ब्लॉग

जहर का इलाज जहर : कोबरा सांप का जानलेवा जहर अब जान भी बचा सकेगा

Scientists have traced the mechanisms of the toxic action of cobra venom, paving a path towards developing strategies for the application of antivenom or small molecule inhibitors, which can help mitigate the local toxic effects of cobra venom retained at the bite site. Cobras (genus Naja) are widely distributed over Asia and Africa, and cobra bites are responsible for large mortality and morbidity on these continents, including the Indian sub-continent. Like other elapid venoms, cobra venoms are neurotoxic in nature. However, they also exhibit local cytotoxic effects at the envenomed site, and the extent of cytotoxicity may vary from species to species.

 

uttarakhandhimalaya.in

वैज्ञानिकों ने कोबरा सर्प के विष की विषैली क्रियाविधि के उस तंत्र का पता लगाया है, जो ऐसे विष-रोधी (एंटीवेनम) या छोटे अणु अवरोधकों के उपयोग के लिए विकासशील रणनीतियों की दिशा में मार्ग प्रशस्त करता है जो सर्प दंश के स्थान पर उत्पन्न किए गए कोबरा विष के स्थानिक विषैले प्रभावों को कम करने में सहायक बन सकता है।

कोबरा सर्प (जीनस नाजा) व्यापक रूप से एशिया और अफ्रीका में पाए जाते हैं और भारतीय उपमहाद्वीप सहित इन महाद्वीपों में बड़ी मृत्यु दर और रुग्णता का कारण कोबरा द्वारा दिया गया दंश है। अन्य विषधर सर्पों के विष की तरह कोबरा सर्प विष भी प्रकृति में तंत्रिकातन्त्र पर विषाक्त प्रभावकारी (न्यूरोटॉक्सिक) होते हैं। हालांकि, वे दंश के स्थान पर स्थानीय साइटोटॉक्सिक प्रभाव भी प्रदर्शित करते हैं और ऐसी साइटोटोक्सिसिटी की सीमा हर प्रजाति के लिए भिन्न हो सकती है।

कई अन्य प्रयोगशालाओं के प्रोटिओमिक अध्ययनों से पता चला है कि कोबरा के विष में गैर-एंजाइमी थ्री-फिंगर टॉक्सिन समूह की प्रधानता होती है और जो कुल विष का लगभग 60-75% होता है। गैर- एंजाइमी थ्री- फिंगर टॉक्सिन समूह का एक आवश्यक घटक साइटोटोक्सिन्स (सीटीएक्सएस) है और कोबरा के विष में सर्वव्यापी रूप से मिलता है। कोबरा विष प्रणाली (प्रोटिओम) में लगभग 40 से 60% योगदान देने वाले ये निम्न- आणविक-द्रव्यमान के विषाक्त पदार्थ कोबरा विष- प्रेरित विषाक्तता (टोक्सिसिटी), विशेषकर डर्मोनेक्रोसिस (स्थानीय प्रभाव) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कुछ सीटीएक्सएस न्यूरॉन्स और हृदय की मांसपेशियों की झिल्लियों को विध्रुवित (डीपोलेराइज़) करने के लिए भी उत्तरदायी होते हैं, जिससे कोबरा- विषग्रस्त पीड़ितों की अक्सर ह्रदयगति रुकने (कार्डियक विफलताओं) में योगदान होता है। परिणामतः उन्हें कार्डियोटॉक्सिन (सीडीटीएक्स) के रूप में भी जाना जाता है। रोचक बात यह है कि विभिन्न नाजा प्रजातियों में कोबरा विष सीटीएक्स का अनुपात भी नाटकीय रूप से भिन्न होता है। सामान्यतः अफ्रीका के थूकने वाले कोबरा के विष में एशियाई कोबरा की तुलना में सीटीएक्सएस का अनुपात अधिक होता है और जो सर्प विष की संरचना में भौगोलिक भिन्नता का संकेत देता है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी उच्च अध्ययन संस्थान (आईएएसएसटी), गुवाहाटी के निदेशक प्रोफेसर मुखर्जी और उनके सहयोगियों: शेम्याकिन-ओविचिनिकोव इंस्टीट्यूट ऑफ बायोऑर्गेनिक केमिस्ट्री, रशियन एकेडमी ऑफ साइंसेज, मॉस्को, से प्रो. यूरी एन. उत्किन और अमृता विश्व विद्यापीठम, कोच्चि के डॉ. भार्गब कलिता के नेतृत्व में एक टीम द्वारा किए गए शोध पर पत्रिका (जर्नल्स) टॉक्सिन्स में हाल ही में एक अध्ययन प्रकाशित हुआ जिसमें कोबरा विष सीटीएक्सएस की प्रक्रिया के तंत्र पर व्यापक रूप से चर्चा के साथ ही कोबरा विष-प्रेरित पैथोफिजियोलॉजी और उसकी विषाक्तता में उनके महत्व पर प्रकाश डाला गया है। इसके अलावा यह सहयोगी समीक्षा लेख कोबरा विषों के इस महत्वपूर्ण वर्ग के विषाक्त प्रभावों को कम करने में वाणिज्यिक विष रोधी (एंटीवेनम) की प्रभावकारिता पर भी प्रकाश डालती है।

प्रो. मुखर्जी ने इस बात पर बल दिया कि कम आणविक- द्रव्यमान विषाक्त होने के कारण, कोबरा विष सीटीएक्सएस विषरोधी (एंटीवेनम) के पारंपरिक उत्पादन के दौरान कम प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न करते हैं। अतः इन कोबरा विषयुक्त विषाक्त पदार्थों को निष्प्रभावी बनाने के लिए वाणिज्यिक एंटीवेनम में पर्याप्त एंटीबॉडीज की कमी होती है। डॉ. मुखर्जी ने कहा कि कोबरा विष सीटीएक्सएस के विरुद्ध वाणिज्यिक एंटीवेनम के इस अपनी क्षमता से कम (सब- ऑप्टीमल) प्रभाव के कारण कोबरा दंश से उपजी -विषाक्तता के साथ स्थान विशेष पर होने वाले प्रभावों पर अस्पताल में भर्ती हुए रोगी के उपचार का प्रबंधन चुनौतीपूर्ण है और अभी भी एक ऐसी गंभीर चिंता का विषय है जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।

लेखकों का मानना ​​​​है कि आणविक जीव विज्ञान और प्रोटीन इंजीनियरिंग में अब तक हुई प्रगति इस समस्या के समाधान की सुविधा प्रदान कर सकती है और विषरोधी (एंटीवेनम) के उत्पादन के लिए अत्यधिक इम्युनोजेनिक टॉक्सिन/टॉक्सिन अंश बनाने में सहायता कर सकती है। इसके अलावा उन्होंने सुझाव दिया कि एंटीवेनम (वीएचएच या नैनोबॉडीज जैसे छोटे एंटीबॉडीज) अथवा छोटे अणु अवरोधकों के सामयिक अनुप्रयोग के लिए रणनीति विकसित करना सर्पदंश के स्थान पर कोबरा विष सीटीएक्सएस के स्थानीय विषाक्त प्रभावों को कम करने के लिए एक अधिक प्रभावी विकल्प हो सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!