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पलायन का दंश: नये नगर उगते गये……. उन पर गांव चढ़ते गये………


-जयसिंह रावत
उत्तराखण्ड में जितनी तेजी से पलायन हो रहा है उतनी ही तेजी से निकटवर्ती नगरों का बोझ बढ़ता जा रहा है और उसका नतीजा जोशीमठ की आपदा के रूप में सामने आ रहा है। पलायन के कारण हो रहे जनसंख्या असंतुलन और दबाव के चलते मसूरी और नैनीताल सहित लगभग सभी पहाड़ी नगरों की बहनीय क्षमता या तो समाप्त हो चुकी है या समाप्त होने जा रही है। इन बोझिल नगरों पर भारी मानवीय दबाव का असर दरारों और जमीन के धंसने के रूप में सामने आ रहा है। जोशीमठ के अलावा कम से कम आधा दर्जन छोटे बड़े नगरों में जमीन पर दरारें देखी गयी हैं। इनमें कुछ सड़क, रेल और बिजली परियोजनाओं से तो कुछ अपने ही बोझ से धंस रहे हैं। अंग्रेजों द्वारा 1840 के दशक में बसाये गये भारत के मशहूर पर्यटन नगर नैनीताल में 1880 तक तीन भूस्खलन आ चुके थे। 1880 के भूस्खलन में तो वहां 151 लोग मारे गये थे जबकि उस समय वहां की जनसंख्या मात्र 6,576 थी, और अब 2011 में वहां की जनसंख्या 41,377 हो चुकी थी। पिण्डर घाटी में चमोली का झलिया और बागेश्वर का क्वांरी गांव कभी भी जमींदोज हो सकते हैं।

गांवों की जनसंख्या का बोझ निकटवर्ती नगरों पर

राज्य पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखण्ड में अब तक 28.72 प्रतिशत प्रवासियों ने राज्य से बाहर, 35.69 प्रतिशत ने एक जिले से दूसरे जिले में, 15.46 प्रतिशत ने जिला मुख्यालय में और 19.46 प्रतिशत ने नजदीक के कस्बों में पलायन किया है। इस तरह देखा जाये तो 71.28 लोगों ने राज्य के अन्दर ही पलायन किया है। इनमें से कुछ ने राजधानी देहरादून में किया तो 34.92 प्रतिशत लोगों ने एक ही जिले में या तो जिला मुख्यालय या फिर ब्लाक और तहसील मुख्यालय या फिर व्यवसाय के लिये अनुकूल यात्रा मार्ग पर बसे श्रीनगर-कर्णप्रयाग और जोशीमठ जैसे नगरों में पलायन किया। नैनीताल और उत्तरकाशी जिले के लगभग 40-40 प्रतिशत लोगों ने गांव छोड़ कर नजदीकी कस्बों या नगरों में नया ठिकाना बनाया। इसी प्रकार चमोली में 19.72, रुद्रप्रयाग में 19.34, पौड़ी 19.61 और टिहरी जिले में 17.73 प्रतिशत लोगों ने गांव छोड़ कर नजदीकी कस्बों में घर बनाये। पिथौरागढ़ जैसे सीमान्त जिल में 33.07 प्रतिशत और बागेश्वर में 22 प्रतिशत लोग गांव छोड़ कर जिला मुख्यालय में बस गये। राज्य में कोई ऐसा जिला नहीं है जहां लोग गांव छोड़ कर नजदीकी जिला या ब्लाक मुख्यालय में आ कर न बसे हों। पलायन की इस प्रवृत्ति के चलते लगभग सभी पहाड़ी नगरों की कैरीइंग कैपेसिटी समाप्त हो चुकी है।जिस कारण प्रदेश की लाखों की आबादी खतरे की जद में है।

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