धर्म/संस्कृति

रामनवमी पर विशेष17अप्रैल : आज राम कै जनमवाँ है रंग बरसे……|

संतोषकुमार तिवारी-

चक्रवर्ती राजा दशरथ के महल (अयोध्या)में धरती का समस्त वैभव विद्यमान था,फिर भी वे मन ही मन निस्संतान होने के दुख में डूबे रहते थे| दपत्ति की सारी संपदा ढेले के समान है, यदि घर में बच्चों की किलकारी की मिसरी-घुली गूँज न हो|थोड़ा कल्पना कीजिये राजा दशरथ और तीनों माताओं को महल का वह ऐश्वर्य,सुख-भोग-विलास उनके मन से कितना उत्साहित कर पाता रहा होगा|

मर्यादा-मानवोत्तम श्रीराम ने पुत्ररूप में जन्म (अवतरण) लेकर इसी इक्ष्वाकु वंशी अयोध्या-नरेश दथरथ के राजमहल के सूनेपन को किलकारियों से भर दिया|
इस निमित्त के अनेक गूढ़ार्थ को ज्ञानीजन भलीभाँति समझते हैं| तभी तो गोस्वामी बाबा ने ‘बीजवाक्य’ इस दोहे के माध्यम से लिखा है………
विप्र-धेनु-सुर- संत- हित लीन्ह मनुज अवतार|
चौथेपन में पुत्र-प्राप्ति के लिए पुत्रेष्ठि-यज्ञ फलीभूत हुआ ,किंतु श्रीहरि के विशायकाय रूप को देखकर कौशल्या का अचरज से भर जाना स्वाभाविक था…… हे प्रभु! वात्सल्य- स्नेह की पूर्णता इसी में है कि आप मेरे गर्भ से जन्म लीजिये,मैं प्रसव-पीड़ा के सुख के लिए वर्षों से तरस रही हूँ|माता कौशल्या की मनौती पूरी हुई| नवजात शिशु-रूप में रामलला चैत्र मास के शुक्ल पक्ष, तिथि नवमी पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न की शुभ मुहूर्तबेला में श्रीराम सहित चारों भाईयों के जन्मते ही कौशल्या के अलावा कैकेयी और सुमित्रा की सूनी गोद भर गयी| चैत्र नवरात्रि के पवित्र दिवस (नवमी)शक्ति उपासना-आराधना के विराम का भी होता है|इसी दिवस प्रभु राम के जन्म का भी है-
चैत्रे नवम्यां प्राक् पक्षे दिवा पुण्ये पुनर्वसौ|
उदये गुरु गौरांश्चो:स्वोच्चस्थे
ग्रहपञ्चके||
मेषं पूषणि सम्प्राप्ते लग्ने कर्कटाह्वये|
आविरसीत्सकलया कौशल्यायां पर: पुमान्||(निर्णयसिन्धु)

तीनों लोक सहित अयोध्या, इस जन्मोत्सव पर इस भाँति आनंदमग्न हो गयी जैसे वहाँ के प्रत्येक घर में राम पैदा हुए हों|राजा दशरथ ने आदेश दिया प्रत्येक पुरवासी के घर को महल जैसा सजा दिया जाये| पथ फूलों से पाट दिये जायें| राजा और रानियों ने तो नेकचार के रूप में हीरे – जवाहरात , माणिक , मोती लुटाये| आखिर किसी सामान्य परिवार में, किसी मामूली बच्चे ने जन्म थोड़े ही लिया था….| महल में मैया कौशल्या सहित दो अन्य माताएं क्रमश: कैकेई से धर्मधुरीण-भरत और सुमित्रा से साक्षात् शेषनागावतार लक्ष्मण और शत्रुओं का दमन करने वाले सबसे छोटे और सबके दुलारे भैया शत्रुध्न ने जन्म दिया था|

श्रीराम सहित अनुजों के बालपन की अगणित बालसुलभ चेष्टाओं से दशरथ महल का कोना-कोना पुलकित हो गया| बालरूप- राम कुछ खाते ,कुछ गिराते , गिरते-सम्हलते ,फिर गिरते |रोने लगते फिर दौड़ने की चेष्टा करते हुए पैरों में पैजनियों की छम..छ..म छम् देख- सुनकर माता- पिता के हर्ष का कोई ठिकाना ही नहीं रहा…
ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनियाँ|

गुरू वशिष्ठ से दीक्षित श्रीराम कालांतर में आज्ञाकारी, शांत स्वभाव , आजान बाहु, विशाल वक्ष और धीरोदात्त नायक के समस्त गुणों से सम्पन्न चर्चा में तब आये,जब यज्ञ-रक्षा हेतु राम और लक्ष्मण विश्वामित्र के साथ राजा जनक की पुत्री सीता के स्वयंवर (विवाह)में जनकपुर पहुँचे, और शिव -पिनाक भंग कर सियावर रामचंद्र कहलाये| वे आजीवन पिता, पुत्र, पति, भाई, सखा व प्रजा सहित समस्त प्राणी मात्र के प्रति समदर्शी, समर्पित व उदारमना महापुरुष के रूप में जाने जाते रहे| जीवन को साक्षी भाव से तटस्थ मुद्रा में देखते हुए कर्तापन और उपलब्धि का श्रेय लेने की दौड़ से वे हमेशा दूर रहे| परशुराम द्वारा पिनाकभंग के दोषी को सभा से निकल जाने पर उनके क्रोध से वे विचलित हुए बिना हाथ जोड़कर अपना परिचय देते हुए कहा मेरा दो अक्षर का नाम राम है, और आप परशुराम| मुझे अपना सेवक मानकर आज्ञा दीजिये|

कैकेई के दो वरदान, जिनमें स्वयं के लिए वनगमन का समाचार सुन श्रीराम मुस्काते हुए तैयार हो गये तथा सबसे पहले आशीर्वाद लेने माता कैकेई के ही पास पहुँचे| अपनी इन्हीं अगणित विशिष्टताओं के फलस्वरूप ही तो वे शीलगुण निधान मर्यादा पुरूषोत्तम कहलाते हैं| इनके अतिरिक्त किसी दूजे मर्यादा पुरुषोत्तम का नाम कोई बता सकता है???

रामकथा में वनवास-प्रसंग को मूलत: संसारी जीवों के अनेक उतार-चढ़ाव, उथल-पुथल और झंझावातों के बीच से संतुलन बनाकर निकलने के सांकेतिक निकष के रूप में ही ग्रहण करना चाहिये |जिसे प्रभु राम भरपूर सानंद जीते हैं, तथा आभाष कराते हैं कि अपने-अपने हिस्से का वनवास तो सबको स्वयं ही काटना पड़ता है| अपने हालात पर किसी को दोष न देना और सत्साहस से उसका मुकाबला करते हुए परिस्थितियों को अपने पक्ष में कर लेने का सबक तो संसार उन्हीं से सीखता है| कंटकाकीर्ण-पथ पर आम व खास सब एक समान हैं|अपने कर्म व प्रारब्ध की गति पर पर सभी को तैयार रहना चाहिये , चाहे वह कोई भी हो| राम जी के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण व ग्रहणीय पक्ष यही है कि आप जीवन को दीन-दुखियों, जरूरतमंदों और हाशिये पर जी रहे लाखों लोगों के लिए प्रेरक कैसे बन सकते हैं, उनको मुख्यधारा में लाकर सम्मानित जीवन का उजाला कैसे प्रदान कर सकते हैं| राम ने चौदह वर्ष के जंगल-प्रवास को इसी संकल्प के साथ जिया | चाहे वह केवटराज को अपने स्नेह से अत्यन्त प्रिय बना लेना हो, चाहे जनम-जनम से हरि-दर्शन की भूखी एकनिष्ठ सनेही-शबरी की कुटिया में जाकर उनके जूठे बैर को खाना हो या वानर जाति, जो एक शाखा से दूसरी शाखा पर उछलकूद करके जीवन गुजार देते हैं , उनसे मैत्री कर भार्या सीता की खोज व प्राप्ति का पूरा श्रेय उन्हीं को देने का हो|

श्रीराम की यह भिन्न -भिन्न गुण, धर्म ,जाति व संस्कृति के साथ सर्वग्राहकता अद्भुत और अनूठी है| कहा जाना चाहिये कि राजा न होते हुए भी उन्होंने सबको एक मंच पर अन्याय के विरुद्ध एकत्र कर लिया| लंकाधिपति को अयोध्या या अन्य राजाओं की सैन्य-मदद से भी परास्त किया जा सकता था , परंतु राम जी ने ऐसा नहीं किया| कारण स्पष्ट है उन्होंने बिखरी हुई जनशक्ति को सही दिशा दी|

महाबली के घमंड को माटी में मिलाना गुणनिधान के उसी चिंतन का प्रतिफल है| राम रथविहीन हैं , वानरों की सेना के सहारे वह तापसवेषधारी सैन्य साजोसामान से वंचित हैं किंतु स्त्री-अस्मिता की लड़ाई के लिए जो साहस और इरादे की जरूरत होती है , उनमें भरी हुई है| वे लोकतांत्रिक विचारों व परंपराओं के आदि संवाहक हैं| राजाओं-महाराजाओं के ऐश्वर्यवादी जीवन से दूर वे एक पत्नीव्रती हैं| पत्नी को सुरक्षित कैद से मुक्ति दिलाने हेतु रावण के ‘एक लाख पूत सवा लाख नाती , ता रावन घर दिया न बाती’ की कहावत को उन्होंने चरितार्थ किया| सत्य की इसी स्थापना की पूर्ति के लिए ही तो उनका अवतार हुआ था | वे तभी तो जन-जन के प्रिय और आदर्श बन गये| जानकी के कण्ठाभूषण और प्रजापालक श्रीराम जैसे राजा हर युग,हर समय की माँग रहेंगे| ज्ञानीजन कहते हैं कि श्रीराम पूर्णकालिक देवता हैं ,उनके लिए यह कहना या लिखना उचित नहीं कि श्रीराम थे,अपितु श्रीराम हमेशा से हमेशा तक रहेंगे|
यह रामनवमी(17अप्रैल)कई दृष्टि से विशिष्ट है|आज पाँच सौ वर्षों के अंतराल पर अयोध्या राजा विक्रमादित्य की अयोध्या नगरी के समान दिव्य-भव्य और नव्यता को प्राप्त हो गयी है| राममंदिर में बालरूप में श्रीराम(रामलला) विराज रहे हैं|उनकी एक झलक पाने के लिए प्रतिदिन देशभर से श्रध्दालु श्रीधाम अयोध्या पहुँच रहे हैं|अपने खोये हुए वैभव को पुन: प्राप्त कर आज अयोध्यानगरी की वीथियाँ मोगरा सदृश्य फूलों से पटी पड़ी है| रामजन्म पर गाये जाने वाले सुमंगल गीत सोहर की अनुगूँज चारों दिशाओं में विद्यमान है— आज राम कै जनमवाँ है ,रंग बरसे|अवध मां जन्मे ललनवाँ,अंगनवाँ मां रस बरसे
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लेखक संतोषकुमार तिवारी रामकथा के जानकार हैं |वनवासी राघवेंद्र उनकी रामकथा पर आधारित पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य है|पेशे से शिक्षक संतोष तिवारी रामनगर में रहते हैं, और राइका शंकरपुर (पौड़ी) में हिन्दी के व्याख्याता हैं|
संपर्क – 8535059955

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