्य के क्षेत्र में उनका योगदान उल्लेखनीय रहा है -हिंदी गीत की शैली में लिखी उनकी शायरी को लोगों ने बहुत पसंद किया I उर्दू कविता में गीत शैली को प्रचलित करने में उनके योगदान के लिए उन्हें फिराक गोरखपुरी अवार्ड 2008, उप्र उर्दू अकादमी अवार्ड , इम्तियाजे मीर अवार्ड 1994, जयशंकर प्रसाद पुरस्कार 200 उर्दू अदब अवार्ड 2007,डा०लोहिया एकता पुरस्कार, डा०अम्बेडकर एकता पुरस्कार आदि अनेक सम्मान और पुरस्कारों से अलंकृत किया गया। परिचय उनका बड़ा है , फिलहाल सीधे उनके कुछ दिलचस्प शेर सुनिए –
“लुटेरे मौज हाकिम हो गये हैं
समन्दर डर के ख़ादिम हो गये हैं
हिफ़ाज़त किस तरह हो फ़स्ल-ए-जां की
कि बाड़े ख़ुद ही मुजरिम हो गये हैं
बहा है गंदा पानी चोटियों से
नशेबी नाले मुल्जिम हो गये हैं
इसी दुनिया में जन्नत की हवस मे
जनाब-ए-शैख़ मुनइम हो गये है
अजब दस्तूर है हर आस्तां पर
चढ़ावे ज़र के लाज़िम हो गये हैं
तिजारत में लगे हैं सब सिप हगर
मुहाफ़िज़ मीर क़ासिम हो गये हैं
हुज़ूर-ए-शाह जब से नज़्र दी है
बड़े अच्छे मरा सिम हो गये हैं
लहरों के मालिक जान की फ़स्ल अमीर
फ़ौज के आक़ा
मियां करते रहो बस अल्लाह अल्लाह
सनम हर दिल में क़ाइम हो गये हैं
बढ़े जाते हैं माया के पुजारी
मगर मोमिन मुलायम हो गये हैं
‘अनीस’ अपनी मनाओ खैर अब कुछ
हुनरगर आला नाज़िम हो गये हैं”
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बड़ी लज़्ज़त मिली दरबार से हक़ बात कहने में
हलक़ पर जब छुरी थी खून-ए-दिल के घूंट चखने में
चलो फिर से नई तारीख़ लिक्खें कामरानी की
इमामत फ़र्ज़ है जमहूर की क़िसमत बदलने में
मशअल लेकर जो आगे जायेगा सरदार ठहरेगा
वह अमृत पायेगा ज़ुल्मात का दरिया गुज़रने में
पसीना ख़ून देकर फूल फल हमने उगाये हैं
हमें हिस्सा मिले लज़्ज़त में रंग-ओ-बू महकने में
‘अनीस’ इतनी सी ख़्वाहिश है कि जंगल राज के बदले
कोई तफ़रीक़ भेड़ों से न हो पानी में चरने में “