हरेला पर विमर्श ; हरियाली ने चुकायी देहरादून के राजधानी बनने की कीमत
देहरादून, 5 अगस्त । शनिवार को दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के सभागार में अपराहन 4.30 बजे एक विमर्श का आयोजन किया गया। इस विमर्श में एस डी सी फ़ाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल, जलवायु परिवर्तन कार्यकर्त्ता आशीष गर्ग, सिटीजन फॉर ग्रीन दून के अनीस लाल और धाद के सचिव तन्मय शामिल रहे।इस महत्वपूर्ण विमर्श के सत्र का संचालन ट्रीज ऑफ़ दून के संयोजक हिमांशु आहूजा ने किया। सुश्री अर्चना ने विमर्श से पूर्व संचालन किया।
इस अवसर पर वक्ताओं का कहना था कि जब पेड़ कट रहे हों हर ओर तब आज हरेला कैसे हो। देहरादून के राजधानी बनने की कीमत अगर सबसे पहले किसी ने चुकाई है तो वह है उसकी हरियाली. भौगोलिक पर्यावरण के बदलाव ने इसे और तीव्र कर दिया है।बढ़ते शहरीकरण से आसपास की हरियाली छिनती जा रही है। राजधानी की ही बात करें तो बीते कुछ सालों में ही इस विकास की कीमत शहर के हजारों पेड़ों ने चुकाई है।
फैलते हुए शहर कैसे पर्यावरण से संतुलन साधते हुए अपनी जरूरतों और हरियाली दोनो को आगे बढ़ाएं, इस विचार के निमित्त हरेला 2023 के अवसर पर ट्रीज ऑफ दून के साथ धाद की तरफ से संवाद श्रंखला का आयोजित किया जाता रहा है । जिसमें से आज दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की भी सहभागिता से यह विमर्श किया गया है।
धाद के सचिव तन्मय ममगाईं ने कहा लगता है कि मूल बात यह है कि पेड़ और पर्यवारण को लेकर समाज मे चेतना की कमी है और शहरीकरण के कारण निरतर जमीन कम होने का दबाव है। एक दौर में हम मिट्टी के करीब थे और पेड़ो से हमारा सीधा संबंध था लेकिन अब ये कमजोर हुआ है इसके कारण खोज कर अब उसे पुनः स्थापित करना होगा। वरना जब भी सरकारें अपने अलग अलग कारणों से पेड़ काटने का फैसला करती है तब समाज मे प्रतिरोध कम देखने को मिलता है।हमने हरेला के साथ संस्कृति और प्रकृति को जोड़ते हुए इस प्रयोग को किया है और एक चेतनाशील समाज निर्मांण के लिए पहल की है।
आशीष गर्ग ने कहा किहमारे देश के सैनिक बॉर्डर पर बाहरी ताकतों के खतरों से देश को बचाते है और शहीद होते हैं जिसके लिए देश उनका सम्मान कर श्रद्धांजलि देता है। ठीक उसी तरह वृक्ष देश के अंदर चैबीसों घण्टे ऑक्सीजन देकर, प्रदूषण से बचाकर, ग्रीनहाउस गैस को कम कर, पानी संचित कर , पक्षियों और दूसरे कीट पतंगों को आश्रय देकर और भी कई तरीकों से देश के नागरिकों को अपनी निस्वार्थ सेवा प्रदान करते हैं। दुर्भाग्यवश किसी काल्पनिक कारणों द्वारा इन देश के पर्यावरण सैनिकों की निर्ममता से हत्या की जा रही है। इनको बचाने के कई विकल्प होते हैं । इसलिए आशा है कि इनको काटने वाले देश के इन पर्यावरण सैनिकों की निर्मम हत्या करने से बाज आएंगे और आगे वृक्ष काटने से परहेज़ करेंगे।
विमर्श में अनीस लाल ने इस बात पर जोर देकर कहा कि तेजी से और चिंताजनक रूप से घटती हरियाली के साथ तापमान और प्रदूषण के स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इसलिए, यह जरूरी है कि हमारे नीति निर्माता ध्यान दें और इन गंभीर चिंताओं को कम करने के लिए युद्ध स्तर पर योजनाएं बनाएं जो घाटी में प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित कर रही हैं।समय की मांग है कि शहर में बचे हुए कुछ पूर्ण विकसित पेड़ों को बचाया जाए, जो पेड़ दब गए हैं उन्हें कंक्रीट मुक्त करने के लिए एक गवर्मेंट जीओ पास किया जाए और अधिक हरित क्षेत्र बनाए जाएं, साथ ही देशी प्रजातियों पर जोर दिया जाए।
अनूप नौटियाल ने उत्तराखंड राज्य में बढ़ती प्राकृतिक आपदा के कारणों व दुष्परिणामों पर गहन चिन्ता व्यक्त की और कहा अगर वैज्ञानिकों की बात को आधार माना जाए तो अबका समय ग्लोबल वार्मिंग नहीं इसे अपितु ग्लोबल वॉयलिंग कहा जा सकता है। उन्होंने इसके पीछे वन व पेड़ कटान को इसका मुख्य कारण बताया। सही मायने में उत्तराखंड में फारेस्ट कन्जर्वेशन एक्ट को कागजी स्तर से वास्तविक धरातल पर लाने की जरूरत है। उन्होंने सरकार को स्मार्ट सिटी के नाम पर कंक्रीट के बजाय सघन पेड़ो से आच्छादित करने का सुझाव दिया।
इस अवसर पर श्रीमती विभापुरी दास,बिजू नेगी, सुरेंद्र सजवाण, मुकेश नौटियाल, रजनीश त्रिवेदी, कल्पना बहुगुणा, ब्रिगेडियर के जी बहल, सुंदर सिंह बिष्ट, जगदम्बा प्रसाद मैठाणी, मंजू काला सहित शहर के अनेक पर्यावरण प्रेमी, पर्यावरणविद,दून पुस्तकालय के युवा पाठक उपस्थित रहे।