बिजनेस/रोजगार

‘मार्केट’ को भारत रत्न..

By- Milind Khandekar

भारत रत्न से मंडल ( कर्पूरी ठाकुर),  मंदिर (लालकृष्ण आडवाणी), मंडी ( चौधरी चरण सिंह और स्वामीनाथन)और मार्केट ( नरसिम्हा राव) को साधने की चर्चा हो रही है. हिसाब किताब में बात करेंगे नरसिम्हा राव के बारे में. उनके कार्यकाल में सिर्फ़ मार्केट को ही फ़ायदा नहीं हुआ. मिडिल क्लास के सपनों को उड़ान मिलीं. आज तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की बात हो रही है उसका नींव 1991 में नरसिम्हा राव की सरकार ने डाली थी.

1991 में क्या बदला ? 

यह बात समझने के लिए हमें जानना होगा कि 1947-1991 का भारत कैसा चल रहा था. कांग्रेस का झुकाव समाजवाद की तरफ़ था. अर्थव्यवस्था मिश्रित थीं . प्राइवेट सेक्टर बिना सरकार के पत्ता नहीं हिला सकता था. सरकार तय करती थी कि

कौनसी कंपनी कौनसा सामान बना सकती है?

कितना बना सकती है?

कितने में बेच सकती है?

इसका नतीजा यह हुआ कि हर चीज की क़िल्लत थी. गैस सिलेंडर लेना है तो वेटिंग लिस्ट, स्कूटर ख़रीदने के लिए वेटिंग लिस्ट, फ़ोन लगाने के लिए वेटिंग लिस्ट. एयर लाइन सिर्फ़ सरकार चला सकती थी और बैंक भी. बैंक में अपने पैसे निकालने के लिए लंबी लाइन में खड़े होना पड़ता था. होम लोन की ब्याज दर 15-16% थी. वो मिलना भी मुश्किल था.

1991 से बदलाव मजबूरी में हुआ. उस साल की शुरुआत में खाड़ी युद्ध हुआ था. इराक़ ने कुवैत पर हमला कर दिया था. तेल की क़ीमतें बढ़ गई थी. भारत में विदेशी मुद्रा की कमी हो गई थी. राव सरकार बनने समय सिर्फ़ तीन हफ़्ते भर का आयात करने की मुद्रा रह गई थी. भारत को तेल मिलना बंद हो सकता था.विदेश में कोई भुगतान करने की स्थिति नहीं थी. सोना गिरवी रखना पड़ा. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से क़र्ज़ लेना पड़ा. IMF ने अपनी शर्तें लगा दी. भारत के पास मानने के लिए कोई चारा नहीं था. यहीं से LPG की शुरुआत हुई.

L यानी Liberalization 

P यानी  Privatization 

G यानी Globalization

 

प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव और वित्त मंत्री मन मोहन सिंह की जोड़ी ने देश को संकट से उबारा. सरकार ने लाइसेंस परमिट राज ख़त्म किया. चार सेक्टर छोड़ कर प्राइवेट सेक्टर को कारोबार करने की छूट मिलीं. लाइसेंस लेने की ज़रूरत नहीं रह गई. कितना कोटा होगा या कितना दाम होगा जैसी चीजें सरकार ने तय करना बंद कर दी. हर सेक्टर में प्रतिस्पर्धा बढ़ी. फ़ायदा ग्राहकों को मिला.

 

सरकार ने प्राइवेटाइजेशन के तहत सरकारी कंपनी बेचने का काम शुरू किया. यह काम अब भी चल रहा है जैसे हाल में एयर इंडिया को बेचा गया है. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि पहले सरकार ब्रेड भी बनाती थी. मॉडर्न ब्रेड के बाद में बेचा गया. सरकारी कंपनी के शेयरों को बेचा गया. उनके शेयर बाज़ार में लिस्ट हुए. अब भी भारत सरकार क़रीब 250 कंपनियों की मालिक है.

 

ग्लोबलाइज़ेशन के तहत सरकार ने दुनिया से कारोबार को आसान बनाया. रोक टोक हटाई गई. कस्टम ड्यूटी कम की गई. हमारे सामान और सर्विसेज़ का निर्यात भी बढ़ा. इससे विदेशी मुद्रा कमाने में मदद मिली. विदेशी निवेश के लिए दरवाजे खोल दिए गए

 

LPG का तब विरोध भी हुआ था. नरसिम्हा राव पीछे नहीं हटे. उनकी सरकार के पास पूरा बहुमत नहीं था. फिर भी बड़े बड़े फ़ैसले किए. आज इसका मीठा फल हम सब खा रहे हैं. आज किसी चीज़ के लिए आपको लाइन नहीं लगाना पड़ती हैं. कोई भी सामान हो या सर्विस कंपनी आपके पीछे भाग रही है. चाहे गाड़ी हो या फ़ोन या फिर बैंक का खाता खोलना है. आपके सामने विकल्प है. पहले विकल्प नहीं था. सरकारी कंपनी ही विकल्प थी जो बिना प्रतिस्पर्धा के लचर हो गई थी. ग्राहकों की कोई चिंता नहीं थीं. वो बेचारा कहाँ जा सकता था. आज यह स्थिति नहीं है .

 

नरसिम्हा राव 1991-1996 तक प्रधानमंत्री रहें. उनके कार्यकाल में अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई गई. देश के कई हिस्सों में दंगे हुए. ख़ुद उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे. इन विवादों के चलते उनकी पार्टी कांग्रेस ने ही उनसे किनारा कर लिया था. मनमोहन सिंह उनके वित्त मंत्री थे. 1991 के बदलाव का श्रेय मनमोहन सिंह के हिस्से में ज़्यादा आता रहा है, अब भारत रत्न ने उनके योगदान का सम्मान किया है.

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