अपने पशुओं को ओने पोने दामों पर बेचने को मजबूर हैं उत्तराखंड के पशुपालक
गौचर, 12 मार्च (दिग्पाल गुसांई) इसे सरकार की नाकामी समझे या पशुपालन विभाग की घोर लापरवाही पिछले तीन माह से पशुपालकों को भूसा उपलब्ध न कराए जाने से दुग्ध व्यवसाय को भारी धक्का लगा है। पशुपालक अपने पशुओं को औने-पौने दामों में बेचने को मजबूर हो गए हैं।
पहाड़ी क्षेत्र के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि व पशुपालन है इसी से वे अपनी आजीविका भी चलाते हैं। वर्ष 1913 में हुई भीषण तबाही के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने पशुओं की मौत भूख से न हो इसके लिए सस्ते दामों पर राहत के नाम पर पहाड़ी क्षेत्रों के लिए भूसा उपलब्ध कराना शुरू किया।तब भूसे का 24 किलो का पैकेट 100 रुपए के आसपास उपलब्ध कराया जाता था।यह व्यवस्था अनवरत चलती रही लेकिन इसे गढ़वाल मंडल का दुर्भाग्य ही समझा जाएगा कि कुमाऊं मंडल में सब्सीडी जारी रही तो गढ़वाल मंडल में सब्सीडी समाप्त कर दिए जाने से पशुपालकों के साथ अन्याय किया गया अब जब पिछले छः माह पहले गढ़वाल मंडल को भी सब्सिडी पर भूसा उपलब्ध कराए जाने लगा तो कोरोना बीमारी से बेरोजगार युवाओं ने डेरी व्यवसाय में अपना भविष्य को बांचना शुरू किया तो सरकार ने भूसा ही उपलब्ध कराना बंद कर दिया है। इससे वे संकट में फंस गए हैं। यही नहीं अब आंचल डेरियों में भूसा 240 रुपए सब्सिडी में तो 390 रुपए बगैर सब्सिडी का दिया जा रहा है। पशुपालन विभाग द्वारा अब तक जो भूसे का बैग सब्सिडी में आम पशुपालक को 216 रूपए में उपलब्ध कराया जा रहा था।अब उसके दाम 324 रुपए बताए जा रहे हैं। इतना महंगा भूसे से डेरी व्यवसाय पनप पाएगा इसकी संभावना कम ही नजर आ रही है।डेरी व्यवसाय से जुड़े पशुपालक उमेश रतूड़ी, रमेश डिमरी,भानू डिमरी, हरीश रावत, विजया गुसाईं,कंचन कनवासी,जशदेई कनवासी, आदि का कहना है कि पहाड़ों में दूध के दाम बढ़ाना बहुत मुश्किल है इस प्रकार से उनके सामने डेरी व्यवसाय को बंद करने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं बचा है।