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महिला उड़ान को पंख देता डिजीटल क्रांति

डॉ. अमिता
अंतरराट्रीय महिला दिवस का आयोजन देश-दुनिया के बड़े हिस्से में लंबे समय से किया जा रहा है। किंतु, इसे अधिकांश जगहों पर एक दिवसीय उत्सव मात्र समझ कर ही मनाया जाता है। ऐसे उत्सवों में भी महिलाओं को थाली और ट्रे हाथ में थमाकर मुख्य अतिथियों के आतिथ्य में तैनात कर दिया जाता है और पुरूष आराम से दर्शक दीर्घा में बैठकर तालियां बजाते नजर आते हैं। ऐसी कई जेंडर असमानतायें घर की चारदीवारी से लेकर बाहरी दुनिया तक बहुत ही आसानी से देखने को मिल जाती है। जिन महिलाओं को अक्सर घर का वित्तमंत्री कहकर संबोधित किया जाता है, उन्हीं महिलाओं को किसी संस्था अथवा सरकार में तमाम ऐसी जिम्मेदारियों को देने से बचा जाता रहा है। लेकिन इस सरकार ने पहली बार यह सिद्ध कर दिया कि महिलाओं को यदि ऐसी जिम्मेदारियां भी दी जायें तो वे इसका पूरी कुशलता से निर्वहन कर सकती हैं। इसी प्रकार रक्षामंत्री और विदेशमंत्री जैसे प्रभार भी प्रथम बार इसी सरकार में किसी महिला को दी गई। महिलाओं ने प्रारंभ से ही ऐसे कई इतिहास रचे हैं, जो सदैव याद किए जायेंगे और उन्होंने यह इतिहास किसी के खैरात से नहीं बल्कि अपनी योग्यता और क्षमता के बल पर रची है। किंतु, आज भी इनकी योग्यता और क्षमता को निरंतर दरकिनार किया जा रहा है और इसे जेंडर गैप रिपोर्ट से आसानी से समझा जा सकता है।

महिला दिवस महिलाओं के मान-सम्मान और सामाजिक समानता का द्योतक है। यह सदियों से चली आ रही गुलामी से रिहाई का प्रतीक है, जहां महिलाओं को पैर की जूती समझा जाता था। आज देश-दुनिया में शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र है, जहां महिलाओं ने अपनी उपस्थिति नहीं दर्ज की है। आकाश से लेकर पाताल तक हर जगह वे अपना परचम लहरा रही हैं। किंतु, आज भी समाज में जेंडर गैप बहुत अधिक है। महिलाओं द्वारा 24ङ्ग7 अनपेड वर्क किए जाने के बावजूद उन्हें घर-बाहर वह सम्मान और अधिकार नहीं मिल पाता, जिसकी वे हकदार हैं। रिपोर्ट तो यहां तक बताते हैं कि आज भी कई महिलायें ऐसी हैं, जिन्होंने घर के दहलीज से बाहर कभी कदम ही नहीं रखा। किंतु, पुरूषों के साथ ऐसा किसी समाज में नहीं होता है। महिलाओं को अपने पति, परिवार, बेटे, भाई के लिए ही जीने की सीख हमारी संस्कृति देती रही है, जिसमें औरत अपने बारे में सोचना भूल जाती है। यह जेंडर असमानता ही महिलाओं के जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप है।

इस गैप को कम करने के उद्देश्य से ही इस बार का अंतराराष्ट्रीय महिला दिवस का थीम डिजिटल: लैंगिक समानता के लिए नवाचार और प्रौद्योगिकी है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि तकनीक ने हमें सक्षम बनाया है। जीवन को सरल और सुलभ बनाया है। लेकिन इसने महिलाओं को जो सामर्थ्य दिया है, वह उल्लेखनीय है। हैरानी तो तब हुई जब एक शोध कार्य के दौरान मैंने पाया कि सोशल मीडिया के माध्यम से बस्तर जैसे वनक्षेत्रों में बैठी महिलायें देश के अलग-अलग हिस्सों में व्यापार करने की कोशिश कर रही हैं। वे अपनी शिक्षा और जीवन के स्तर को इंटरनेट के माध्यम से बेहतर बना रही हैं। कुछ समय पहले तक यह किसी सपने से कम नहीं था। यह डिजिटल साक्षरता और नवाचार की संकल्पना से ही साकार हो पाया है।

वर्तमान सरकार ने देश में डिजिटल क्रांति की प्रकिया में जिस प्रकार की तेजी लायी है, वह किसी कल्पना से कम नहीं है। खासतौर, से कोरोना के बाद डिजिटलीकरण में जो तीव्रता आयी है, वह अद्भूत है। इसने न सिर्फ देश की अर्थव्यवस्था को बदला है, बल्कि जेंडर गैप को भी पाटने में अहम् भूमिका निभायी है। डिजिटल प्रौद्योगिकी के माध्यम से अन्वेषण, रोजगार, शिक्षा आदि के क्षेत्रों में अहम् बदलाव देखने को मिला है। साथ ही डिजिटलीकरण और उसके लाभों को निचले स्तर तक ले जाने और पहुंचाने पर जोर दिया है जो मुख्यधारा के समाज से या तो दूर हैं या फिर उन्हें सदियों से दबाया जाता रहा है। इस कड़ी में महिलाओं को हम सबसे पहले देख सकते हैं, जिन्हें आधी आबादी का हिस्सा तो माना जाता है, लेकिन आधिपत्य आज भी पुरूषों का ही है। ऐसे में तकनीक अथवा डिजिटल साक्षरता के माध्यम से महिलायें अपने जीवन में क्रांतिकारी बदलाव ला सकेंगी।

डिजिटल योजनाएं देश की शिक्षा प्रणाली में भी क्रांति ला रही हैं। ‘स्वयंम’,‘ई-पाठशाला’, नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी आदि के माध्यम से महिलायें घर बैठे शिक्षित हो रही हैं। ये डिजीटल पहल उन महिलाओं तक शिक्षा पहुंचा रही है, जो घर से बाहर नहीं जा सकती या फिर दुर्गम क्षेत्रों में निवास करती हैं। इसके माध्यम से महिला-पुरूष के उस अंतर को पाटा जा रहा है, जो सदियों से व्याप्त रहा है। जिन छोटे-बड़े कामों के लिए महिलाओं की पुरूषों पर निर्भरता होती थी, उसे डिजिटल लिटरेसी और तकनीक ने बहुत ही आसानी से कमोबेश समाप्त कर दिया है। आज दूर-दराज के क्षेत्रों में भी बैठी महिलायें तकनीक के सहयोग से देश-दुनिया में रोजगार कर रही हैं। अपने कौशल से आत्मनिर्भर बन रही हैं।  साथ ही सदियों से व्याप्त पुरूषवादी मानसिकता पर भी चोट कर रही हैं। महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए प्रारंभ किए गए ‘निर्भय ऐप’ और ‘हिम्मत ऐप’ एप्लीकेशन का इस्तेमाल वे अपनी सुरक्षा के लिए कर रही हैं।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर प्तएम्ब्रेसइक्विटी की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने की है जिसका अर्थ है समानता को अपनाना। इस कैंपेन के ज़रिए संयुक्त राष्ट्र चाहता है कि महिलाओं को कार्यस्थल और समाज में पुरुषों के जितना ही सम्मान और अवसर दिया जाए क्योंकि आज भी जेंडर असमानता के कारण महिलाओं को कार्यस्थल पर पुरूषों की तुलना में हीन भावना से देखा जाता है। अब वह समय आ गया है, जब महिलायें इस बात को समझें कि वे जब तक अपनी इज्जत नहीं करेंगी, अपनी क्षमता को नहीं पहचानेंगी, तब तक वे महिला दिवस के वास्तविक उद्देश्यों  से वंचित ही रहेंगी।

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