“क्या बकरी क्या गाय है, क्या अपनो जाया। सबकौ लोहू एक है, साहिब फरमाया॥”-गुरु नानकदेव
-गोविंद प्रसाद बहुगुणा-
सेवाकाल के दौरान एक बार मुझे संयोगवशात् कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही अमृतसर जाने का अवसर मिला तो शाम के समय स्वर्ण मंदिर के भी दर्शन पहली बार किये थे । उस समय गुरु नानक देव द्वारा रचित इस भजन को कोई संत गा रहे थे -वहां बैठ कर आनन्द से यह भजन सुना, बड़ा आनंद आया था- “जो नर दुख में दुख नहिं मानै I
।सख सनेह अरु भय नहिं जाके, कंचन माटी जानै।।
नहिं निंदा नहिं अस्तुति जाके, लोभ-मोह अभिमाना।
हरष शोक तें रहै नियारो, नाहिं मान-अपमाना।।
आसा मनसा सकल त्यागि के, जग तें रहै निरासा।
काम, क्रोध जेहि परसे नाहीं, तेहि घट ब्रह्म निवासा।।
गुरु किरपा जेहि नर पै कीन्हीं, तिन्ह यह जुगुति पिछानी।
नानक लीन भयो गोबिंद सों, ज्यों पानी सों पानी।।”
गीता के इस श्लोक में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कहा था कि ” दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहःI वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते II वही बात नानक जी ने भी इस भजन के माध्यम से कही है। भारतीय ग्रामीण समाज में सबको संस्कृत भाषा समझ में कहां आती है इसलिए संतो ने भजन गीतों के द्वारा लोगों को सरल लोक भाषा में वही ज्ञान दिया, यही तुलसी ,सूर ,कबीर और मीराबाई ने किया -उनके भजनों को आम ग्रामीण समाज बड़े भक्तिभाव और प्यार से गाते हैं और आनंदित होते हैं -इन्हें सांत्वना भी मिलती है जब कभी उन्हें दुःख सताता है ।गुरु नानक भी गौतम बुद्ध और गाँधी जी की तरह अहिंसा को ही धर्म मानते थे
-“मुरसिद मेरा मरहमी, जिन मरम बताया।
दिल अंदर दिदार है, जिन खोजा तिन पाया
॥क्या बकरी क्या गाय है, क्या अपनो जाया।
सबकौ लोहू एक है, साहिब फरमाया॥” –
-सबको पता ही होगा कि गुरुनानक देव का जन्म गुरुद्वारा ननकाना साहिब (पाकिस्तान) में हुआ था इसलिए उनका नाम नानक देव हुआ। इनका समाधि स्थल भी करतारपुर साहिब पाकिस्तान में स्थित है। इसलिए सिख समुदाय के लोग तीर्थ यात्रा पर ननकाना साहिब के दर्शन करने जाते हैं I
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