औद्योगिक राष्ट्र जलवायु प्रदुषण के लिए सर्वाधिक दोषी : रवि चोपड़ा

Spread the love

देहरादून, 27 सितंबर। दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर शाम को संस्थान के सभागार में सुपरिचित पर्यावरणविद डॉ.रवि चोपड़ा द्वारा पारिस्थितिकी, संस्कृति और सतत विकास विषय पर स्लाइड- शो पर आधारित एक व्याख्यान  संस्थान के सभागार में दिया गया।  अपने व्याख्यान में  डा0 चोपड़ा ने अनियंत्रित आर्थिक वृद्धि जलवायु विनाश को आमंत्रण बताया।

जलवायु विज्ञान, जलवायु की राजनीति और उत्तराखंड में संभावित जलवायु प्रभाव पर अपने व्याख्यान में डॉ. रवि चोपड़ा ने कहा, “उत्तराखंड में मुख्य सीमा थ्रस्ट और मुख्य केंद्रीय थ्रस्ट के क्षेत्रों में उच्च तीव्रता केंद्रित वर्षा ने ढलान अस्थिरता को काफी बढ़ा दिया है।”

उन्होंने आगे कहा, “सामान्य तौर पर पर्वतीय क्षेत्र अन्य क्षेत्रों की तुलना में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील हैं। उत्तराखंड में जल्दबाजी में बुनियादी ढांचे के विकास और पर्यटन पर जोर देने से राज्य में जोखिम बढ़ गया है।”

इससे पहले, जलवायु परिवर्तन पर अंतरराष्ट्रीय वार्ता पर चर्चा करते हुए डॉ. चोपड़ा ने इस बात पर प्रकाश डाला कि जब दुनिया वैश्विक जलवायु आपदाओं की ओर बढ़ रही थी, तब भी राष्ट्र घरेलू राजनीतिक चिंताओं और राष्ट्रीय हितों को वैश्विक भलाई से ऊपर रख रहे थे। हाल के वर्षों में औद्योगिक राष्ट्र ऐतिहासिक प्रदूषक के रूप में खुद को दोषी ठहराते हुए भारत और चीन पर मढ़ रहे हैं क्योंकि वे दुनिया में क्रमशः सबसे अधिक और तीसरे सबसे अधिक CO2 उत्सर्जित करने वाले देश बनकर उभरे हैं।

उन्होंने कहा कि भारत के भीतर भारतीय आबादी का अनुमानित एक प्रतिशत, सबसे अमीर वर्ग, गरीबों के प्रति व्यक्ति उत्सर्जन से कई गुना अधिक उत्सर्जन करता है। “यह लगभग असंभव है। डॉ. चोपड़ा ने कहा कि यदि भारत को अपने 800 मिलियन से अधिक गरीब लोगों को गरीबी से बाहर निकालना है तो उसे अपने उत्सर्जन में उल्लेखनीय रूप से कमी लानी होगी,”

अपने सार गर्भित व्याख्यान में डॉ. चोपड़ा ने उत्तराखंड हिमालय की महत्वपूर्ण भूवैज्ञानिक और भौगोलिक विशेषताओं पर तथ्यपरक प्रकाश डाला।

व्याख्यान के बाद सभागार में उपस्थित लोगों द्वारा इस विषय के सन्दर्भ में डॉ.रवि चोपड़ा से अनेक सवाल-जबाब भी किये।
इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में पर्यावरण प्रेमी चन्दन सिंह नेगी, पद्मश्री और पर्यावरणविद श्री कल्याण सिंह रावत, विजय भट्ट, निकोलस हॉफ़लैंड , शैलेन्द्र नौटियाल, प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल नौरिया, सुंदर सिंह बिष्ट,जो चोपड़ा, देहरादून के अनेक प्रबुद्वजन, पर्यावरण प्रेमी,साहित्यकार, सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक और पुस्तकालय में अध्ययनरत अनेक युवा सदस्य भी उपस्थित रहे।

डाॅ.रवि चोपड़ा एक परिचय
———————————-
डॉ. रवि चोपड़ा पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक हैं। यह एक गैर-लाभकारी सार्वजनिक हित अनुसंधान और विकास की संस्था है, जो जल संसाधन प्रबंधन, पर्यावरण गुणवत्ता निगरानी और आपदा पर अपने काम के लिए जानी जाती है।
एक शोधकर्ता के रूप में, डॉ. चोपड़ा ने प्रौद्योगिकी और समाज और पर्यावरण और विकास के बीच बातचीत पर ध्यान केंद्रित किया है। वह 1982 में भारत के पर्यावरण की स्थिति पर पहली नागरिक रिपोर्ट के सह-संपादक थे, जिसे समीक्षकों द्वारा दुनिया भर में एक अद्वितीय प्रयास के रूप में सराहा गया।
उनका वर्तमान शोध अध्ययन 21वीं सदी में भारत की जल आवश्यकताओं और हिमालयी जलसो्रतों और नदियों के सतत पुनर्जनन पर केंद्रित है। वह भारत और विदेशों में व्याख्यान सर्किट पर एक लोकप्रिय वक्ता हैं। रवि चोपड़ा ने विकास के क्षेत्र में पांच दशकों से अधिक समय तक काम किया है। कई अग्रणी संगठनों की स्थापना में मदद भी की है। लोकतांत्रिक और मानव अधिकारों की सुरक्षा, प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं से बचे लोगों का पुनर्वास तथा मानसिक रूप से विकलांग बच्चों व सामान्य बच्चों की रचनात्मक शिक्षा के मुद्दों पर उनका काम है।
डॉ. चोपड़ा कई सरकारी और गैर-सरकारी समितियों में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। 2013-14 में डॉ. चोपड़ा ने उत्तराखंड में जलविद्युत बांधों से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नियुक्त एक विशेषज्ञ निकाय की अध्यक्षता भी की। 2009 से 2013 तक वह तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण के विशेषज्ञ सदस्य थे। कुछ अवधि पूर्व उन्हांेने उत्तराखंड में चार धाम परियोजना की समीक्षा के लिए भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था।
1947 में जन्मे डॉ. चोपड़ा ने अपना डॉक्टरेट शोध कार्य स्टीवंस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, न्यू जर्सी से किया है। उनका विवाह विकलांगता मुद्दों की वकालत करने वाली जो.मैकगोवन से हुआ है। उन्होंने तीन बच्चों की परवरिश की है। वर्तमान में वे देहरादून में रहते हैं। अपने इस घर में उन्होंनेें वर्षा जल संचयन टैंक और एक कचरे से बनने वाली एक खाद इकाई का भी निर्माण किया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!