प्रधान न्यायाधीश की नसीहत, बहुमत को स्वीकार किया जाना चाहिए मगर अल्पमत का सम्मान जरूर होना चाहिए : Listen his speech in video
By- Usha Rawat
देहरादून, 2 दिसंबर। भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने लोकतंत्र में असहमति को सहमति की तरह ही जरूरी बताया और कहा कि असहमति समाज के कामकाज के बारे में गहन सवालों से उभरती है, और लोकतंत्र में असहमति, यहां तक कि जो अलोकप्रिय और अस्वीकार्य हैं, भविष्य के लिए संभावनाएं प्रदान करती हैं।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ शनिवार को देहरादून के एफ आर आइ में कर्मभूमि फाउंडेशन द्वारा आयोजित न्यायमूर्ति केशव चंद्र धुलिया स्मृति व्याख्यान मेन् मुख्य अतिथि के तौर पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में बहुमत के फैसले को स्वीकार होना चाहिए मगर अल्पमत को भी जरूर सुना जाना चाहिए। उसका भी सम्मान होना चाहिए।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि लोकतंत्र बहस से चलता है और असहमति बहस को दिशा देती है, मार्गदर्शन करती है। हमारे लोकतंत्र में बहस जो कि विचार मंथन होती है को बहुत महत्व दिया गया है इसीलिए विचारों और भाषण को मौलिक अधिकारों में शामिल किया गया है। विचारों के इसी खुलेपन का नतीजा है कि भारत 7 दशकों में कहाँ से कहाँ पहुंच गया।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ के अनुसार, राज्य को कमजोर आबादी का पक्ष लेना चाहिए जो संख्यात्मक या सामाजिक अल्पसंख्यक हो सकती है, जो स्पष्ट रूप से बहुमत शासन के लोकतांत्रिक सिद्धांत के विपरीत प्रतीत होती है। सीजेआई का कहना है कि बहुमत का अपना रास्ता होगा लेकिन लोकतंत्र में अल्पसंख्यक को भी अपनी बात कहने का अधिकार होना चाहिए, इस बात पर जोर देते हुए कि असहमति समाज के कामकाज के बारे में गहन सवालों से उभरती है, और लोकतंत्र में असहमति, यहां तक कि जो अलोकप्रिय और अस्वीकार्य हैं, उन्हें भविष्य के लिए अवसर देती है।