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अस्मिता न छीजे इसके लिये लड़ाई अस्मिता की जरूरी है -संदर्भ उत्तराखंड का


वीरेन्द्र कुमार पैन्यूली

आज बार बार यह कहने से कुछ नहीं होगा कि 2025 तक ये होगा वो होगा। तब अलाने जी के नेतृत्व में या फलाने जी के नेतृत्व में ये होगा कहने के बजाये और किसी नेता किसी उद्योगपति के सपनों के उत्तराखंड की जनता के सपनों का उत्तराखंड बनाइये। आज को ठीक करिये कल के ठीक होने की संभावनायें खुद ही बढ़ जायेंगी। फिलहाल आज तो स्थिति चिंताजनक है। इंजनों के चक्कर में न रहें इंजन तो चलते रहेंगे। कभी बिना डिब्बों के ही, कभी मंहगेे डिब्बे लेकर जिनमें सवारी ना के बराबर हो। खास ख्यााल ये रहे कि डिब्बे भरेंगे तब ही जब सवारी लेने के लिये जनता के चाह के स्टेशनों पर रूकें। पर्याप्त समय के लिये रूके। स्टेशन का चुनाव ही ठीक न हो तो हजारों इंजन की ट्रेनंे चला दें ज्यादा फायदा न होगा

आइना दिखाने की जिम्मेदारी तो जनता की है

राजनीतिज्ञ तो बयानबाजी से जिंदा रहना ही चाहेंगे, परन्तु आइना दिखाने की जिम्मेदारी तो जनता को निभानी है। डबल इंजन, इंजनों का भार, पहियों की गर्मी पटरियां ही उठाती हैं। इंजनों को दुर्घटनाओं से बचने के लिये सिंगनलों व चेतावनियों को मानना ही होगा ।

कैसे बचेंगी बेटियां? बाघों से, इलाज के अभाव से और भ्रूण हत्याओं से !

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का ही संदर्भ लें। जनता तो जो कर ही रही परन्तु ज्यादा जरूरत सरकार को करने की है। अस्पतालों की हालत यह है कि गर्भवतियों की उनके बाहर ही या उन तक पहुंचने के पहले ही मौत हो जा रही है। गर्भवती मां की मौत उत्तराखंड की एक बेटी की भी मौत होती है और कुछ स्थितियों में गर्भस्थ शिशु कन्या की भी । अस्पतालों ही नहीं बाघ बघेरों के जबड़ों से भी बच्चियों को बचाने की चिंता करें। खुद दिल में हाथ रखकर जिम्मेदार सरकार अपने से पूछे कि कितनी बच्चियां लगातार गुलदारों के मुंह में  जा रहीं हैं। कुछ मां के सामने ही कुछ दादी के सामने ही कुछ दादा जी के सामने ही। अधिकांश स्कूलों से आते जाते । सरकारी स्कूलों की राहें भी बच्चे जान जोखिम में रख तय करते हैं। चाहे बेटे हो या बेटियां। लिंग जांच कर कन्या भू्रण हत्या से ज्यादा व्यापक है, बच्ची बचाने के आयाम। ये काम सरकारों को ही करना है। ये काम ड्रामाई भाव भंगिमाओं से नहीं होते हैं। यथार्थ स्वीकारें।

हकों की मांग करने वाले आन्दोलनजीवी हो गये

सरकार का खड़ा होना इसलिये जरूरी क्योंकि आम जन को तो विकास विरोधी, आन्दोलनजीवि और न जाने क्या-क्या कहा जायेगा। तभी तो स्वामी आनन्द के गंगा के लिये त्याग को सोचे समझे राजनैतिक कारणों से विस्मृत किया गया। और आरती करवाने वालों की सत्ता के गलियारे में पैठ बढ़ाई जा रही है। चाहे उन पर स्थानीयों के प्रताड़ना या जंगल भूमि अतिक्रमण के आरोप भी लगे हों ।

ग्रीन बोनस दो तो मानेंगे डबल इंजन को !

सवाल खुद से करें डबल इंजन में आप ग्रीन बोनस की कितनी थाती ले आये। इसकी मांग तो कांग्रेस के समय से ही की जा रही है और उपेक्षा भी केन्द्र की तभी से जारी है। ग्रीन बोनस तो दूर की बात है जो कुछ ग्रीन है उस पर सरकारी आदेशों से खतरा मंडरा रहा है ।

पारिस्थितिकीय विनाश से उत्तराखण्ड का जनजीवन असुरक्षित हो गया

नयेें ंई आइ ए 2020 ड्रªाफ्ट में तो परियोजनाओं से होने वाली जनता की मुसीबतों को सुनने के लिये जनसुनवाई का समय भी कम किया गया है। प्रोजेक्ट जो बिना अनुमति के शुरू हुए उनको भी नियमित किया जा सकता है। अब तो सीमा से 100 किमी तक प्रोजेक्टों के लिये ग्राम सभाओं या पर्यावरण की अनुमति लेने की शर्तें खत्म हो रहीं है तब तो उत्तराखंड की पारिस्थितिकीय विनाश बढ़ते भूस्खलनों नदियों को गाद से मलवा भराव व इससे लोगों की जन हानियों होने के जोखिम बढ़ ही गये। इसी परिपेक्ष में उत्तराखंड से कई प्रमुख व्यक्तियों ने भी 29 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री को एक संयुक्त पत्र में लिखा कि उत्तराखंड में बारहमासी चारधाम मार्ग के निर्माण के दौरान गंगा हिमालयी बेसिन को गंभीर पर्यावरणीय हानि हो रही है। 2025 तक फिर कभी न ठीक किये जा सकने वाला नुकसान हो चुका होगा जैसें बयानों पर कान न धरा गया।


एक ओर घसियारी योजना दूसरी ओर हेलंग काण्ड

वर्तमान की चिंता करिये। हेलेंग जैसी घटनाओं को न होने दीजिये। 18जुलाई 2022 सोशल मीडिया और सभी जगह ये खबर जोशीमठ हेलंग क्षेत्र में घास लेकर जंगल से लौटती महिलाओं का पुलिस ने घास छीना गाड़ी में बिठाकर थाने ले गये गिरफ्तार किया और कहा कि सरकारी जमीन विद्युत्त परियोजना परियोजना वाले डम्पिंग साइट बना रहे हैं। घसियारी महिलाओं से पुलिस ने दुर्व्यवहार किया। सामाजिक संगठनों की इस घटना के विरूध्द एक जुटता देख सरकार ने पांच छः दिन की चुप्पी बाद कमिश्नर की जांच का आदेश जारी किया। जनपक्ष न्यायिक जांच की मांग कर रहा है। जरा इस घटना की आंच में अपनी घसियारी योजना की सफलता असफलता भी सरकार परख ले तो अच्छा होगा ।

आयातित सोच कैसे पहाड़ पर उतरेगी?

आयातित सोचों, विदेशों में घूमकर उत्तराखंड की जमीन में जन्मी जैविक खेती के मूल में जाइये। जिसके लिये 60 प्रतिशत से ज्यादा संसाधनीय मदद वन से वन पंचायतों से मिलती है। वन पंचायतें उत्तराखंड की पूरे देश की अनोखी संस्था है। चमोली जिले में हेलंग, जोशीमठ, गैरसैण आदि जगहों में इनके कार्यक्ष्ेोत्र में अतिक्रमण के कई उदाहरण हैं।

अग्निवीर योजना : स्थाई रोजगार की क्षतिपूर्ति की मांग करें 

अग्निपथ (अग्निीवीर) योजना कि 14 जून 2022 को पीएम घोषणा के बाद उत्तराखड में इसकी अध्ययन की आवश्यकता है। निष्पक्ष रूप से कि सेना में भर्ती की आस लगाये उत्तराखंड में कुल कितनी पक्की फौजी भर्तियों का टोटा होगा और इससे परिवारों की आर्थिक स्थिति के बढ़ने की संभावनाओं पर कितना पलीता लगेगा। जैसे जी एस टी की क्षतिपूर्ति की आप केन्द्र से मांग करते हैं। वैसे ही फौज में स्थाई भर्ती की संभावित कमी के लिये क्षतिपूर्ति के लिये केन्द्र से मांग होनी चाहिये। यह अग्निवीर योजना के गुण दोष के संदर्भ में विवेचना से अलग का विषय है। यदि डबल इंजनी चाल से इसका लाभ मिल जाये जो अच्छा ही होगा । ———-जारी

(लेखक उत्तराखंड के जाने माने सामाजिक कार्यकर्त्ता और पर्यावरण वैज्ञानिक हैं। उत्तराखंड हिमालय उनके आशीर्वाद स्वरुप  दो किश्तों में यह आलेख  जारी कर  रहा है-संपादक )

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