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गणेश गोदियाल के बहाने एकजुटता तो दिखाई कांग्रेसियों ने ! : अगर होता लोकायुक्त तो कुछ और नजारा होता

–दिनेश शास्त्री–
कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल के बहाने पार्टी ने एकजुटता तो दिखाई लेकिन वह बारिश के बुलबुले से ज्यादा नहीं दिख पाई। यानि एकता तो दिखी लेकिन बनावटी। हुआ यों कि श्री बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के एक सदस्य और तीर्थ पुरोहित आशुतोष डिमरी ने गणेश गोदियाल के कमेटी के अध्यक्ष पद पर रहते (वर्ष 2012 से 2017 तक) कतिपय घपले या अनियमितता का आरोप लगाते हुए एक ज्ञापन चमोली जिले के प्रभारी मंत्री डा. धनसिंह रावत को सौंपा था, जिसे प्रभारी मंत्री ने जांच के लिए विभागीय सचिव को भेज दिया। बस फिर क्या था। कांग्रेस ने स्वाभाविक रूप से उसका प्रतिवाद किया और बाकायदा कांग्रेस भवन में एक बड़ी प्रेस कांफ्रेंस बुला कर एकजुटता दिखाने की कोशिश की। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के साथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करण महरा और गणेश गोदियाल ने आशुतोष डिमरी के आरोपों को न सिर्फ खारिज किया, बल्कि उल्टे धनसिंह रावत को ही कठघरे में खड़ा कर दिया। तब लग रहा था कि गुटों में बंटी कांग्रेस शायद इसी बहाने एकजुट होकर कार्यकर्ताओं को बड़ा संदेश देगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इस प्रेस कांग्रेस में न नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य दिखे, न पूर्व नेता प्रतिपक्ष और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ही नजर आए। निसंदेह यह दोनों नेता भी अगर साथ दिख जाते तो कांग्रेस के अंतिम पायदान के कार्यकर्ता को उम्मीद जग जाती कि नेता एक साथ हैं और पार्टी एक बार फिर उठ खड़ी होगी, लेकिन कांग्रेस में यह बात मृगतृष्णा से अधिक नहीं है और हुआ वही, जो अक्सर होता आया है।
गणेश गोदियाल का कद शायद इस बात से बड़ा हो सकता था, यदि वे खुद को जांच के लिए प्रस्तुत करते। गोदियाल के बारे में यह स्थापित मान्यता है कि वे घपला नहीं कर सकते या उन्हें धनलिप्सा जैसी कोई समस्या है। उनके काम लोग जानते हैं। लेकिन गोदियाल और उनके साथ दूसरे नेताओं ने यहां चूक सी कर दी।
बकौल आशुतोष डिमरी उनके हिसाब से गोदियाल के कार्यकाल में अनेक अनियमितताएं हुई, जिले के प्रभारी मंत्री के नाते उन्होंने ज्ञापन दिया था, अब जांच की बात हो रही है तो कांग्रेस नेता को अपनी सफाई देनी चाहिए थी, उल्टे वे पलटवार कर मामले को नया मोड़ देना चाहते हैं। डिमरी के मुताबिक  गोदियाल की धनसिंह रावत से राजनीतिक विरोध हो सकता है लेकिन उन्हें वह बात अलग से निपटानी चाहिए, जहां तक मंदिर समिति के हित का सवाल है, उस मुद्दे से समझोता नहीं किया जा सकता।
दूसरी ओर गोदियाल आशुतोष डिमरी को धनसिंह का टूल बता रहे हैं और उन्होंने इस मामले को लेकर सीएम से भी भेंट की है। गोदियाल ने आज मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात कर उन्हें एक ज्ञापन सौंपा है जिसमें उन्होंने सहकारिता एवं स्वास्थ्य मंत्री के खिलाफ विभिन्न मामलों की तत्काल जांच की मांग की है। बकौल गोदियाल मंत्री ने अपने विभागों से संबंधित कथित भ्रष्टाचार और आयुष्मान भारत योजना में घपले की बात उठाई है। गोदियाल ने मुख्यमंत्री को सौंपे पत्र में कहा है कि उनके खिलाफ शिकायत पर शुरू की गई जांच का तहे दिल से स्वागत है, लेकिन उनके द्वारा सहकारिता और स्वास्थ्य मंत्री पर लगाए गए गंभीर आरोपों की भी जांच हो। उनका कहना है कि यदि स्वास्थ्य एवं सहकारिता मंत्री डॉ. धन सिंह रावत द्वारा लगाए गए गंभीर आरोपों की एक सप्ताह के भीतर उच्च स्तरीय जांच शुरू नहीं की गई तो उन्हें मुख्यमंत्री आवास के बाहर धरना देने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। उन्होंने याद दिलाया है कि धन सिंह रावत उनके कट्टर राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी और विधायक थे, जिन्होंने श्रीनगर से उनके खिलाफ जीत हासिल की, उनके द्वारा जांच करवाना निश्चित रूप से राजनीतिक प्रतिशोध है। यदि स्वास्थ्य एवं सहकारिता मंत्री डॉ. धन सिंह रावत द्वारा लगाए गए गंभीर आरोपों की एक सप्ताह के भीतर उच्च स्तरीय जांच शुरू नहीं की गई तो उन्हें मुख्यमंत्री आवास के बाहर धरना देने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।
देखना यह होगा कि मेरी कमीज तेरी कमीज से ज्यादा उजली है या तुम्हारा लिबास मुझसे गंदा है जैसे आरोपों के बीच क्या कोई निष्कर्ष निकल पाएगा। वैसे बातें तो जीरो टॉलरेंस की बहुत सुनते आए हैं लेकिन नतीजा कम ही देखने को मिला है। इस जीरो टॉलरेंस से तो अब भरोसा सा उठ गया है। इसका कारण भी साफ है। अगर सचमुच ऐसा होता तो वर्षों से लोकायुक्त का पद रिक्त है। भरोसा हो भी तो कैसे। बिना जांच हुए हम न गोदियाल को दोषी मान सकते हैं और न धनसिंह को।
बहरहाल गोदियाल के बहाने कांग्रेस में जो एकता दिखाने की कोशिश दिख रही थी, वह सीएम को ज्ञापन देते वक्त भी नहीं दिखी और न उसके बाद। इंतजार इस बात का है कि एक सप्ताह बाद जब गोदियाल सीएम आवास के सामने धरने पर बैठेंगे, तब पार्टी के कितने नेता उनके साथ होंगे। बस इतने भर से कांग्रेस की एकजुटता का लिटमस टेस्ट हो जायेगा। आप भी नजर बनाए रखें। यह एक अवसर भी हो सकता है और आपदा भी।
( दिनेश शास्त्री उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं )

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