Front Page

सुप्रीम कोर्ट से चारधाम मार्गों को चौड़ा करने करने की मंजूरी मिली

  • कोर्ट ने कहा, हाल के समय में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौतियां पैदा हुई हैं
  • राजमार्ग परियोजना का उद्देश्यचारधाम को किसी भी मौसम में संपर्क मार्ग से जोड़े रखना है
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा, अदालत सुरक्षाबलों की जरूरतों का आकलन नहीं कर सकती

 

नयी दिल्ली, 15  (उ हि ) ।सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उत्तराखंड में सामरिक रूप से महत्वपूर्ण चारधाम राजमार्ग परियोजना के तहत बन रही सड़कों को दो लेन तक चौड़ी करने की मंजूरी दे दी। इससे उत्तराखंड में न्यूनतम दस मीटर चौड़ी ऑल वेदर सड़क बनने का रास्ता साफ हो गया है। कोर्ट ने कहा, हाल के समय में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौतियां पैदा हुई हैं।

शीर्ष कोर्ट आठ सितंबर, 2020 के आदेश में संशोधन का आग्रह करने वाली केंद्र की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस आदेश में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय को चारधाम राजमार्ग परियोजना को लेकर जारी 2018 के परिपत्र में निर्धारित सड़क की चौड़ाई साढ़े पांच मीटर रखने का पालन करने को कहा गया था।

गंगोत्री जाने वाली सड़क अभी तक उत्तरकाशी से गंगोत्री तक सिंगल लेन है। इस वजह से यात्रा पर आने वाले लोगों के साथ ही स्थानीय लोगों को भी भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता था। सिंगल लेन की वजह से यात्राकाल में दिनभर जाम की स्थिति बनी रहती थी। जबकि दुर्घटनाओं का भी खतरा बना रहता था। लेकिन अब सड़कों के चौड़ा हो जाने के बाद बड़ी राहत मिल जाएगी। परियोजना के तहत उत्तरकाशी से गंगोत्री तक 89 किमी और पालीगाड़ से यमुनोत्री तक 21 किमी सड़क परियोजना पर काम शुरू हो पाएगा।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रमनाथ की पीठ ने कहा, अदालत न्यायिक समीक्षा में सशस्त्रत्त् बलों की अवसंरचना की जरूरत का अनुमान नहीं लगा सकती। पीठ ने निगरानी के लिए पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एके सीकरी की अध्यक्षता में समिति भी गठित की। करीब 900 किलोमीटर लंबी चारधाम सड़क परियोजना की लागत 12 हजार करोड़ रुपये आने का अनुमान है। इसका उद्देश्य चारधाम (यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ) को हर मौसम में सड़क मार्ग से जोड़े रखना है।

पीठ ने स्पष्ट किया कि निगरानी समिति नए पर्यावरण आकलन पर विचार नहीं करेगी। समिति को रक्षा-सड़क परिवहन मंत्रालय, उत्तराखंड सरकार और जिलाधिकारी का पूरा सहयोग मिलेगा। अदालत ने कहा कि रक्षा मंत्रालय की अर्जी में कुछ भी दुर्भावनापूर्ण नहीं था। यह आरोप साबित नहीं हुआ कि मामले को प्रभावित करने की कोशिश की गई है।

अदालत ने कहा कि रक्षा मंत्रालय की जरूरतें इस बात से भी स्पष्ट हैं कि एचपीसी की बैठक में भी सुरक्षा चिंताओं के मुद्दे को उठाया गया था। रक्षा मंत्रालय ने सीमा सुरक्षा चिंताओं के मद्देनजर दोहरी लेन वाली सड़क की जरूरत संबंधी अपने रुख को कायम रखा।

वाडिया हिमालयन भू-विज्ञान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. विक्रम गुप्ता भी सुप्रीम कोर्ट की हाईपावर कमेटी के सदस्य रहे। डॉ. विक्रम गुप्ता के अनुसार, जहां पर कटाव किया जा रहा है, तुरंत उस कटाव को रिपेयर करने का काम शुरू हो जाना चाहिए। हमें स्लोप के गिरने का इंतजार नहीं करना चाहिए। पहाड़ों में प्राकृतिक मानवीय गतिविधि और जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले कुछ वर्षों में कई सारे भूस्खलन जोन विकसित हुए हैं। सिर्फ विकास कार्य से ही भूस्खलन जोन बने हों, ऐसा नहीं है। उत्तराखंड के अलावा हिमाचल में भी नए भूस्खलन जोन विकसित हुए हैं। विकास कार्य की कीमत इंसान को ही चुकानी पड़ती है। स्थानीय लोगों पर इसका बहुत ज्यादा असर पड़ता है, जबकि सुविधाओं का लाभ हर कोई उठा सकता है। स्थानीय परिवेश को ध्यान में रखते हुए पूरी शक्ति से पर्यावरण मानकों का पालन किया जाना बहुत जरूरी है।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!