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शरीर के तरल पदार्थ कोलोन कैंसर का आरंभिक पता लगाने के लिए संकेत दे सकते हैं

Colorectal cancer that affects the large intestine (colon) and rectum is the 5th leading cause of cancer death in India, mainly because late detection minimizes chances of recovery. In the last decade, the country has witnessed a rapid increase in the rate of colorectal cancer among younger people due to poor dietary habits, lack of physical activity, obesity, increased alcohol consumption, and chronic smoking. The current detection methods need invasive biopsies, and subsequent evaluation requires special expertise. The delay in the timely detection of the disease limits access to rapid and affordable treatment.

डॉ. तातिनी रक्षित ने कहा, ‘ हमने जिन प्रायोगिक उपकरणों का उपयोग किया, वे उपयोग में सरल, सहजता से सुगम्य, किफायती हैं और प्रयोगों को कुछ घंटों के भीतर ही निष्पादित किया जा सकता है। हमारी सोच है कि इस जैवभौतिकी दृष्टिकोण का उपयोग प्रभावी रूप से लिक्विड बायोप्सी से ईवी कैंसर बायोमार्कर्स के नैदानिक रूपांतरण के लिए किया जा सकता है‘

–uttarakhandhimalaya.in —

कोलेरेक्टल कैंसर जो बड़ी आंत (कोलोन) और मलाशय को प्रभावित करता है, भारत में कैंसर से मौतों का पांचवां सबसे बड़ा कारण है, मुख्य रूप से इसकी वजह यह है कि इसका देर से पता चलने से स्वस्थ होने की संभावना बहुत कम हो जाती है। पिछले दशक के दौरान, देश में निम्न खानपान आदतों, शारीरिक गतिविधियों के अभाव, मोटापा, अल्कोहल का बढ़ता उपयोग एवं दीर्घकालिक धूम्रपान के कारण युवाओं में कोलेरेक्टल कैंसर की दर में तेज बढोतरी देखी गई है। पता लगाने की वर्तमान पद्धतियों के लिए आक्रामक बायोप्सी की आवश्यकता होती है और उसके बाद के मूल्यांकन के लिए विशेष विशेषज्ञता की जरुरत होती है। रोग के समय पर पता लगने में विलंब के कारण त्वरित और किफायती उपचार की सुविधा सीमित हो जाती है।

डॉ. तातिनी रक्षित राष्ट्रीय एस. एन. बोस मूलभूत विज्ञान केंद्र से जुड़ी हैं और भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा गठित इंसपायर फैकल्टी फेलोशिप पुरस्कार से पुरस्कृत हैं। उन्होंने अपने रिसर्च ग्रुप के साथ मिल कर एक ऐसा सेंसेटिव टूल विकसित किया है जो रक्त, पेशाब एवं मल जैसे शरीर के द्रवों से बहुत आरंभिक चरण में ही कोलोन कैंसर की पहचान करने में उपयोगी हो सकता है। यह पद्धति जो सटीकता के मामले में पोलीमेरास चेन रिएक्शन (पीसीआर), इंजाइम लिंक्ड इम्युनोसोरबेंट एसै (एलिसा), इलेक्ट्रोफोरेसिस, सर्फेस प्लाजमोन रेजोनेंस (एसपीआर), सर्फेस इनहांस्ड रमण स्पक्ट्रोस्कोपी (एसईआरएस), माइक्रोकैंटीलेवेर्स, कलरीमेट्रिक एसै, इलेक्ट्रोकैमिकल एसै और फ्लुरेसेंस पद्धति से अधिक सफल है, हाल ही में ‘जर्नल आफ फिजिकल कैमिस्ट्री लेटर्स‘ में प्रकाशित हुई है।

डॉ. तातिनी का रिसर्च ग्रुप गैर आक्रमक तरीके से बायोमार्कर्स की पहचान करने के लिए सिंगल वेसीकल स्तर पर एक्स्ट्रासेलुलर वेसीकल (ईवी) के साथ काम कर रहा है। आरंभ में इन ईवी को कोशिका द्वारा अवांछित सामग्रियों को हटाने के लिए गारबेज बैग के रूप में समझा गया। उनके रिसर्च ग्रुप ने एक संभावित कोलोन कैंसर बायोमार्कर मोलेक्यूल, हाइलुरोनान (एचए) को सुलझाया जो कैंसर कोशिकाओं द्वारा स्रावित लिपिड थैलों की सतह पर उपस्थित रहता है।

एक्स्ट्रासेलुलर वेसीकल (ईवी) मूल हानिकारक ऊत्तक के बारे में मोलेक्यूलर सूचना सम्मिलित करता है तथा सुविधाजनक कैंसर नैदानिकी के लिए एक प्रचुर संभावना को जन्म देता है। इस टीम ने यह साबित किया है कि शरीर द्रव ( उदाहरण के लिए खून, पेशाब, मल आदि) से कैंसर कोशिका स्रवित ईवी का मूल्यांकन तथा बिना ट्यूमर का बायप्सी किए क्लिनिकल सूचना प्राप्त करना कैंसर का पता लगाने की एक प्रभावी और गैर आक्रामक वैकल्पिक पद्धति साबित हो सकती है।

उन्होंने एटोमिक फोर्स माइक्रोस्कोप का उपयोग किया जो कोलोन कैंसर कोशिकाओं से ईवी की सतह पर हाइलुरोनान की जांच करने के लिए नैनोस्केल फिंगर को उपयोग में लाता है। उन्होंने एचए के अभिलक्षण हस्ताक्षरों का पता लगाने के लिए स्पेक्ट्रोस्कोपी प्रयोगों (एफटी-आईआर, सीडी और रमन) का भी निष्पादन किया और दोनों डाटा सेट एक दूसरे से अत्यधिक सहसंबद्ध हैं।

डॉ. तातिनी ने कहा, ‘ हमारा विश्वास है कि हमारी कार्य रणनीति रोग के बहुत आरंभिक चरण में कोलोन, गर्भाशय, ब्लाडर एवं प्रोस्टेट कैंसर का पता लगाने के लिए रोगियों से ईवी नमूनों जैसेकि खून, पेशाब एवं मल के विभिन्न शरीर द्रव उत्पन्न ईवी से बायोमार्कर्स की पहचान में उपयोगी साबित हो सकती है। हमने जिन प्रायोगिक उपकरणों का उपयोग किया, वे उपयोग में सरल, सहजता से सुगम्य, किफायती हैं और प्रयोगों को कुछ घंटों के भीतर ही निष्पादित किया जा सकता है। हमारी सोच है कि इस जैवभौतिकी दृष्टिकोण का उपयोग प्रभावी रूप से लिक्विड बायोप्सी से ईवी कैंसर बायोमार्कर्स के नैदानिक रूपांतरण के लिए किया जा सकता है।‘

उन्होंने कोलेबोरेटर्स, कोलकाता के राष्ट्रीय एस. एन. बोस मूलभूत विज्ञान केंद्र के प्रो. समीर कुमार पाल तथा कोलकाता के साहा इंस्टीच्यूट ऑफ न्यूक्लियर फिजिक्स के प्रोफेसर दुलाल सेनापति के प्रति उनकी सतत सहायता के लिए तथा डीएसटी की उदार अनुसंधान वित्तपेाषण तथा फेलोशिप के लिए गहरी कृतज्ञता जताई।

डॉ. तातिनी की योजना किसी अस्पताल के साथ गठबंधन करने तथा बायोफ्लूड नमूनों से प्राप्त ईवी के साथ कार्य करने की है। उनका ग्रुप भी बेहतर सहसंबंध प्राप्त करने के लिए इन ईवी का मास स्पेक्ट्रोमेट्री आधारित प्रोटीओमिक्स निष्पादित करने की इच्छुक है।

 

(प्रकाशन लिंक: https://doi.org/10.1021/acs.jpclett.0c01018  )

और अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें: डॉ. तातिनी रक्षित

(tatinirakshit@yahoo.comtatini.rakshit@bose.res.in)

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